कोरोना संक्रमण को लेकर राज्य से केन्द्र तक का प्रशासन सक्रिय है. कोरोना को नियंत्रित करने के लिए आए दिन नये नये निर्बंध लागू किए जा रहे है. बावजूद इसके इस बीमारी को नष्ट करने की दिशा में क्या उपाय योजना की जा सकती है. इस बारे में ध्यान नहीं दिया जा रहा है. कहने को तो कोरोना नियंत्रण के लिए वैक्सीन इजाद की गई है. लेकिन यहां पर स्पष्ट रूप से दावा नहीं किया जा सकता कि वैक्सीन से इस महामारी का उच्चाटन हो जायेगा. वैक्सीन के बाद भी संक्रमण का खतरा कायम रहता है. इसके चलते जरूरी है कि जिस तरह समूची यंत्रणा निर्बंध के पीछे लगी है उसे महामारी के उच्चाटन के लिए प्रयास हेतु सक्रिय किया जाए. महामारी से बचाव के लिए जो प्रतिबंध लगा रहे है उससे भी जन सामान्य को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. ऐसे में अब लोगों के सामने प्रश्न उभरने लगा है कि यह सिलसिला कब तक चलेगा ? हाल ही में एक कार्टून प्रकाशित हुआ था जिसमें एक वृध्द मां अपने बालक को कुछ कब्र को दिखाकर समझाती है कि ये वो लोग है जो कोरोना से मरे है. इस क्षेत्र में कब्र की संख्या सीमित दिखाई देती है. चित्र के दूसरी ओर वहीं वृध्दा पुत्र को समझाती है कि ये वे लोग है जो भूखमरी के कारण मरे है. इस क्षेत्र में समूचे प्रांगण में कब्र ही कब्र दिखाई देती है. बेशक यह एक व्यंग चित्र है लेकिन व्यंग चित्रकार या अन्य कोई कलाकार जब कोई प्रस्तुति करता है वह भले ही सत्य न हो पर सत्य के निकट अवश्य रहता है. वर्तमान में जिस तरह बीमारी के भय के कारण सभी क्षेत्र में अलग-अलग प्रतिबंध लगाए जा रहे है. उससे यह स्थिति जरूरी निर्माण हो रही है कि आनेवाले समय में रोेजगार का अभाव, भूखमरी के अलावा महामारी संबंधी उपाय योजना को छोड़कर अन्य उपाय योजनाएं ठप्प दिखाई देेगी. वैसे भी देश में अनेक क्षेत्र ऐसे है जहां रोजगार का संकट है. जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग पलायन करके शहरों में आते है. यहां पर पर्व, उत्सव आदि के कारण नये-नये रोजगार के अवसर निर्माण होते है. लेकिन बीते एक वर्ष से कोरोना संक्रमण के कारण सभी प्रमुख उत्सव, पर्व का मनाना थमा हुआ है. जिससे लोगों के रोजगार समाप्त हो चुके है. कुछ शहरों में सारा व्यापार विवाह समारोहो तथा विविध मांगलिक कार्यो के भरोसे चलता था. आज वहां सन्नाटा है. क्योंकि मांगलिक कार्यो पर भी कोरोना का साया मंडरा रहा है. मांगलिक आयोजनों पर अनेक शर्ते लाद दी गई है. बेशक यह सब समय की मांग भी है. लेकिन इससे यदि स्थायी तौर पर कोई हल निकलता है तो इन शर्तो को जनसामान्य भी सहर्ष स्वीकार करेगा. लेकिन एक वर्ष बीतने के बाद भी शर्तो का दायरा बढता गया है पर महामारी का प्रकोप व भय जस का तस या उससे अधिक विकराल रूप में सामने आ रहा है, ऐसे में लोगों को जो अभावग्रस्त जीवन जीना पड रहा है. वह किसी मरण से कम नहीं है.विशेष यह कि सारी समस्या जन सामान्य के लिए ही है. सरकारों पर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है. टैक्स वसूली, बिजली, पानी, अनाज के बिल लोगों को नियमित रूप से देना ही पड़ रहा है. चुनावी रैलियां अपनी अपनी पार्टी को विजयी बनाने के लिए मानो शक्ति प्रदर्शन का केन्द्र बन गई है. एक-एक रैली में लाखों लोगों की उपस्थिति रहती है. आश्चर्य की बात तो यह है कि जिन स्थानों पर चुनाव है वहां पर कोरोना संक्रमण नजर नहीं आता. अनेक सरकारे भ्रष्टाचार के मामलों में भी लिप्त होने के कारण सुर्खियों में है. वहां पर विपक्ष भी आरोप प्रत्यारोप में उलझा हुआ है. सरकारें स्वयं के बचाव में नित नये बयान देने में मशगुल है, ऐसे में जनसामान्य की समस्याओं पर कोई चिंतन नही हो पा रहा है. आनेवाले समय में ग्रीष्मकाल चरम पर रहेगा, ऐसे में उष्माघात जैसी बीमारियां सिर उठायेगी. जलसंकट गहराने के कारण कई स्थानों पर दूषित जल का इस्तेमाल होगा,ऐसे में डायरिया सहित अन्य जलजन्य बीमारियां अपना उत्पात मचायेगी. इन बीमारियों को रोकने के लिए कोई प्रभावी योजना अधिकांश जिलों के प्रशासन के पास नहीं है.जाहीर है अभी लोगों की मृत्यु का कारण कोरोना है. आनेवाले दिनों में उष्माघात जलजन्य बीमारियों से भी लोगों का सामना करना पड़ेगा. संभव है इन बीमारियो ंसे भी लोगों की बड़े पैमाने में मृत्यु होगी. जरूरी है कि कोरोना संकट को टालने के लिए जारी प्रयासों के साथ साथ अन्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाए. अनेक स्थानों पर छिड़काव नहीं हो रहा है. परिणामस्वरूप मच्छरों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है. इससे आनेवाले समय में मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का भी प्रकोप संभव है. इसके लिए निरंतर छिड़काव व सफाई व्यवस्था अति आवश्यक हो गई है. इस पर भी संबंधित प्रशासन को ध्यान देना जरूरी है. संभावना व्यक्त की जा रही है कि आनेवाले समय में कोरोना का संकट और भी तीव्र होगा. बड़ी संख्या में मरीज पाए जायेंगे. इस संभावना को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को चाहिए कि शहर की सभी बस्तियों को सैनिटायजर करे. वहां पर सैनिटायजर का छिड़काव नियमित रूप से होना चाहिए. इतना ही नहीं रोजाना जो बसें यात्रियों को लाना ले जाना करती है. उन बसों को आरंभ होने से पूर्व सैनिटायजर से निर्जंतुक किया जाए तथा बस वापसी के बाद भी यह प्रक्रिया अपनाई जाए तभी बीमारी के संकट को टाला जा सकता है. केवल प्रतिबंध ही पर्याप्त नहीं. शासकीय प्रयास भी तीव्र होना जरूरी है. महामारी चाहे जो भी हो उसका उ्द्देश्य लोगों को डराना नहीं होना चाहिए बल्कि प्रयास लोगों को बीमारी से सावधान करने का रहना चाहिए. इसके लिए प्रशासन को भी चाहिए कि वह अपने स्तर पर बीमारी उन्मूलन के लिए कौन से रसायनिक प्रयास करें. इसका चिंतन करे व योग्य कदम उठाए. यदि संक्रमण का भय इसी तरह चलता रहा तो आनेवाले समय में बीमारी से भी जटिल अनेक संकट निर्माण हो सकते है. जिसके चलते सभी को मिलजूलकर प्रयास करना जरूरी है.