संपादकीय

प्रार्थना संग सावधानी भी जरूरी

मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने दीपावली के बाद राज्य के सभी प्रार्थनास्थलों को खोलने के संकेत दिए है. जिससे लोगों में राहत महसूूस की जा रही है. हालांकि अभी यह सिर्फ संकेत है. जब तक प्रत्यक्ष रूप में मेंदिर खोले नहीं जाते भक्तों के मन में अनेक आशंकाएं कायम है. मुख्यमंत्री का मानना है कि मंदिर में अनेक वरिष्ठजन दर्शन के लिए आते है, ऐसे में कोरोना का संक्रमण न हो इस बात का ध्यान रखते हुए मंदिर आरंभ करने में देरी लग रही है. मंदिर आरंभ होने के बाद सोशल डिस्टेसिंग, मास्क आदि सावधानिया बरतने की सूचनाओं का सभी प्रार्थनास्थलों को पालन करना होगा. निश्चित रूप से प्रांत के भक्तगण चाहे वे किसी भी समुदाय के हो, चाहते है कि प्रार्थनास्थलों को अब आरंभ कर देना चाहिए. तमाम संकटों का निवारण केवल प्रार्थना के माध्यम से हो सकता है. इसलिए प्रार्थनास्थलों को हमारी संस्कृति में विशेष महत्व है. माना जाता है कि जहां दवा काम नहीं करती वहां दुआ काम करती है,ऐसे में लोगों की आस्थाएं धार्मिक स्थलों से जुड़ी हुई है.आध्यात्म के प्रति आस्था लोगों में एक आत्मविश्वास का संचार करती है. पाया जाता है कि जब कोई भारी संकट में घिर जाता है तथा उसके अपने सहायता नहीं कर पाते तब उनके मुंह से केवल एक ही बात निकलती है, हिम्मत रखों भगवान सब सही करेगा. निश्चय ही प्रार्थनास्थल यह आस्था के विषय है.

तकनीकी मापदंडों पर भले ही भीड़ के कारण लोगों को संक्रमण का खतरा रहता है लेकिन आज अनलॉक प्रक्रिया के अंतर्गत जिन जिन क्षेत्रों को आरंभ किया गया है.वहां भी यह सब संभव है. लेकिन मंदिर प्रारंभ करने में कुछ हद तक देरी अवश्य की जा रही है. लेेकिन ईश्वर के प्रति आस्था रखनेवाले संयम का भी पालन करते है. यही कारण है कि मंदिरों के खुलने में देरी होने के बावजूद भक्तगण केवल संयम काभाव अपनाए हुए है. देर आए दुरूस्त आए की तर्ज पर यदि त्यौहार के बाद भी प्रार्थनास्थलों को आरंभ किया जाता है तो उसका भी जनसामान्य तहे दिल से स्वागत करेगा. प्रार्थनास्थलों को आरंभ करने में देरी को लेकर राज्य के नागरिको को पीड़ा थी. नागरिको का एक ही प्रश्न था कि जब मधुशालाएं, बस स्वीमिंग पुल जीम,सिनेमा थिएटर भी खुल रहे है तो प्रार्थनास्थलों के प्रति इतनी उदासीनता क्यों? कोविड-१९ के संक्रमण के बाद मार्च माह से लॉकडाऊन आरंभ किया गया तब से मंदिर बंद है. हिन्दी वर्ष के अनुसार चैत्र प्रतिपदा यानी गुढ़ी पाड़वा से सभी त्यौहार आंरभ होते है तथा त्यौहारो का यह क्रम दीपावली तक जारी रहता है.

पर्व का पूरे काल में प्रार्थनास्थलों को बंद रखा गया. जिससे लोगों के मन में पीड़ा अवश्य है. दीपावली के बाद कार्तिक मास में काकडा आरती का क्रम सभी मंदिरों में रहता है. लेकिन यहां भी भक्तों को निराशा का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि शरद पूर्णिमा से यह काकडा आरती आरंभ होती है जिसकी पूर्णाहूति कार्तिक पूर्णिमा पर होती है. अब भक्तों के सामने यह संकट है कि कार्तिक आधा माह बीतने के बाद वे काकडा आरती का क्रम किस तरह आरंभ करे. यह भी सच है कि जिस रूप में कोरोना का संकट गहरा गया था. खासकर महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही थी. उसे देखते हुए ठोस निर्णय आवश्यक था.परिणामस्वरूप प्रार्थनास्थलों को बंद रखा गया. लेकिन जब अनलॉक प्रक्रिया के तहत विभिन्नस्थलों को आरंभ किया जा रहा था तब प्रार्थनास्थल के प्रति भी योग्य विचार करना आवश्यक था. प्रार्थनास्थल आरंभ होने के बाद नागरिको का भी दायित्व बढ़ जायेगा. उन्हें सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए अपने इष्ट के दर्शन करने होगे. इस तरह मास्क की भी आवश्यकता कायम रहेगी. पाया जा रहा है कि प्रशासन के बार बार आग्रह के बाद भी लोग मास्क का उपयोग नहीं कर रहे है, ऐसे में बीमारियों के बढऩे का खतरा बना रह सकता है.

नागरिको का दायित्व है कि केवल प्रशासन को हर जगह आडे हाथ लेने के बजाय अपने दायित्व को भी समझे. तभी भविष्य के संकटों से बचा जा सकता है. मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने रविवार को जनता को संंबोधित करते हुए कहा है कि राज्य सरकार चाहती है कि इस बार आतिशबाजी रहित दिपावली मनाई जाए. इसके लिए उन्होंने कोई प्रतिबंध नहीं लगाने की बात कही. लेकिन लोगों से आग्रह किया है कि प्रदूषण का विस्तार न हो इसलिए दीपावली के पर्व पर लोग आतिशबाजी न करे. आतिशबाजी से वातावरण में प्रदूषण बढ़ेगा. यह प्रदूषण कई लोगों के लिए घातक साबित हो सकता है. क्योंकि कोरोना का सीधा असर श्वासतंत्र पर होता है. यदि हवा प्रदूषित रही तो कोरोना संक्रमितों को भारी पड़ सकता है. इसलिए जरूरी है कि नागरिक स्वयं स्फूर्त होकर स्वयं का और ओरो का ख्याल रखते हुए आतिशबाजी न करें. कुल मिलाकर मुख्यमंत्री द्वारा दीपावली के बाद प्रार्थनास्थलों को आरंभ करने का निर्णय लोगोंं को राहत पहुंचाने वाला है. लेकिन नागरिको को भी इस बारे में पूरी तरह सावधानी बरतनी होगी. यदि ऐसा किया जाता है तो मंदिरों का आरंभ होना हर किसी के लिए सुखद साबित होगा.

कोरोना का संकट अभी समाप्त नहीं हुआ है. बीमारी कुछ कम अवश्य हुई है लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है. इसलिए अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान हर किसी को जिम्मेदारी समझकर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रशासन के जारी निर्देशों का भी पालन करना होगा.

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