संपादकीय

फिल्मसिटी का विकेन्द्रीकरण

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को अपने मुंंबई दौरे में उत्तरप्रदेश में विश्वस्तर की फिल्मसिटी निर्मित किए जाने की बात कही. योगी के इस बयान के बाद सियासत गर्म हो गई है. हालाकि फिल्म सिटी निर्माण होना देश की प्रगति में एक महत्वपूर्ण योगदान भी साबित हो सकता है. योगी ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि वे मुंबई की फिल्म सिटी को उत्तरप्रदेश के नोयडा में ले जा रहे है. बल्कि उन्होंने उत्तरप्रदेश मेें नये रूप से फिल्म सिटी के निर्माण की बात कहीं है. मुख्य बात तो यह है कि मुंबई यह फिल्मसिटी की जननी है. एक माता के अलग-अलग पुत्र यदि अन्यत्र जाकर नये रूप से कुछ सृजन करते है तो वे माता के अस्तित्व को चुनौती नहीं देते बल्कि माता के अस्तित्व को अपनी योग्यता के बल पर चार चाँद लगा देते है. फिल्मसिटी के मामले में भी यही कहा जा सकता है. मुंबई यह बालीवुड की जननी रही है. उसका अस्तित्व वहीं रहेगा. भले ही उत्तरप्रदेश सहित अनेक राज्यों में फिल्म सिटी का निर्माण हो. इस हालत में यदि कोई योगी के इस निर्णय का विरोध करता है या आपत्ति जताता है तो वह अपनी एक संकुचित मानसिकता का परिचय देता है. सर्वमान्य सिध्दांत है कि जितने चिराग जलाओं उतनी रोशनी होगी. भारत में फिल्मसिटी का उद्योग बहुत पुराना है. मुंबई में सभी प्रांत के कलाकार इस फिल्मसिटी का हिस्सा हैे. भले ही फिल्मसिटी की रचना मुंबई की हो. लेकिन इसमें अधिकांश कलाकार उत्तरप्रदेश के ही है. महानायक अमिताभ बच्चन स्वयं प्रयागराज निवासी है. इसी तरह अनेक गायक,गीतकार, संगीतकार का भी उत्तरप्रदेश से तालुक रखते हैे,ऐसे में विभिन्न प्रांतों की संस्कृति से जुड़ी फिल्म सिटी है. इसलिए फिल्म सिटी का विकेन्द्रीकरण किसी क्षेत्र के उद्योग को समेटने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि उद्योग के विस्तार का कदम है. निश्चित रूप से इससे संबंधित क्षेत्र के कालाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा,ऐसा नहीं की पहलीबार फिल्म सिटी का विकेन्द्रीकरण किया गया हो. इससे पूर्व भी हैदराबाद में रामोजी फिल्म सिटी आरंभ हुई थी. दक्षिण भारत में तो अनेक फिल्में निर्माण हो रही है.
भारत जैसे विकसनशील देश में किसी एक दायरे में सिमटकर नहीं रहा जा सकता. उसके लिए अलग-अलग जगह पर विस्तार की रूपरेखा तय करनी होगी. महाराष्ट्र में फिल्म उद्योग का व्यापक कारोबार है. उसमें हजारों लोग जुड़े हुए है. इस हालत में फिल्मसिटी को यहां से हटाने का कोई कारण नहीं हो सकता है. लेकिन उसका विस्तार तो किया जा सकता है. खासकर उत्तरप्रदेश मेें वहां के मुख्यमंत्री द्वारा विश्वस्तर की फिल्म सिटी बनाने की बात कहीं जा रही है. इससे देश की गरिमा को भी बढ़ावा मिलेगा.स्थानीय कलाकारों को योग्य अवसर भी प्राप्त होंगे. इसलिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा यदि उत्तरप्रदेश में विश्वस्तर की फिल्म ािसटी के निर्माण का बहुमान मिलेगा. इसके साथ ही उत्तरप्रदेश में जहां जातिगत राजनीति का भी सफाया हो सकता है. फिल्म के माध्यम से चाहे वह अपने संदेश ओरो तक दे सकते है. इसलिए फिल्म सिटी के लिए तत्काल प्रयास भी आरंभ करने होगे. मुंबई के गोरेगांव में जो फिल्म सिटी है उसकी भारी दुर्दशा हो रही है. उसके सुधार की अति आवश्यकता है.
कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश में विश्वस्तर की फिल्म सिटी आरंभ करने की जो बात कहीं जा रही है. उससे सही स्वरूप में देश के विकास में योगदान मिलेगा. वर्तमान में फिल्म उद्योग नष्ट होने की कगार पर है. लॉकडाऊन के बाद से नई फिल्मों का आना लगभग रूका हुआ है. इससे मनोरंजन जगत पर असर हुआ है. फिल्म उद्योग लगभग ाठप्प सा चल रहा है. हालांकि अनलॉक प्रक्रिया में सिनेमा उद्योग को अनुमति दी गई है. लेकिन दर्शकों की कमी आज भी पायी जा रही है. इस हालत में जरूरी है कि फिल्म उद्योग को बढ़ावा दिया जाए. यह सब तभी संभव है जब इस उद्योग को पोषक वातावरण मिले. अभिप्राय यह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा की जानेवाली घोषणाा सराहनीय है तथा अनेक कलाकारों को उससे राहत मिल रही है. जरूरी है कि नये रूप से यदि कोई फिल्म सिटी निर्मित होती है तो वह सभी के लिए योग्य ही कही जायेगी. इसके लिए जरूरी है कि प्रतिस्पर्धा अच्छे से अच्छे निर्माण की हो. यदि आदित्यनाथ यह कहते है कि वे उत्त्तरप्रदेश में नई फिल्म सिटी का निर्माण कर रहे है तो उसका स्वागत होना चाहिए. क्योंकि उनके द्वारा निर्मित की जानेवाली फिल्मसिटी इस देश की भूमि में ही बन रही है. इससे देश के उद्योग में बढ़ोतरी होगी. इसका विरोध करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. बल्कि इस लक्ष्य का स्वागत किया जाना चाहिए. यथाशीघ्र इस फिल्म सिटी का कार्य आरंभ हो तथा उसे पूर्ण किया जा सके. एवं नये कलाकारों को इसका लाभ मिले. इस बारे में हर कोई चाहता है. अत: योगी आदित्यनाथ की घोषणा विकास के लिए पूरक ही साबित होगी.

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