संपादकीय

किसानों की आत्महत्या

राष्ट्रीय स्तर पर एक ओर किसानों की दशा सुधारने के लिए कृषि विधेयक पारित किया गया है. जिसमें किसान अपनी फसल को मनचाही जगह में बेच सकता है. जिससे किसानों एवं उपभोक्ता के बीच जो बिचौलिए रहते है, उनसे किसानों को मुक्ति मिलेगी. लेकिन मौसम पर आधारित देश की खेती में यदि फसल उत्पादित ही नहीं हुई या उत्पादन के बाद अतिवृष्टि अथवा सूखे के कारण नष्ट हो जाए तो किसान के हित में जारी इस विधेयक का भी कोई लाभ नहीं मिलेगा. लगातार बरसात के कारण फसल नष्ट होने से अमरावती के दो युवा किसानों ने गुरूवार को आत्महत्या कर ली. धामणगांव रेल्वे तहसील के बोरगांव निस्ताने गांव निवासी प्रीतम ठाकरे नामक ३० वर्ष किसान के पास दो एकड़ खेत है. खेत में बारिश का पानी घुस जाने के कारण पूरी फसल पीली पड़ गई. सारी मेहनत बरबाद होती देख किसान अत्यंत निराश हो गया एवं उसने घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इसी तरह उसल गव्हाण गांव में दीपक डफले नामक २५ वर्षीय किसान ने कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या की. इस किसान ने अपने पांच एकड़ खेत में सोयाबीन व तुअर की बुआई की थी. लगातार बरसात में उसकी फसल को पूरी तरह बरबाद कर दिया. किसान पर बैंक का २ लाख रूपये कर्ज था. आर्थिक समस्याओं में घिर जाने के कारण व फसलों की बरबादी के कारण किसान ने आत्महत्या की. यह तो केवल एक ही जिले की घटना है. जबकि देश के अधिकांश जिले में विशेषकर विदर्भ में इस तरह की घटनाए आम हो गई है. क्योकि किसानों के हित में सभी राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी-बड़ी घोषणाए की जाती है. लेकिन हकीकत में किसानों को कुछ नहीं मिलता. कहने को तो सरकार ने किसानों के हित में किसान सम्मान योजना आरंभ की है. जिसमें प्रतिवर्ष ६ हजार रूपये किसानों को दिए जाते है. गणित के हिसाब से हर माह ५०० रूपये किसानों को मिल रहे है. इन ५०० रूपयों में किसान की हालत नहायेगा क्या? निचोड़ेगा क्या? जैसी हो गई है. बेशक जहां कुछ नहीं मिल रहा था वहां पर कुछ तो मिल रहा है पर ऊंट के मुंह में जीरा किस हद तक उसकी आवश्यकता पूरी कर सकता है. इस बारे में भी चिंतन अति आवश्यक था. इधर कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है. चुनाव के लिए करोड़ों रूपये खर्च किए जाते है तो किसानों के हित में कोई ठोस राशि क्यों नहीं खर्च की जाती.
किसानों को सरकारी सहायता देने की बात कही जाती है. लेकिन सरकारी सहायता का मिलना भी किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है. आपदा कुछ ही घंटों में आकर सारा तहस-नहस कर देती है. पीडि़त किसान को सहायता के लिए अनेक जटिलताओं से गुजरना पड़ता है. सबसे पहले तो सरकारी सर्वेक्षण किया जायेगा. इसमें पटवारी के मरीज के अनुसार नुकसान का आकलन किया जाता है. यह कार्य कुछ घंटों में पूरा नहीं होता. इस कार्य के लिए महिनों लग जाते है, ऐसे में पीडि़त किसान को एक लंबी प्रक्रिया के बाद सहायता मिलती है तो वह किस काम में आयेगी. हाल ही में बरसात के कारण सोयाबीन की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है. अतिवृष्टि के कारण थोड़े दिन में सोयाबीन अंकुरित हो जाता है. इस बार भी ऐसा ही हुआ. बीच में एक सप्ताह बरसात नहीं थी. जिसके कारण अनेक किसानों ने सोयाबीन को काटकर खलिहान में जमा किया था. लेकिन फिर से बरसात ने जोर पकड़ा. जिससे किसानों की फसल नष्ट हो गई. किसान अब फसल की नुकसान भरपाई देने की मांग सरकार से कर रहे है. यह नुकसान भरपाई तभी संभव हो पायेगी जब पूरी तरह सर्वेक्षण होकर किसान के नुकसान का आंकड़ा तय किया जायेगा. इस लंबी प्रक्रिया से गुजरने के लिए किसान की कोई तैयारी नहीं है. इसलिए किसानों की मांग है कि सरकार तत्काल उन्हें सहायता प्रदान करे. सर्वेक्षण सहित अन्य औपचारिकताएं बाद में पूरी की जा सकती है. लेकिन सरकारी तंत्र अपने हिसाब से चलता है. आरंभिक दौर में सर्वेक्षण किया जायेगा.उसके बाद नुकसान की राशि तय होगी व इन सबके बाद किसान को सहायता मिल पायेगी. निश्चित रूप से यह प्रक्रिया किसानों की समस्या पर जले पर नमक छिड़कने जैसी है.
कुल मिलाकर देश में इन दिनों विभिन्न समस्याओं पर पूरी तरह ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन किसानों को हाशिये पर रखा गया है. परिणाम स्वरूप किसानों को एक ओर नुकसान और दूसरी ओर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह किसानों को तत्काल सहायता प्रदान करे. इससे किसानों का मनोबल बना रहेगा. फसले बरबाद होने के कारण युवा किसानों को भी आत्महत्या करनी पड़ रही है. यह हमारी विकास की घोषणओं में बहुत बड़ी सेंध है. जरूरी है कि किसानों की समस्या को प्राथमिकता दी जाए. उस पर गंभीरता पूर्वक चिंतन कर योग्य मार्ग खोजा जाए. किसानों की पीड़ा यह अपने आप में काफी मायने रखती है. किसानों के नाम पर हर कोई चुनाव लड़ता है. किसानों को सहायता किए जाने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा है, ऐसे में किसानों की निराशा दूर नहीं हो सकती. सरकार को स्वयं स्फूर्त होकर किसान की समस्या को दूर करने के लिए आगे आना जरूरी है. अन्यथा आए दिन किसानों की आत्महत्या सुर्खिया बनने में समय नहीं लगेगा.

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