संपादकीय

जिम्मेदारी पूर्वक करे लॉकडाउन का पालन

कोरोना संक्रमण के बढते आकडो के चलते घोषित लॉकडाउन की गंभीरता को समझते हुए नागरिक इसका पालन जिम्मेदारीपूर्वक करे. क्योंकि पाया गया है कि इस दौर में अमरावती में कोरोना संक्रमितों की संख्या राज्य के अन्य जिले में कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या से अधिक है. इस संख्या मेें रोजाना इजाफा हो रहा है तथा संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है. ऐसे में प्रशासन को कोई न कोई ऐसा कदम उठाना आवश्यक हो गया है. जिसके अतंर्गत लोगों का संपर्क टूटे और कोरोना की जो चेन बन रही है. वह खंडित हो जाए. हजार के करीब रोजाना कोरोना पीडितों के आंकडे सामने आ रहे है. इतने आकडे तो उस समय भी सामने नहीं आए थे. जब पहलीबार लॉकडाउन लगाया गया था. इस समय अनेक नागरिक बढते आकडो को लेकर न केवल चिंतित है बल्कि भयभीत भी है. जिसके चलते बीमारी पर नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाना अति आवश्यक हो गया था. इसके चलते प्रशासन की ओर से 22 फरवरी की रात से लॉकडाउन आरंभ कर दिया गया है. यह लॉकडाउन 1 मार्च की सुबह तक जारी रहेगा. इस बीच प्रशासन ने लॉकडाउन का पालन हो इसके लिए अनेक प्रयास कर रहा है. पुलिस बंदोबस्त से लेकर सोशल डिस्टेंसिंग आदि के विषय में गंभीरता से कदम उठा रही है. जगह-जगह पुलिस का व्यापक बंदोबस्त है. इसी तरह लोगों को बार-बार सोशल डिस्टेसिंग के पालन की हिदायत दी जा रही है. साथ ही त्रिसुत्री कार्यक्रम के पालन का भी निर्देश दिया जा रहा है. लोगोें की ओर से भी इसका पालन हो रहा है. निश्चित रूप से यह क्रम चलता रहा तो बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
लॉकडाउन से एक दिन पूर्व लोगों ने खरीददारी के लिए बाजार में भारी भीड की थी. इसके लिए आमतौर पर नागरिको को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. लेकिन यहां यह भी चिंतनीय है कि इतनी भीड क्यों बढ रही है. शनिवार की शाम से सोमवार की सुबह तक कर्फ्यू लगाया गया था. इस दौरान लोगों को आवश्यक चीजों की खरीददारी से वंचित रहना पडा था. रविवार को ही इस बात की घोषणा हो गई थी कि सोमवार की रात से फिर से लॉकडाउन लागू हो रहा है. जिले में एक ऐसा बहुत बडा वर्ग है जो रोज कमाता और रोज खाता है. इस हालत में उसके पास जमा सामग्री के तौर पर कुछ भी नहीं रहता. केवल 12-13 घंटे का समय खरीददारी के लिए मिलने की जानकारी मिलते ही लोगों की भीड बाजारों में उमड पडी. ऐसे में कुछ हद तक प्र शासन को भी जिम्मेदार माना जा सकता है. एकाएक कोरोना की घोषणा से अनेक परिवार सक्ते में आ गये. फरवरी माह का अंतिम सप्ताह होने के कारण अनेक घरों में जीवनावश्यक वस्तुएं समाप्त हो गई है. उन्हें वस्तुओं का संग्रह करना आवश्यक हो गया था. क्योंकि 7 दिनों का लॉकडाउन घोषित होने के कारण हर नागरिक चाहता है कि उसके घर भूखमरी की नौबत न आए. इसलिए वह जीवनावश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिए टूट पडा. इसका ही असर रहा है कि बाजारों मे एकाएक लोगों की भीड उमड पडी.यही कारण है कि सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं हो पाया. जरूरी था कि सरकार लॉकडाउन घोषित करने से पहले लोगोें को जरूरत की वस्तुए खरीदने के लिए पर्याप्त समय देती जिससे भीड नहीं उमडती. इस बार वे सेवाभावी संस्थाएं भी जरूरतमंदों को योगदान देने के लिए आगे नहीं आयी है. परिणामस्वरूप जिन लोगों का डेरा सडक पर है उन लोगों को परेशानियों का सामना करना पड रहा है. प्रशासन की ओर से भी जरूरतमंदों को सहायता देने की दृष्टि से कोई कदम नहीं उठाए गये है. इस हालत में प्रशासन को चाहिए कि लॉकडाउन के दौरान किसी व्यक्ति को आवश्यक वस्तुओं की जरूरत है. उसे पूरा करने की दिशा में काम किया जाना चाहिए. पिछले लॉकडाउन में अनेक संस्थाएं जरूरतमंदों के लिए आगे आयी थी. जिससे वह लॉकडाउन लोगों को अखरा नहीं था. लेकिन इस बार कोई विशेष सहायता नहीं दी जा रही है. जिसके कारण सामान्य नागरिक परेशान है. विशेषकर गरीब तबके के लोगों के लिए यह लॉकडाउन समस्या निर्माण करनेवाला साबित हो रहा है. कुल मिलाकर लॉकडाउन आरंभ हो गया है. संभव है कमजोर वर्ग के लोगों को इस लॉकडाउन से रोजगार तथा जीवनयापन की समस्या से गुजरना पड सकता है. जान है तो जहान है. इस बात को ध्यान में रखते हुए लोगों को चाहिए कि वे कठिनाईयो के बावजूद इस लॉकडाउन का जिम्मेदारी पूर्वक पालन करे. ताकि लॉकडाउन के लक्ष्य को साध्य किया जा सके.

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