संपादकीय

महंगी हुई रसोई

वर्तमान में आम नागरिको की जीवन समस्या व सरकारी स्तर पर विभिन्न वस्तुओं की दरों में हो रही बढोतरी का विरोधाभास कायम है. एक ओर तो लॉकडाउन, कोरोना संक्रमण तथा संक्रमण रोकने की दृष्टि से जारी बंधनों के कारण समूचे देश का खासकर मध्यम एवं आर्थिक दृष्टि से पिछडे वर्ग का जीवन समस्याओं का पुलिंदा बन चुका है. रोजगार का अभाव प्रकारांतर में आय के संसाधनों का समाप्त होना वहीं दूसरी ओर रसोई में उपयोग में आनेवाले अनाज की दरों में तेजी का सिलसिला लोगों की हालत दयनीय कर रहा था. ऐसे में रसोई गैस की दरों में फिर से बढोत्तरी की गई है. खास यह है कि रसोई गैस की दरें एक माह में तीसरी बार बढी है. निश्चित रूप से बढोत्तरी का क्रम जारी है. लेकिन लॉकडाउन के कारण जिन लोगों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है. उन्हें राहत प्रदान करने के लिए कोई घोषणा नहीं की गई है. रसोई गैस की दरों में बढोत्तरी से सामान्य व्यक्ति का जीना कठिन हो गया है. आम नागरिक वैसे भी महंगाई के कारण त्राही-त्राही कर रहा था. गैस सिलेंडर की दरों में बढोत्तरी ने उसे और तोड दिया है. इसका सीधा असर महिलाओं के बजट पर हुआ है. उनका घरेलू बजट प्रभावित हुआ है. जिसके कारण घर की अर्थव्यवस्था कैसे संभाली जाए. इस बात को लेकर महिलाएं चिंतित है. उन्हें यह भी पता है कि निकट भविष्य में कोई चुनाव नहीं है. जिसके चलते उनकी पीडाओं को समझने की न तो प्रशासन कोशिश करेगा और न ही सरकार. इस हालत में बढती महंगाई को अपनी नियति मान लेना महिलाओं के सामने एकमात्र विकल्प है.
बीते एक वर्ष से कोरोना संक्रमण के चलते देशभर में विशेषकर महाराष्ट्र में भारी आर्थिक अनुशेष निर्माण हुआ है. संक्रमण के कारण जिन लोगों का व्यवसाय प्रभावित हुआ उन्हें राहत प्रदान करने की दृष्टि से सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गये. परिणामस्वरूप सामान्य नागरिक का जीवन भी प्रभावित होने लगा है. रोजगार के अभाव में घर के बजट नियंत्रित करना कठिन हो गया है. वहीं पर विद्यार्थियों को शिक्षा देना भी एक जटिल प्रश्न के रूप में सामने आ रहा है.खासकर कोरोना महामारी की चर्चा में हर कोई उलझ गया है. प्रशासन का कहना है कि लोगों का जीवन बचाने के लिए उन्हें यह लॉकडाउन जैसा कदम उठाना पडा है. यदि लॉकडाउन के बाद संक्रमण में कमी आती है तो इसे दाग अच्छे है माना जा सकता है. लेकिन पाया जा रहा है कि लॉकडाउन के बाद भी संक्रमण में कोई कमी नहीं आ रही. स्पष्ट है कि कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन यह उपाय नहीं हो सकता. यदि उपाय होता तो संक्रमितों का आंकडा दिनों दिन कम होना चाहिए था. लेकिन वह या तो बढ रहा है या फिर पुराने आंकडे के आसपास ही घूम रहा है. इस हालत में बीमारी रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है. इस बारे में प्रशासनिक स्तर पर समीक्षा के साथ जनसामान्य को भी इस समीक्षा में शामिल किया जाना चाहिए. उनके सुझाव पर भी ध्यान देना जरूरी है. प्रशासन की ओर से रोजाना बीमारी को लेकर आंकडेवारी व बचाव संबंधी उपाय के नाम पर फरमान जारी किए जा रहे है. यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि लॉकडाउन जीवनावश्यक वस्तुओं की बिक्री का समय भी कम किया जा सकता है. इससे जनजीवन पर प्रभाव तो पडेगा ही. अत: बीमारी से बचाव के लिए योग्य प्रयास किए जाने चाहिए. कोरोना को रोकने के लिए वैक्सिन का दूसरा चरण आगामी 1 मार्च से आरंभ हो रहा है. जो क्षेत्र कोरोना से अत्याधिक प्रभावित है. वहां पर यह वैक्सिन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराया जाना चाहिए. क्योंकि कुछ हद तक वैक्सिन से उम्मीद की जा सकती है कि इस बीमारी पर नियंत्रण मिल सकता है. अत: सरकार को चाहिए कि जो क्षेत्र हॉटस्पॉट बन चुके है उन्हें प्राथमिकता से वैक्सिन प्रदान किए जाए.
कुल मिलाकर बीमारी का यह सिलसिला चरम पर पहुंच रहा है. ऐसे में इसे रोकने के लिए हर स्तर पर प्रयास जरूरी है. प्रशासन को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि क्या केवल लॉकडाउन ही इस बीमारी को राकने का एकमात्र हल है या लोगों को बीमारी से बचाव के लिए जागरूक किया जाना चाहिए. पिछली बार कोरोना संक्रमण के समय कोरोना के लक्षण, बचाव के उपाय, कोरोना संक्रमण रोकनेवाला काढा (मालेगांव पैटर्न) आदि के फलक लगाकर लोगों को जागृत किया गया था. इस बार यह सब बाते नजर नहीं आ रही है. अत: संक्रमण को रोकने के लिए जहां प्रशासनिक कडाई जरूरी है वही पर जनसामान्य में जागृति भी आवश्यक है. यह यदि किया जाता है तो संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है.

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