संपादकीय

हरित क्षेत्र का विकास

जिले व शहर में हरित क्षेत्र के विकास व संवर्धन करने के निर्देश जिलाधीश शैलेश नवाल ने दिए है. निसर्ग से संबंधित पंचतत्व पर आधारित माझी वसुंधरा अभियान राज्य के 667 शहरों में कार्यान्वित किया जा रहा है. जिले की सभी नगरपालिकाएं व नगर पंचायतों को अभियान के प्रभाव अमल का आवाहन किया गया है. वर्तमान में जिस तरह पर्यावरण का नुकसान हो रहा है. उसे देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि हरित क्षेत्र के विकास में हर कोई योगदान दे. पर्यावरण की क्षति यह भविष्य मे मानवीय अस्तित्व के लिए घातक साबित हो सकती है. आज ही अनेक शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ चुका है. अनेक राज्यों में बढते प्रदूषण को देखते हुए प्रयास आरंभ कर दिए गये है. लेकिन जिस रूप में पर्यावरण संतुलन का प्रयास होना चाहिए वह नहीं हो पा रहा है. यह भी सच है कि जिस रफ्तार से प्रदूषण बढ रहा है. उसे देखते हुए जो प्रयास होना चाहिए वह नहीं हो पा रहे है. नियमानुसार यदि कहीं एक पेड काटा जाता है तो उसके बदले में तीन पौधे रोपित करने का प्रावधान है. बावजूद इसके पेडो की कटाई तो हो रही है. लेकिन उस प्रमाण में पौधारोपण नहीं हो रहा है. इससे पर्यावरण का संतुलन दिनोंदिन बिगडता जा रहा है. इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण के संवर्धन के लिए योग्य प्रयास किए जाए. लेकिन अभी इन प्रयासों में गति नहीं आयी है. जरूरी है कि पर्यावरण संतुलन के लिए पौधों को रोपित किया जाना चाहिए
सरकार ने जिस तरह हरित क्षेत्र बढाने का निर्णय लिया है तथा इस बारे में अभियान भी आरंभ कर दिया है.निश्चित रूप से वसुंधरा बचाव की दिशा में यह महत्वपूर्ण कार्य है. यदि पर्यावरण का संतुलन रहता है तो प्राकृतिक गतिविधिया भी सामान्य रहती है. बीते कुछ वर्षो में पर्यावरण की क्षति हो रही है जिससे सामान्य व्यक्ति को कठिनाई का सामना करना पड रहा है. जिलाधीश द्बारा शहर और जिले में वसुंधरा अभियान छेडा जा रहा है. उससे आनेवाले दिनों में लोगों को पर्यावरण की समस्या से निजात मिल सकती है. पहले शहर में अनेक स्थानों पर पौधारोपण किया जाता था. इस कार्य में सरकार की ओर से भी सहयोग मिलता था. लेकिन अब पर्यावरण प्रेेमियों ने पाया कि उनके द्बारा किए जा रहे कार्यो को योग्य प्रतिसाद सरकार की ओर से नहीं दिया जा रहा है. सरकार को चाहिए जो सेवाभावी संस्थाएं पर्यावरण की दिशा में कार्य कर रही है उन्हें योग्य सहायता दी जानी चाहिए.बीते कुछ वर्षो में पर्यावरण संतुलन की दिशा में कार्य सीमित हो गये है. यही कारण है कि नये रूप से पौधारोपण नहीं हो पा रहा है. यदि पौधारोपण हो जाता है तो वातावरण में एक खुशनुमा स्थिति निर्माण हो सकती है. इससे परिसर भी हराभरा नजर आयेगा व लोगों को एक सुंदर वातावरण भी मिलेगा. वर्तमान में जो मौसम में बदलाव नजर आ रहे है वह पर्यावरण के प्रति उपेक्षा का नतीजा है. क्योंकि पर्यावरण केवल सृजन में ही विश्वास रखता है. एक पेड कभी इस बात की गिनती नहीं करता कि उसके कितने फूल लोगों ने तोडे है वह रोजाना नये फूल के निर्माण में सक्रिय हो जाता है. यही कारण है कि पेड पौधे सदैव से ही लोगों के हितकारी रहे है. लेकिन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए अनेक पेडो को धराशाही कर दिया. जिससे अब पर्यावरण का संकट निर्माण होने लगा है.
शहर में हरित क्षेत्र बढाने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह इसमें जनसहभागिता भी रखे. क्योंकि केवल प्रशासन के भरोसे ही कार्य नहीं हो सकता. जनसामान्य का सहयोग भी जरूरी है. बीते वर्ष तक राज्य सरकार द्बारा पौधारोपण अभियान छेडा जाता था. खासकर पर्यावरण दिवस के अवसर पर करोडो पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा जाता था. इस वर्ष कोरोना का संक्रमण रहने के कारण यह अभियान नहीं छेडा गया. पर्यावरण का यदि योग्य जतन किया जाता है तो अनेक महामारियों से भी बचा जा सकता है. इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण के प्रति हर कोई अपनी सजगता का परिचय दे. कार्यक्रमों में लोगों का स्वागत पेड पौधे से किया जाए. इसके अलावा खुशी एवं स्मृति दिवस जैसे अवसर को पौधा रोपण कर मनाया जाए. इससे लोगों में पर्यावरण के प्रति प्रेम जागृत होगा.
कुल मिलाकर प्रशासन ने जो हरित क्षेत्र बढाने का निर्णय लिया है वह सराहनीय है. इस निर्णय में जनसहभागिता भी आवश्यक है. इसके लिए जो सेवाभावी संस्थाएं पर्यावरण की दिशा में कार्य कर रही है. उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वे पर्यावरण के लक्ष्य को साध्य करने में अपना योगदान दे. वैसे भी शहर को सुंदर व स्वच्छ बनाने के लिए हरियाली आवश्यक है. यदि जिले में हरित क्षेत्र बढाया जाता है तो इसका सार्थक परिणाम होगा. इसके लिए नागरिको एवं प्रशासन को संयुक्त रूप से प्रयास करना होगा. सामाजिक संस्थाएं भी इस दिशा में अपना योगदान दे. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं के योगदान से इस कार्य को गति मिल सकती है. अधिकाधिक प्रमाण में पौधारोपण होना चाहिए जिससे शहर व जिले में हरियाली नजर आए.

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