संपादकीय

विद्यार्थियों के जीवन से खिलवाड़ न हो

राज्य सरकार आगामी सितंबर माह में शालाओं को आरंभ करने के बारे में चिंतन कर रही है. उस दिशा में कुछ कदम भी उठाए जा रहे है. लेकिन वर्तमान में कोविड-१९ यानी कोरोना संक्रमण की स्थिति तीव्र अवस्था में है,ऐसी हालत में शालाएं आरंभ करना किसी खतरे से खाली नहीं है. मार्च के बाद से लगातार लाकडाऊन जारी है. भले ही जून से अनलॉक प्रक्रिया आरंभ की गई है. इसके अंतर्गत अनेक व्यवसाय को आरंभ किया गया है. लेकिन किसी व्यवसाय को करने के लिए जिस तरह नियमों को जटिल बनाया गया है. उससे इस प्रक्रिया का कोई लाभ नहीं हो रहा हैे. लॉजिंग होटल खोल दिए गये हैे पर जिलाबंदी कायम रहने के कारण कोई भी पर्यटन या अपने परिजनों से मिलने के लिए कहीं आ- जा रहा नहीं हैे. परिणामस्वरूप अनलॉक प्रक्रिया भले ही व्यापार आरंभ करने के लिए पोषक हो रही हो लेकिन अन्य पहलूओं पर विचार किया जाए तो केवल दुकान खुल रही है. कारोबार अभी भी शून्य हैे.इस हालत में विद्यार्थियों की शालाएं आरंभ करना यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है.क्योंकि विद्यार्थी व युवा इस देश की रीढ़ है. इसलिए उनके स्वास्थ्य पर कोई आंच न आए इसका ध्यान रखना न केवल परिवार का बल्कि सरकार का भी धर्म बन गया है. सच तो यह है कि स्वयं सरकार मानती है कि कोरोना की स्थिति अभी सामान्य नहीं हुई है. आज भी देशभर में रोजाना ६ हजार से अधिक मामले सामने आ रहे है.अनेक लोगों की कोरोना के कारण मृत्यु हो रही है. इस हालत में विद्यार्थियों के प्रति कोई रिस्क लेना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता.

सरकार जब तक यह साबित नहीं कर देती कि कोरोना संक्रमण की स्थिति अब नियंत्रण मेें है तब तक शालाएं आरंभ करने का सोचना भी गलत है. रोजाना बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए बार-बार लॉकडाऊन जैसा अस्त्र उपयोग में लाया जा रहा है. कहीं पर १५ दिन का लगातार लॉकडाऊन करने का निर्णय लिया जा रहा है तो कहीं पर तीन दिवसीय कफ्र्यू जैसा प्रयोग जारी है. बावजूद इसके संक्रमण की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. सरकार की इस संक्रमण को रोकने के लिए कौन सी प्रभावी योजना जारी नहीं की गई है. कभी लॉकडाऊन तो कभी अनलॉक प्रक्रिया में लोगों को उलझाकर रख दिया गया है. इस हालत में जब सामान्य नागरिक अपने भविष्य की दृष्टि से कोई नया कार्य आरंभ नहीं कर रहा है तब यह संकल्पना कैसे की जा सकती है कि शालाएं आरंभ की जाए. कोरोना का भय इतना अधिक है कि कुछ माह पूर्व तक अनेक विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए मुुंबई पूणे की ओर दौड़ लगाते थे. अब वे स्थानीय शाला महाविद्यालयों को प्राथमिकता दे रहे है. इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई के लिए भी अनेक विद्यार्थी शहर में ही प्रवेश चाहते है. जाहीर है विद्यार्थी भी इन दिनों कोरोना संक्रमण से भयभीत है. इसलिए वे विदेश यात्रा तो दूर पढ़ाई के लिए मुंबई-पुणे भी जाने में आनाकानी कर रहे है.

