संपादकीय

प्रजातांत्रिक व्यवस्था से खिलवाड न हो

बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है. जिसमें कहा गया है कि आंदोलन प्रदर्शन के दौरान जिन लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होगी उन्हें सरकारी नौकरियों से वंचित रखा जायेगा. मुख्यमंत्री के इस निर्देश को लेकर लोगों में नाराजी है. बिहार में विपक्ष का मानना है कि सरकार एक ओर तो मांग करने के लिए आंदोलनों को प्रतिबंधित कर रही है. यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ खिलवाड है. क्योकि प्रजातंत्र में अपनी मांगे मनवाने के लिए अनेक प्रजातांत्रिक मार्गो का अवलंबन किया जाता है. जिसमें निवेदन सौपने से लेकर आंदोलनात्मक कदम उठाने तक की बात शामिल है. निश्चित रूप से जब प्रदर्शन या आंदोलन होते है तो निश्चित रूप से कुछ न कुछ बातों को लेकर आंदोलनकारियों के खिलाफ कारवाई भी होती है. ऐसे में यदि आंदोलन में शामिल किसी युवा के खिलाफ कार्रवाई होती है तो उसका सारा जीवन ही चौपट हो सकता है. जाहीर है युवा वर्ग कभी भी किसी अव्यवस्था के खिलाफ मुखर होता है. यह मुखरता आंदोलन के रूप में सामने आती है. संभव है इन आंदोलन के दौरान कुछ बातों को लेकर कार्रवाई भी की जाती है. हर आंदोलन शांतिपूर्ण नहीं हो सकता. जरूरी है कि प्रजातंत्र में लोगों को उनकी बात कहने का अवसर मिलना चाहिए. यदि इस पर रोक लगाई जाती है तो यह बात अत्यंत दु:खद है.
देश में मर्यादा के भीतर रहकर आंदोलन को किया जा सकता है. इसके लिए अनुमति लेना भी आवश्यक है. ऐसी हालत में यह प्रतिबंध लगाना कि आंदोलन के दौरान जिन लोगों के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल होती है. उन्हें सरकारी सेवाओं में शामिल होने का अवसर नहीं मिलेगा. प्रश्न यह उठता है कि यदि सरकार निवेदनों पर योग्य ध्यान न दे तो जनसामान्य की आवाज कैसे उन तक पहुंचेगी व उन्हें कैसे न्याय मिलेगा. यह प्रतिबंध लगाते समय अति आवश्यक है कि सरकार स्वयं ऐसा नियम पारित करे कि जन सामान्य की मांगों से जुडे जो भी निवेदन होंगे उस पर एक सप्ताह के भीतर ही सुनवाई की जायेगी तो लोगों को आंदोलन की नौबत ही नही आयेगी. लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं है. सरकारी कागजों में सामान्य नागरिक को उलझकर रह जाना पडता है. इसके लिए जरूरी है कि सरकार सबसे पहले यह व्यवस्था करे कि जन सामान्य की निवेदनों पर तत्काल गौर किया जाए. यदि पहले चरण में ही किसी सामान्य व्यक्ति की मांग की सुनवाई हो जाती है तो उसे अगला कदम उठाने की आवश्यकता नहीं पडती. लेकिन यह शोकांतिका है कि पहले चरण मे कई बार काम आरंभ ही नहीं होता. इसके लिए लोगों को कडे कदम उठाने पडते है .
कुल मिलाकर बिहार सरकार का निर्णय प्रजातांत्रिक दृष्टि से अनुकूल नहीं कहा जा सकता. इसके लिए लोगों को आंदोलन प्रदर्शन की आवश्यकता पडती है. आंदोलनों एवं प्रदर्शन को रोकना ठीक नहीं. इतना अवश्य किया जा सकता है कि सरकार आंदोलन की नियमावली तय करते समय यह बात विशेष रूप से उल्लेखित करे कि जो लोग आंदोलन के नाम पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचायेंगे. उन्हें सरकारी सेवाओ से वंचित रखा जायेगा. यदि ऐसा किया जाता है तो इससे सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा भी होगी व आंदोलनकारियों को ही अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा. सबसे ज्यादा उचित तो यह है कि जनसामान्य की समस्याओं को गंभीरता से लिया जाए. यदि वे अपनी समस्या लिखित रूप में पेश करते है तो उसे प्राथमिकता से ध्यान में लाया जाए. तत्काल सुनवाई कर समस्या का निराकरण किया जाए. यदि ऐसा किया जाता है तो लोगों को आंदोलन की आवश्यकता ही नहीं पडेगी. केवल बिहार ही नहीं सभी राज्य में यह व्यवस्था कायम होना जरूरी है. जिसके अंतर्गत जन सामान्य के प्रश्नों का निवेदन मिलते ही निराकरण आरंभ हो जाए. यथाशीघ्र मामले की सुनवाई कर समस्या का निराकरण हो.

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