संपादकीय

पर्यटन विकास के लिए सार्थक प्रयास जरूरी

पालकमंत्री एड. यशोमती ठाकुर ने जिलाधीश से चर्चा कर जिले में पर्यटन विकास के विषय में जानकारियां हासिल की. अमरावती यह पौराणिक नगर है. यहां पर अनेक इतिहास से जुड़े अवशेष बाकी है. जिनका यदि सुनियोजित ढंग से विकास किया जाए एवं उसे लोकाभिमुख किया जाए तो निश्चित रूप से यहां के पर्यटन को गति मिल सकती हैे. विदर्भ के नंदनवन के रूप में चिखलदरा का नाम आता है. किंतु यहां पर्यटन सुविधाए न होने के कारण इस पर्यटन क्षेत्र का राष्ट्रीय स्तर पर नाम नहीं हो पाया है. इसी तरह पौराणिक नगर कौंडण्यपुर जो कभी विदर्भ की राजधानी थी तथा माता रूख्मिणी का पीहर है. इस क्षेत्र के महत्व को ‘इस्कॉन’ ने समझा तथा वहां पर माता रूख्मिणी एवं श्रीकृष्ण का न केवल भव्य मंदिर निर्माण किया बल्कि ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा का भी प्रतिवर्ष आरंभ किया गया है. विशेष यह श्रीकृष्णकाल में रासलीला जिस कदम के पेड़ के नीचे हुई थी उसी तरह का कदम का पेड़ कौंडण्यपुर के इस्कॉन मंदिर में रोपित किया गया है जो अब विकसित हो गया है. इसी तरह महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे सालबर्डी का क्षेत्र भी पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत मायने रखता है. स्वामी चक्रधर का यहां पर वास रहा था. इसके अलावा वन संपदा से परिपूर्ण मेलघाट का परिसर वर्षो से लोगों के आकर्षण का विषय रहा है. किंतु समुचित व्यवस्था न होने के कारण यह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया. अलबत्ता कुछ कारणों से इस क्षेत्र को कुपोषण के कलंक से जूझना पड़ रहा है. अमरावती में पर्यटन की संभावना को बीते कई वर्षो से अनेक सरकारों द्वारा विकसित करने की बात तो की जाती है. लेेकिन प्रत्यक्ष में इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गये. चिखलदरा को लोकाभिमुख करने के लिए सर्वप्रथम तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकर नाइक ने गाविलगढ महोत्सव का आयोजन किया था. उसे व्यापक प्रतिसाद भी मिला था. लेकिन उसके बाद कई वर्षो तक इस तरह के आयोजन पर ध्यान नहीं दिया गया. तत्कालीन पालकमंत्री सुनील देशमुख के कार्यकाल में चिखलदरा में करीब ३ वर्षो तक पर्यटन महोत्सव का आयोजन किया जाता रहा. नागरिको का इसमें प्रतिसाद भी मिला. लेकिन निरंतरता न रहने के कारण विदर्भ की यह पर्यटन नगरी अन्य पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में लोकाभिमुख नहीं हो पायी. इस पर्यटन नगरी के विकास के लिए अनेक प्रयास जरूरी है. लेकिन इस दिशा में कोई कार्रवाई विशेष रूप से नहीं की गई.
किसी भी पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए हवाई अड्डा होना जरूरी है. इस दिशा में बेलोरा विमानतल का कार्य जारी है. लेकिन अभी तक यह कार्य पूरा नहीं हो पाया है. दूरदराज क्षेत्र के व्यापारी व अधिकारियों के पास इतना समय नहीं है कि वे दो दिन सफर में खराब करें. यदि विमानतल रहता है तो वे तत्काल अमरावती पहूंच सकते है तथा यहां से वाहन कर पर्यटन स्थलों का सैर सपाटा भी कर सकते है. लेकिन विमान तल न होने के कारण भी यह क्षेत्र अधिक लोकाभिमुख नहीं हो पाया है. अमरावती के ही अंग बडनेरा यह रेल्वे जंक्शन है. जिस तरह अन्य प्रांतों में किसी पर्यटन स्थल जाने के लिए विशेष फलक लगाए जाते है. उसी तरह बडनेरा में भी चिखलदरा के विषय में जानकारी दी जानी चाहिए. उदाहरण तौर पर माणिकपुर स्टेशन पर बड़ा फलक लगा है. जिसमें उल्लेखित है कि चित्रकुट जाने के लिए यहां उतरे है. इसी तरह चिखलदरा के विषय में भी किया जा सकता है. बडनेरा स्टेशन पर यदि चिखलदरा की गरिमा को विकसित करनेवाले फलक के साथ चिखलदरा के लिए यहां उतरे जैसे बोर्ड भी लगाए जाए तो निश्चित रूप से चिखलदरा यह पर्यटन क्षेत्र अधिकाधिक लोकाभिमुख हो सकेगा. अमरावती बस स्टैंड पर चिखलदरा की जानकारी वाला एक फलक है. लेकिन उसे जिस रूप में प्रखरता के साथ लगाया जाना चाहिए था. वैसा स्वरूप नहीं दिया गया है. अभिप्राय यह कि अमरावती में अनेक ऐतिहासिक व पौराणिक पर्यटन स्थल है. जिनका यदि समूचित विकास किया जाए तो वे न केवल विदर्भ के लिए बल्कि देशभर के सैलानियों का आकर्षण बन सकते है. इसलिए जरूरी है कि यहां के पर्यटन स्थलों का सरकार एवं प्रशासन की ओर से अध्ययन कर उसे विकसित करने की दिशा में काम किया जाना चाहिए तभी यहां न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. बल्कि अनेक लोगों के लिए रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी. जिले में अनेक ऐतिहासिक स्थल भी है. जहां की परंपराए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. अमरावती जिले की विशेष विरासत के रूप में कर्मयोगी संत गाडगेबाबा व तुकडोजी महाराज की कर्मभूमि के रूप में भी देखा जासकता है. इन कर्मयोगी संतो द्वारा जो जनहित के अभियान आरंभ किए गये है. वे आज भी जारी है. दोनों संतो के नाम से क्रमश: अमरावती व नागपुर विश्वविद्यालय का नामकरण्या किया गया है. इससे इन दोनों कर्मयोगियों की कार्यो की महिमा भी अपने आप उजागर हो जाती है. कुल मिलाकर अमरावती को पौराणिक नगर होने का सौभाग्य मिला हैे. माता रूख्मिणी की कथाप्रसंग के अनुरूप अमरावती शहर में ही भगवान श्रीकृष्ण का तीन दिनों तक वास था तथा यहां के अंबादेवी मंदिर से रूख्मिणी का हरण किया गया था. वे सभी मंदिर भी आज कायम है तथा सरकार की ओर से इसके विकास के विषय में विशेष कार्य किया जाए तो धार्मिक पर्यटन स्थल के साथ साथ अमरावती जिले को स्वास्थ्य पर्यटन क्षेत्र का भी दर्जा मिल सकता है. मेलघाट में व्याप्त वनसंपदा में अनेक ऐसी जड़ी बूटियां है जो जन स्वास्थ्य के लिए हितकारी है. यदि इन संभावनाओं को अधिकाधिक लोकाभिमुख किया जाए तो निश्चित रूप से अमरावती के विकास की दिशा में यह सार्थक कदम तो होगा ही तथा यहां के पर्यटन क्षेत्र राष्ट्रीय यहां तक के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थलों के मानचित्र पर अपना स्थान कायम कर सकता है.

Related Articles

Back to top button