हाल ही में वंचित आघाडी ने मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे को कहा है कि लॉकडाऊन की प्रक्रिया के बारे में १० अगस्त तक निर्णय ले. अन्यथा उनकी पार्टी आंदोलनात्मक भूमिका अपनाएगी. यह भी सच है कि सरकार की ओर से कोई निर्णय नहीं लिए जा रहे है. जो कार्य मार्च के अंतिम सप्ताह में प्रभावित हुए थे वे आज भी प्रभावित है. अत: यह मान लेना कि स्थिति धीरे-धीरे सुधार की ओर बढ़ रही है. अत्यंत भ्रामक संकल्पना रहेगी. बीमारी का क्रम जारी है. स्वयं प्रशासन के पास अब संक्रमितों के उपचार के लिए जगह की व्यवस्था नहीं है. इसके लिए अनेक जिला व प्रशासन लॉज, होटल में आयसोलेशन के लिए व्यवस्था कर रहा है. निश्चित रूप से इस समय समूह संक्रमण का खतरा तीव्र हो गया है. इसलिए सबसे पहले प्रशासन का दायित्व है कि वह कोरोना संक्रमण रोकने के लिए आवश्यक उपाय करे. आज भी अनेक बस्तियों में सैनेटाइजर का उपयोग नहीं किया जा रहा है. जबकि इसके लिए अनेक यंत्रणाएं संबंधित कार्यालयों व स्थानीय निकायों के पास है. लेकिन उसका उपयोग नहीं हो रहा है. यह जरूरी है कि जब संक्रमण तीव्र रूप लेने लगा है तो हर बस्तियों में सैनेटाईजर का छिडक़ाव जरूरी है. लेकिन पाया जा रहा है कि यह छिडक़ाव भी नहीं हो रहा है. परिणामस्वरूप आए दिन जीवाणुओं की संख्या बढऩे लगी है. सडक़ो के किनारे व खुले मैदानो में गाजरघांस जैसी झाडिय़ा उग आयी है. लेकिन यहां भी छिडक़ाव का अभाव कायम है. यदि योग्य प्रबंध नहीं किए गये तो आनेवाले दिनों में मच्छरों का प्रादुर्भाव और भी तीव्र हो जायेगा. परिणामस्वरूप अनेक लोग डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के शिकार हो जायेंगे. इनमें से अनेक लोगों का कोरोना पॉजिटीव भी पाए जा सकते है. अभिप्राय यह कि प्रशासन शालाएं आरंभ करने की सोच रहा है. लेकिन वर्तमान में जिस तरह बीमारी का संक्रमण जारी है व योग्य उपाय योजना अमल में नहीं लायी जा रही है. जिससे बीमारी का खतरा बना हुआ है. जरूरी है कि सरकार और प्रशासन मिलकर इस बीमारी को दूर करने के लिए आवश्यक उपाय करें. हर बस्ती, हर गली में सैनिटाइजर का छिडक़ाव किया जाए. इससे जीवाणू नष्ट होने में सहायता मिलेगी.

कुल मिलाकर इस समय बीमारी का रूप तीव्र हो गया है. उससे निपटने के लिए प्रभावी उपाय योजना अति आवश्यक हो गई हैे. यदि इन उपाय योजनाओं पर अमल नहीं किया गया तो बीमारी का दौर कायम रहेगा.इस हालत में शाला महाविद्यालय आरंभ करने की प्रक्रिया घातक साबित हो सकती है. जरूरी है कि सरकार और प्रशासन इस बात की पुष्टि करे कि बीमारी से पूरी तरह निपटा जा रहा है तथा उसे नियंत्रण में ले आया गया है. यदि सरकार इस काम में सफल हो जाती है तो वह शालाएं आरंभ करे तो कोई गलत नहीं होगा.
यह भी एक सच है कि अनेक पालक बीमारी व लॉकडाऊन के कारण अपना कारोबार आरंभ नहीं कर पाए है. जिससे उनकी आर्थिक हालत भी कमजोर हो गई है. शालाएं आरंभ होने के बाद लगनेवाली फीस व अन्य बातों का कहां से वे जुगाड़ कर पायेंगे. इसलिए जरूरी है कि अनलॉक प्रक्रिया को सफल बनाते हुए सभी कार्य आरंभ किए जाए. व्यापारियों को राहत देते हुए उन्हें व्यापार करने दिया जाए तो आनेवाले समय में वे सक्षम हो सकेंगे.जरूरी है कि विद्यार्थियों को प्रयोगशाला बनाने की प्रशासन गलती न करें. सबसे पहले बीमारी पूरी तरह समाप्त हो गई है या नियंत्रण में आ गई है यह स्पष्ट होना चाहिए. इसके बाद ही विद्यार्थियों के लिए शालाएं आरंभ की जाए.

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