संवेदनहीन अमानवीय कृत्य
एक ओर सारा विश्व २१ वीं सदी में अनेक रुढीवादी कृत्य को कालबाह्य कर रहा है. वहीं पर पर्वतीय क्षेत्र मेलघाट में अंधश्रद्धा आज भी कायम है तथा इस अंधश्रद्धा के कारण अनेक बालक व नागरिक उपचार से वंचित हो जाते है. उन पर अघोरी उपचार किया जाता है. जिससे उन्हें ना केवल पीडा होता है बल्कि कई बार यह उपचार जानलेवा भी साबित होता है. मेलघाट में अंधश्रद्धा का प्रमाण इतना अधिक है कि, मानवीय संवेदनाओं को भी नजरअंदाज कर दिया जा रहा है. किसी के बीमार होने पर मेलघाट में स्वास्थ्य यंत्रणा सज्ज रहने के बाद भी अघोरी इलाज किया जा रहा है. यह इलाज इतना भयावह है कि, सुनकर ही रोंगटे खडे हो जाते है. जो इस इलाज से गुजरता है, उसकी पीडा शब्दो में बखान नहीं किया जा सकता. हाल ही में मेलघाट में चिखलदरा तहसील के लवादा गांव में एक दो वर्षीय बालक पर इस तरह के अघोरी उपचार का प्रयोग किया गया. बालक का पेट फूल जाने के कारण उसका उपचार किया जाना था. अंधश्रद्धा के चलते बालक का उपचार करने के लिए उसके पेट पर गरम सलाख के चटके दिये गये. इस घटना से यह भी स्पष्ट हो गया है कि, आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा पर अंधश्रद्धा किस तरह भारी है. अंधश्रद्धा का यह क्रम नया नहीं है. अनेक वर्षों से नागरिक इस अंधश्रद्धा के दंश झेल रहे है. कभी शरीर में देवी-देवता के घुस जाने तथा कभी प्रेत आत्मा का साया रहने के कारण अंधश्रद्धा का आधार लेते है. झाडफूक के नाम पर मरीज को यातना दी जाती है. यह करते वक्त स्वयं झाडफूक करने वाला भी जानता है कि इस तरह के कोई देवी-देवता या प्रेत आत्मा का असर नहीं है. लेकिन लोगों की अज्ञानता का नाम लेकर इस तरह के तत्व अपना झाडफूक का जाल फैला रखे हुए है. जिससे आदिवासी क्षेत्र के नागरिक भयवश ऐसे झाडफूक करने वालों के पास जाते है. जिसका इस तरह का लाभ उठाया जाता है. इस हालत में जरुरी है कि, ऐसी घटनाओं की समीक्षा की जाए. तभी इस पर रोक लगाने का सार्थक प्रयास हो सकता है. इस दिशा में चिंतन होना अतिआवश्यक है. केवल चिंतन ही पर्याप्त नहीं है. उसकी रुपरेखा भी तय की जाए. मेलघाट में अंधश्रद्धा का मुख्य कारण पर्वतीय क्षेत्र में शिक्षा के संसाधन अपर्याप्त है. हालांकि सरकार ने मेलघाट में उनकी ही भाषा कोरकु में शिक्षा देने का कार्य आरंभ किया है. किन्तु आदिवासियों में योग्य उत्साह न रहने के कारण उनको इसका लाभ नहीं मिल रहा है. यहीं कारण है कि, अंधश्रद्धा का प्रभाव अधिक है. इस तरह के उपचार पहले भी होते रहे है. जून माह में दो बालकों को पेट पर भी इस तरह गर्म सलाख से चटके लगाकर अमानवीय कृत्य किया गया था. इस तरह की घटनाएं कई वर्षों से जारी है. जिसे गंभीरता से लेना अतिआवश्यक है. प्रशासन को ऐसे कृत्य करने वाले तथाकथित तांत्रिकों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए. पाया जाता है कि, इस तरह की घटनाएं कई बार सामने आती है लेकिन ऐसी घटनाओं से जुडे लोगों पर क्या कारवाई हुई. यह स्पष्ट नहीं हो पाया है. इसलिए जरुरी है कि, इस तरह के अमानवीय व अघोरी उपचार करने वालों पर कार्रवाई की जाए. मेलघाट में जबसे कुपोषण में अपने पंख पसारे है तब से सरकार की ओर से मेलघाट के लिए अतिरिक्त निधि की भी व्यवस्था की जा रही है. यहा तक कि हर वर्ष दी जाने वाली निधि आर्थिक वर्ष समाप्त होने के बाद वापस चली जाती थी. लेकिन मेलघाट के मामले में इस तरह निधि वापसी का प्रावधान नहीं है. परिणाम स्वरुप निधि मेलघाट में ही रहती है. कागजों पर निधि का उपयोग भी दिखाया जाता है. जबकि उसे योग्य रुप से खर्च करने में कोई भी पहल नहीं दिखाई दी है. मेलघाट में कुपोषण की समस्या बरसो से रही है. इसके चलते यहा पर हर बार यंत्रणा सज्ज रहती है. बावजूद इसके आदिवासी अपना इलाज किसी तांत्रिक से करवाने को प्राथमिकता देते है. निश्चित रुप से इस तरह का उपचार मानवीय भावनाओं को आघात पहुंचाने वाला है. ऐसे उपचार से मरीज ठीक हुए होगे, यह उदाहरण भी कभी सामने नहीं आया है. जबकि पीडा भयंकर स्वरुप में बालकों को भुगतनी पडी है. इस मामले में जरुरी है कि, सरकार व पर्वतीय क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों को प्रोत्साहित करें. ताकि वे आदिवासियों को स्वास्थ्य यंत्र का लाभ लेने का महत्व समाझाये. यह सब तभी संभव है जब स्वयं सरकार इस मामले में पहल करें, कुलमिलाकर मेलघाट में कुपोषण का कहर आज भी जारी है. बेशक इस बारे में प्रशासन के दावे अलग हो लेकिन हकीकत में कुपोषण, अंधश्रद्धा जैसे प्रश्न आज भी मेलघाट में कायम है. इसके लिए स्थानीय नागरिकों के अलावा प्रशासन एवं सरकार, सेवाभावी संस्थाओं को पहल करनी होगी. तभी यह अंधविश्वास हट सकता है. तांत्रिक से उपचार व चिकित्सक से चिकित्सा में बुनियादी अंतर है. इस अंतर को आदिवासियों को समझाना अतिआवश्यक है. बहरहाल अघोरी इलाज के कारण गंभीर रुप से पीडीत बालक का उपचार किया जाना चाहिए तथा उसे आवश्यकता पडने पर योग्य आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए. शिक्षा के अभाव में इस तरह की घटना आम तौर पर होती है, इसलिए पर्वतीय क्षेत्र में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अतिआवश्यक है.