संपादकीय

किसान बिल को व्यवहारिक बनाना जरुरी

केंद्र सरकार द्बारा ३ कृषि विधेयकों को पारित कर दिया गया है. इस विधेयक के माध्यम से अब किसान एवं उपभोक्ता के बीच सीधा संपर्क स्थापित हो सकेगा. किसान के अपनी फसल को स्वयं बेच सकता है तथा जहां भी उसे सुविधाजनक लगता है, उस जगह बिक्री कर सकता है. इस विधेयक के माध्यम से बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो जाएगी. किसानों को आजादी देने के दृष्टि से यह विधेयक अत्यंत मायने रखता है. लेकिन विधेयक पारित होने से ्नया सचमूछ किसानों की दिशा और दशा में सुधार आएगा. अब तक जो प्रक्रिया थी उसके अंतर्गत किसान कृषि उपज मंडियों में अपनी फसल पहुंचाता था. आडतियों द्बारा उनकी फसलों को खरीदकर बाद में उसे कंपनियों को बेचा जाता था. वर्तमान प्रणाली में अब किसान सीधे अपनी फसल बाजार में लाकर बिक्री कर सकता है. पहले जो उसे कृषि उपज मंडी के दायरे में उलझना पडता था. उससे अब मुक्ति मिल गई है. लेकिन ्नया किसानों के लिए विधेयक के अनुरुप सुविधाएं मिल पाएगी. उदाहरणार्थ विदर्भ में उत्पादित वस्तुओं को यदि दूसरे प्रांत में बेचा जाता है, तो किसान के सामने सबसे पहले वस्तुओं के लोqडग-अनलोqडग की समस्या रहेगी. यदि किसान दूसरे प्रांत में जाकर बिक्री करता है, तो उसे नये रुप से पहचान बनानी होगी. साथ ही उसे दूसरे प्रांत में जारी प्रतिस्पर्धाओं का भी सामना करना पडेगा. ्नयोंकि अब जैसा व्यवहार होता रहा है, उससे हटकर किसानों को नये स्वरुप में फसल बिक्री का कार्य करना होगा. हालांकि कृषि उपज के बाजार में आने के बाद उसे आडतियों द्बारा खरीदी किये जाने पर प्रक्रिया के लिए बेच दिया जाता था. अब लेकिन किसान स्वयं अपनी फसल लेकर आएगा, तो वह अपनी फसल का स्वयं निर्णय लेगा, लेकिन बाजार पेठ उपलब्ध कराना भी अतिआवश्यक है. किसानों के पास शहर में बिक्री के लिए कोई विशेष जगह नहीं है. दूसरी ओर कृषि उपज मंडियों में अनेक आडतियों द्बारा किसान की फसल को खरीदा जाता है. तथा वह इसकी बिक्री सुविधा के अनुसार करता है. वर्तमान विधेयक के बाद किसान को फसल निकालना काफी जिम्मेदारी वाला काम हो जाएगा. यह काम जटिल होने के साथ-साथ अव्यवहारिक भी नजर आता है. किसान का मंडी में माल लाना व उसे बेचना सभी जटिल प्रक्रियाओं में रहेगा. जिससे किसानों को परेशानी हो सकती है. कृषि मंडियों में आडतियों द्बारा अपनी फसल की खरीददारी की जाती है. लेकिन वर्तमान विधेयक ने किसान उपभोक्ताओं के बीच सीधा संपर्क स्थापित करने की व्यवस्था की है. हालांकि इस विधेयक का अनेक प्रांतों में विरोध हो रहा है. कुछ विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति से भेंट कर इस विधेयक पर हस्तांक्षर न करने की बात कहीं है. निश्चित रुप से बहुत बडा वर्ग, जिसमें किसान भी शामिल है. इस विधेयक का विरोध कर रहे है. हाल ही में पंजाब के पूर्व मंत्री नवजोतqसग सिद्दु के नेतृत्व में भव्य मोर्चा निकाला गया था. इसी तरह अनेक प्रांतों में भी विधेयक का विरोध किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए कि, विधेयक पर जनसामान्य की भी राय ली जाये. खुले मंच पर चर्चा होने से इस बारे में अनेक बाते सामने आएगी. सरकार का किसानों को मजबूत बनाने का ध्यैय है, लेकिन एकाएक अधिक क्षमता वाली दवा देकर मरीज को अच्छा नहीं किया जाता, बल्कि उसे कभी-कभी विपरित परिणाम भी सामने आते है. इस हालत में सरकार यदि जनसामान्य की राय लेकर इस विधेयक को पारित करती है तो इसका लाभ किसानों को मिलता व इसका अनावश्यक विरोध भी नहीं होता. कुलमिलाकर सरकार द्बारा किसानों को सक्षम करने का जो लक्ष रखा गया है, उस दिशा में सरकार की पहल हो रही है. लेकिन इस पहल को करते समय चित्र स्पष्ट होने चाहिए, इसलिए किसानों को केवल योजनाएं देने से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि उन्हें योजनाओं का लाभ किस तरह से मिल सकता है. इस बारे में सजग करना होगा. इसी तरह किसान द्बारा सीधे फसल बिक्री के कारण कृषि उपज मंडियों में जो लोग कार्यरत है, उनके लिए भी ्नया व्यवस्था की जा सकती है. इस बारे में भी ध्यान देना होगा.

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