संपादकीय

बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति

कोरोना में ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था में लॉकडाऊन में सामाजिक संपर्क से दूर रहने के अब खतरनाक परिणाम सामने आने लगे है. विगत ६ माह से कोरेना के संक्रमण के चलते व्यापार, रोजगारा आदि की स्थिति जटिल हुई है. जिसके कारण अनेक परिवार आज भी कठिनाईयों से जूझ रहे है. अनलॉक की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई है. लेकिन महामारी में इस डर से व्यापार को वह रौनक नहीं मिल पा रही है जो लॉकडाऊन से पहले थी. बेशक कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाऊन की स्थिति को जायज कहा जा सकता है. संक्रमण रोकने के लिए ही लॉकडाऊन किया गया था. जिसके कुछ परिणाम भी सामने आए. उस समय जब लॉकडाऊन जारी था तब लोगों ने स्वयं का बचाव करने के लिए घरों पर रूककर सरकार के आग्रह को स्वीकार किया. परिणामस्वरूप बीमारी अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हो पायी है. लेकिन जब से बाजार खुला है तब से कोरोना मरीजों की संख्या और भी तेजी से बढ़ रही है. ऐसी हालत में लोगों में इस बात का भय है कि सरकार फिर से लॉकडाऊन जैसी स्थिति तो निर्माण नहीं करेगी. यही कारण है कि अनेक लोग जिनकी कोरोना काल में नौकरियां चली गई वे रोजगार तो करना चाहते है लेकिन उन्हें भय है कि सरकार फिर से लॉकडाऊन न करे. यदि वे आज छोटा भी कारभार करना चाहते है तो उन्हें डर रहता है कि जिस मेहनत से वे व्यापार उठा रहे है. उसे फिर से लॉकडाऊन के कारण बंद न होना पड़े. इस हालत में दुकानदार द्वारा लगाई गई पूंजी व्यर्थ में न जाए. यही कारण है कि अभी कोई जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं है. यदि एक बार सरकार की नीति स्पष्ट हो जाए. कोरोना संक्रमण से निपटने सरकार की क्या तैयारी है तो अनेक नागरिक जो अपनी सेवाओं से हटा दिए गये है वे नये रोजगार आरंभ कर सकते है. लेकिन सरकार की ओर से अब तक नई नीति जारी नहीं की गई है. जिससे व्यवसाय को गति मिल पाए. नौकरियां न होने व व्यवसाय के लिए साधन न रहने से अनेक लोग निराशा की गर्त में है. यह निराशा उन्हें आत्महत्या की ओर प्रेरित कर सकती है. दो वर्ष पूर्व नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था पर असर हुआ था. अब देश की स्थिति सामान्य होने की ओर थी तो महामारी का संकट मंडरा रहा है. हर प्रांत में लाखों की संख्या में लोग संक्रमित हो रहे है. इससे पूरे देश की चिंता बढ़ रही है. सबका यही प्रश्न रहता है कि यह संक्रमण का दौर कब तक जारी रहेगा. इसके चलते खेतीहर मजदूर किसानों के पास आर्थिक संसाधन न रहने से उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. मानसिक चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार भारत में ७१ प्रतिशत लोगों में आत्महत्या की सोच व प्रवृत्ति बढ़ी है.२०१९ में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा ग्लोबल बढऩ ऑफ डीजीज के आंकडों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष २.३० लाख लोग आत्महत्या कर रहे है. इसका अर्थ है हर ४ मिनिट में एक व्यक्ति अपनी जान दे रहा है. इससे यह स्पष्ट है कि अब तक लोगों में जो आत्मविश्वास था कि वे व्यवसाय व अन्य कार्यक्षेत्र में सफलता हासिल कर सफलता के मुख्य लक्ष तक पहुंच सकते है. यह आत्मविश्वास अब कम होने लगा है. क्योंकि बाजार में उपभोक्ताओं की कमी रहने के कारण व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. अनेक लोग जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है वे भी अब बेरोजगारी की जमात मेंआ गये है. जब लोगों के पास रोजगार व अन्य संसाधन नहीं रहेंगे तो दो ही विकल्प उनके सामने रहते है. या तो वे किसी गलत मार्ग से धन अर्जित करें अथवा आत्मघाती कदम उठाए. देश में विशेषकर महाराष्ट्र में अनेक किसानों ने आत्महत्या की. कहने को तो किसानों के पास खेती के रूप में अचलपुंजी थी. बेशक खेतों में फसले न होने के कारण अनेक किसान आर्थिक संकट में फंस गये तथा आत्मघाती उठाना उनकी मजबूरी बन गई. अब अनेक नागरिक रोजगार के अभाव में दर-दर की ठोकर खा रहे है. इनके पास न तो पैतृक पूंजी है और स्वयं अर्जित राशि है. अत: वे बेकारी के संकट से कैसे उभरे यह प्रश्न उनके सामने खड़ा है. भले ही हाथठेलों पर व्यवसाय करनेवाले लोगों को सरकार की ओर से १० हजार रूपये का कर्ज भी दिया जा रहा है. लेकिन इतनी सीमित राशि में कोई भी सामान्य नागरिक का कारोबार आरंभ नहीं कर सकता, ऐसे में सरकार को चाहिए की वह हाथ ठेला पर व्यवसाय करनेवाले, श्रमिक, खेतीहर मजदूरों पर विशेष राशि रोजगार के लिए प्रदान करें ताकि वे अपना कारोबार आरंभ कर सके.
कोरोना का यह संक्रमण कम होने का नाम नहीं ले रहा है. परिणामस्वरूप नागरिको में इसकी चिंता है. संक्रमण का दौर इसी तरह जारी रहा तो निश्चित रूप से अनेक लोगों को रोजगार एवं आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. वर्तमान पीढ़ी समस्याओं से नहीं जूझ सकती. इस हालत में यदि वे गलत कदम उठाते है तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है. अत: यह आवश्यक है कि सरकार कोरोना संक्रमण के बारे में योग्य नीति घोषित करे. इसमें या तो लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए. जिन्हें संक्रमण का भय है वे अपना स्वयं इलाज कराए. इसके लिए व्यवसाय आदि को बंद करने व अनेक नियमों को लादने जैसी स्थिति से दूर रखा जाए. यदि नीतियों में स्थिरता दिखाई देती है तो लोग कुछ भविष्य के हिसाब से सोच सकते हैे. जरूरी है कि केवल आकडेवारी के कारण सारी व्यवस्था को रोककर रखने की बजाय सभी क्षेत्रों को अपने तरीके से कार्य करने के लिए मुक्त किया जाए. इससे लोग दिन रात मेहनत कर अपने कार्य क्षेत्र को विकसित कर सकते है. यदि इसी तरह अनिश्चितता कायम रही तो लोगों का कार्य रूक जायेगा व स्थिति और भी भयावह हो सकती है.

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