संपादकीय

पर्यावरण की उपेक्षा

विगत एक वर्ष से कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन की ओर से पर्यावरण सुरक्षा के प्रति उदासीन रवैया अपनाया जा रहा है. परिणामस्वरूप बीते एक वर्ष में पर्यावरण की भारी क्षति हुई है. जिस रूप में पौधारोपण होना चाहिए था वह नहीं हो पाया. सड़क दिभाजक के बीच की जगह में अनेक पौधे रोपित किए गये है. लेकिन ग्रीष्मकाल में उन्हें योग्य प्रमाण में पानी नहीं मिल रहा है. जिसके कारण अनेक पौधे सूख रहे है. ग्रीष्मकाल में पौधों को पानी की सख्त आवश्यकता रहती है. लेकिन पानी का अभाव रहने के कारण या फिर पानी की कमी रहने से इन पौधों की देखरेख नहीं हो पा रही है. यही कारण है कि नागरिको की ओर से उन पौधों को बचाया जाने के लिए महानगरपालिका से अनुरोध किया गया है. वर्तमान में तापमान भी तेजी से बढ़ने लगा है. इससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर आ सकता है. यदि पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कदम उठाए जाते है तो पर्यावरण का संतुलन बनाये रखा जा सकता है. इन दिनों अनेक जंगलों में आग लगने की घटनाएं हो रही है. उसके पीछे मुख्य कारण क्या है. इसका पता लगाया जाना चाहिए. वन क्षेत्र में तपती धूप व कहीं- कहीं आग की घटनाओं के कारण वन्य पशुओं का अस्तित्व भी संकट में आ गया है. इसलिए वनक्षेत्र में आग को रोकने के लिए भी सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए. वनक्षेत्र में यदि हर वर्ष इस तरह की आग लगती है तो वहां पर स्थायी तौर की व्यवस्था की जानी चाहिए. पाया जाता है कि हर वर्ष आग की घटनाएं मेलघाट के जंगलों में होती है. यदि आग की घटनाओं को रोकने के लिए सार्थक प्रयास किए जाते है तो इन घटनाओं पर रोक लग सकती है. आमतौर पर पाया जाता है कि ग्रीष्मकाल के समय वन्य पशुओं को योग्य जल व शीतल छाया न मिलने के कारण वे रिहायशी इलाको में चले जाते है. इसके लिए सरकार की ओर से अनेक प्रयास किए जा रहे है कि वन्यक्षेत्र में वन्य पशुओं के लिए जगह-जगह पानी के पोखर आदि की व्यवस्था की गई है. इससे वन्यपशुओं को पेयजल तो मिल जायेगा. लेकिन उन्हें शीतल छाया मिलना कठिन रहेगा. आज महाराष्ट्र के अनेक जिले में राष्ट्रीय महामार्ग का कार्य जारी है. इस कार्य को करते समय पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा जा रहा है. इस बारे में केन्द्रीय महामार्ग समिति के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इस बात को लेकर नाराजी दिखाई है कि, महामार्ग पर अनेक ठेकेदारों की ओर से पौधे रोपित नहीं किए गये है. हालाकि नियम है कि यदि निर्माण कार्य में एक पौधा हटाया जाता है तो उसकी जगह तीन नये पौधे रोपित किए जाने चाहिए. लेकिन इस बारे में कोई कदम नहीं उठाये गये है.
महाराष्ट्र में हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिन के उपलक्ष्य में हजारो पौधे रोपित किए जाते है. इसे एक अभियान का रूप देकर बड़े पैमाने पर पौधे रोपित करने का कार्य किया जाता है. लेकिन बीते वर्ष से इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो पाया. हर वर्ष पर्यावरण दिन के लिए हजारों पौधे रोपित करने का संकल्प किया जाता था. लेकिन इस वर्ष यह कार्य नहीं हो पाया है. परिणामस्वरूप धूप की सीधी तपन लोगों के सिर पर आती है. इस समय यदि पर्याप्त प्रमाण में पौधे लगे रहते तो लोगों को कठिनाई नहीं होती. क्योंकि पेड़ पौधों की छाया पाकर लोगों को राहत मिलती है.
इस वर्ष ग्रीष्मकाल की तपन अधिक रहने की संभावना है. ऐसे में लोगों में भय है कि पर्यावरण का संतुलन न खो जाए. आज जो महामारी अपना विकराल रूप दिखा रही है. इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण घटक शुध्द हवा का होना है. यदि लोगों को शुध्द हवा मिलती है तो उनकी बीमारी को रोका जा सकता है. पर्यावरण के साथ साथ जल संधारण के कार्य भी अभी गतिशील नहीं हुए है. यही कारण है कि ग्रीष्मकाल में हर वर्ष जलसंकट का भी सामना करना पड़ता है. पर्यावरण व जलसंधारण दोनों एक दूसरे से जुड़े है. पहले बड़े पैमाने पर पेड़ पौधे रहने से भूगर्भ में पानी की सतह बनी रहती है. लेकिन अब अनेक स्थानों पर विकास के नाम पर हरे भरे पेड़ों को नष्ट कर दिया जा रहा है. जिससे आनेवाले समय में जलसंकट की भी स्थिति निर्माण होगी. इस हालत में जरूरी है महामारी से निपटते समय पर्यावरण की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाए. यदि वातावरण अनुकूल रहता है तो वह अनेक बीमारियों को अपने आप नष्ट कर देता है. इसलिए जरूरी है कि लोगों को शुध्द हवा एवं शुध्द वातावरण मिले. इसलिए पर्यावरण एवं जलसंधारण जैसे अभियानों को गति दी जाए. कुल मिलाकर अनेक बीमारियों के लिए पर्यावरण की क्षति भी जिम्मेदार है.
अत: इस क्षति को रोकने के लिए हर किसी को सार्थक प्रयास करने होेगे. इसके लिए हर वर्ष जो पौधारोपण अभियान छेड़ा जाता है उसे नियमित रखा जाना चाहिए. साथ ही पर्यावरण के लिए कार्यरत संस्था को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. वर्तमान में सभी धार्मिक, सामाजिक कार्यो में रोक लगी है. जबकि पर्यावरण व अन्य भूगर्भ से जुड़े कार्यो को इस समय गति देना जरूरी है. अनेक सामाजिक संस्थान इससे पूर्व जगह-जगह पौधारोपण कर वातावरण को शुध्द बनाने का कार्य कर रहे थे. लेकिन संक्रमण के दौर में उनके कार्यो को भी अवरूध्द किया गया है. इसलिए जरूरी है कि प्रशासन पौधारोपण जैसे अभियान को जारी रखे. जो संस्थाएं उसे योगदान देती है उन्हें प्रोत्साहित करे तो निश्चित रूप से पर्यावरण की जो समस्या निर्मित हो रही है उसे दूर किया जा सकेगा व बीमारी महामारी के संकटों को भी टाला जा सकेगा.

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