संपादकीय

आत्मविश्वास से ही चुनौती का सामना

कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में लगातार दूसरी बार रामनवमी का पर्व सादगीपूर्ण तरीके से घरों में मनाया गया. प्रतिवर्ष रामनवमी का पर्व देशभर के विभिन्न मंदिरों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता था. किंतु वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण की शुरूआत होने के चलते देशव्यापी लॉकडाउन जारी किया गया था. जिसके चलते पर्व को लोगों ने घरों में पूजा अर्चना कर सादगीपूर्ण तरीके से मनाया. इस वर्ष भी यही स्थिति कायम है. बल्कि इस वर्ष कोरोना संक्रमण का स्वरूप गत वर्ष की अपेक्षा तीव्र है. जिसके चलते इस वर्ष भी सादगीपूर्ण तरीके से यह पर्व मनाया जा रहा है. कई बार लोगों को यह संदेह होता है कि कोरोना संक्रमण क्या इतना प्रभावी हो गया है कि रामजन्मोत्सव पर भी उसका साया दिखाई दिया. सच तो यह है कि पहले यह जन्मोत्सव मंदिरों में सामूहिक रूप में मनाया जाता था. लेकिन अब राम स्वयं लोगों के घरों में पहुंच गये है तथा घर के सभी सदस्य आस्थापूर्वक इस जन्मोत्सव का आनंद लेते हुए दिखाई दिए. आध्यात्म की मूल कल्पना भी यही है कि मन में राम बसालो. इस संकल्पना को कोरोना संक्रमण के कारण साकार होने का मौका मिला है. पर्व यह हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है. जिसका पालन हर किसी को करना है तथा हर कोई कर भी रहा है. भले ही आपदाकाल होने के कारण रामजन्मोत्सव नहीं मनाया जा सका हो पर रामजन्म अवश्य मनाया जा रहा है. भक्ति की पराकाष्टा यही है कि हृदय में ही भगवान विराजमान हो. जिस तरह राम दरबार में किसी के यह पूछने पर कि तुम्हारे हृदय में राम बसते है तो प्रभु के अनन्य भक्त हनुमान जी ने न केवल स्वीकारोक्ति दी. बल्कि हृदय चीरकर राम लक्ष्मण सीता हृदय में बसे होने का स्वरूप दिखा दिया. निश्चित रूप से रामजन्म उत्सव में इस बात का हर किसी को अहसास हुआ होगा. राम जन्म के समय अनेक परिवारों में विधिवत पूजा अर्चना की गई. साथ ही विश्व में मंगल हो इसकी कामना भी की गई.
आध्यात्म की यह सुंदर उपलब्धि है कि जनहित में हम किसी के लिए प्रार्थना करे तो वह तत्काल स्वीकार हो जाती है. इसलिए पर्व की संस्कृति को व्यापक स्वरूप भले ही न मिला हो किंतु लोगों के दिलों मेें इस पर्व के प्रति हर्ष का माहौल रहा व लोगों ने भले ही घरेलू स्तर पर इस पर्व का स्वागत किया. किंतु वे राम को विस्मरित नहीं कर सके. क्योंकि राम हर किसी की आत्मा में बसे हुए है. इस बात का अहसास प्रखरता के साथ लोगों ने किया. आज जिस तरह हर कोई संक्रमण से भयभीत है. अनेक उपाय योजना भी कर रहा है. बावजूद इसके संक्रमण समाप्त नहीं हो पा रहा है. उसका स्वरूप और भी तीव्र होता जा रहा है. लेकिन जिन लोगों को आध्यात्म का आधार है. वे आज भी अपना मनोबल कायम रखे हुए है. इस रामनवमी के अवसर पर हर किसी यह प्रार्थना करनी चाहिए कि देश में जो संक्रामक बीमारी का यह दौर शीघ्र ही समाप्त हो. वैसे भी पूजा के अंत मेें जयकारा लगाते समय कहा जाता है कि सभी जीवों का कल्याण हो. अब तक भले ही इन शब्दों का इस्तेमाल औपचारिक रूप से होता था. लेकिन अब यह प्रार्थना अति आवश्यक हो गई है. जैसा कि आरंभ से ही लोगों को मत रहा है कि जो काम दवाई से नहीं हो सकता वह दुआ से पूरा हो सकता है. इसलिए रामनवमी के अवसर पर हर किसी को चाहिए कि वे विश्व कल्याण के लिए प्रार्थना करे.
कुल मिलाकर वर्तमान समय भले ही जटिल साबित हुआ है. लेकिन इस जटिलता ने भी काफी कुछ सिखा दिया है. हमारी परंपरा हाथ जोड़कर नमस्कार की थी लेकिन हमने पाश्चात संस्कृति का अनुकरण करते हुए उसे हाथ मिलाने में तब्दील कर दिया. कोरोना के संक्रमण ने आज फिर उसी स्थान पर ला दिया है. अब हम अपने स्नेहीजन से मिलते समय शेक हेण्ड की बजाय नमस्कार को ही प्राथमिकता देने लगे. बेशक बीमारी का दौर आज लोगों को परेशान किए हुए है. लेकिन जब लोगों के मन में आत्मविश्वास बढ़ जायेगा तब निश्चित रूप से यह दौर भी बदल जायेगा. मानवी जीवन में अनेक उतार चढ़ाव जुडे हुए है. लेकिन मानव ने ही सभी समस्याओं का हल खोज निकाला है. यह समय जो लोगों के लिए चुनौती की घड़ी बन गया है. वह भी निकल जायेगा. इसके लिए हमें आत्मविश्वास के साथ चुनौती का सामना करना है. यह आत्मविश्वास अध्यात्म से ही मिल सकता है. क्योंकि आध्यात्म ही हमें इस बात का अहसास दिलाता है कि,
‘कौन सो काज कठिन जग माही, जो नहीं तात होई तुम पाही’ . अभिप्राय यह वर्तमान स्थिति हमें भयभीत करने का प्रयास कर रही है. लेकिन हमेंं भयभीत न होकर आत्मविश्वास से उसका सामना करना है.

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