संपादकीय

विद्यार्थियों से न हो खिलवाड़

कोरोना संक्रमण के भारी खतरे के बीच सोमवार से शहर की शालाओं को आरंभ किया गया है. कक्षा ९ वीं १०वीं व कनिष्ठ महाविद्यालयों में शिक्षा आरंभ की गई है. किंतु पहले दिन जिस तरह विद्यार्थियों की उपस्थिति रही उससे स्पष्ट है कि कोई भी पालक अपने पाल्यों को कोरोना संक्रमण के संभावित भारी खतरों के बीच शाला में भेजने का पक्षधर नहीं है. अनलॉक प्रक्रिया के तहत सरकार की ओर से अनेक कदम उठाए गये. दुकानों से लेकर सिनेमागृह तक आरंभ हो गये है. यह व्यवसाय से जुड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां पर अनलॉक प्रक्रिया स्वाभाविक लगती है. लेकिन विद्यार्थियों के साथ खिलवाड़ न हो यह हर किसी की भावना है. बेशक प्रशासन का कहना है कि शालाओं को कडे नियमों के तहत आरंभ किया जायेगा. इसमें मास्क, सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना जरूरी रहेगा. इसी तरह सभी शालाओं को सैनिटाइजर किया जायेगा. बावजूद इसके पालको में घबराहट है और घबराहट क्यों न हो आनेवाले दिनों में कोरोना की लॉट सुनामी बनकर तेजी से अपना असर दिखायेंगी. जब ऐसी स्थिति है तो शाला आरंभ करने का निर्णय स्थगित कर देना चाहिए था. इस बारे में शिक्षा राज्यमंत्री बच्चू कडू ने कहा था कि शाला आरंभ करने के बारे में पुनर्विचार किया जायेगा. यह जरूरी है कि शाला आरंभ करने से पूर्व जिलास्तर पर गहन चिंतन होना जरूरी था. एक ओर तो यह कहा जाता है कि कोरोना से डरो नहीं लडो. वही पर कोरोना के मरीजों की रोकथााम के लिए कदम नहीं उठाए जा रहे है. शाला आरंभ करने की बात तो की जा रही है. लेकिन लॉकडाऊन की भी चर्चा का जोर शोर जारी है. ऐसी दोहरी स्थिति में किस पालक का मन करेगा कि वह अपने पाल्यों को शाला भेजे. शाला में भले ही विद्यार्थी को मिले मास्क,सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटायजर की व्यवस्था भले ही मिले. लेकिन जिस वाहन में वह शाला आता है उस वाहन में भी इसी तरह की सावधानियां बरती गई है क्या? इस बात पर भी ध्यान देना होगा. बेहतर तो यह था कि सरकार जब तक कोरोना का संक्रमण पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता तब तक विद्यार्थियों के लिए शालाएं आरंभ न की जाए. जरूरत पड़ी तो इस वर्ष सभी विद्यार्थियों को अगले वर्ष में प्रवेश दिया जाए. उनका वर्ष बरबाद न हो इसलिए ऑनलाइन शिक्षा का माध्यम ही उचित है. शालाए आरंभ करने का निर्णय बारूद के ढेर पर दीपक जलाए जाने जैसा है. समय की मांग को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह सभी विद्यार्थियों को इस सत्र में उत्तीर्ण कर उन्हें अगले सत्र में प्रवेश दिया जाए. इससे विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की दिशा में योग्य कदम उठाए जा सकते है.
शालाएं आरंभ करने के पीछे सरकार की मंशा है कि विद्यार्थियों को स्वयं बीमारी से बचाव के नियमों का पालन करना पड़ेगा.

शालाएं आरंभ करने के निर्णय में विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखना जरूरी है. हालाकि इस बारे में शाला प्रशासन की ओर से व्यापक तैयारिया की गई है. लेकिन जिस तरह बीमारी बढ़ रही है. उसे देखते हुए हर स्थिति की समीक्षा की जाए.
कोरोना की अभी कोई दवा विकसित नहीं हो पायी है. तब तक सावधानी बरतने की सूचनाएं सरकार की ओर से दी जा रही है. ऐसे में लोगों का दायित्व है कि वे स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे . कोरोना से बचाव के लिए त्रिसूत्रीय फार्मुले का पालन करे. इसी के साथ स्वास्थ्यवर्धक दवाईयां या काढ़ा का भी सेवन नियमित रखे. इससे आंतरिक शक्ति विकसित होगी. सोशल डिस्टेसिंग की बात की जा रही है. इसके लिए यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भीड़ क्यों बढ़ती है. शहर का आबादी और क्षेत्रफल में भारी तफावत है. राजकमल चौक पर यदि रेड सिग्नल लगा रहता है तो वाहनों की लंबी कतार जमा हो जाती है.जिसके कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं हो पाता है. इसलिए जरूरी है कि शहर मेें भीड़ न बढ़े इसलिए वनवे मार्ग व्यवस्था की जानी चाहिए. जिससे एक ही मार्ग पर वाहनों की आवाजाही होती रहे.

सबसे ज्यादा जरूरी है कि भीड़ न जुटे. दीपावली के समय इस बात का ध्यान रखा गया था कि भीड़ से बचाव के लिए दुपहिया वाहनों के अलग मार्ग हो तथा चारपहिया वाहनों का अलग मार्ग रहे. इससे सड़कों पर भीड़ जमा नहीं होगी तथा सोशल डिस्टेंसिग का पालन किया जा सकता है. क्योंकि शाला हो या सामान्य बाजार हर कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करे. शहर की आबादी के अनुसार किसी भी मार्ग पर जाओ लोगों की आवाजाही अधिक दिखाई देती है. इसके लिए यातायात व्यवस्था में भी सुधार आवश्यक है. कुल मिलाकर सरकार ने शालाएं आरंभ कर दी है. लेकिन शाला आरंभ करने से पूर्व इस बात की पुष्टि जरूरी थी कि कोरोना का संक्रमण कमजोर हो गया है. जब कोरोना संक्रमण का खतरा कायम है तब इस तरह का निर्णय नहीं होना चाहिए. सरकार को चाहिए कि शाला आरंभ करने के विषय में दुबाराा चिंतन करे व विद्यार्थियों के जीवन से खिलवाड़ न हो इसकी पुख्ता व्यवस्था करें.

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