आधुनिक कृषि की सार्थक पहल
इस देश में कृषि का अनन्य महत्व है. देश में खेती यह देश की संपत्ति है और उसका समर्थन करने की जिम्मेदारी पूरे देश की है. किसान को सम्मान देते समय कृषि क्षेत्र को किस तरह आधुनिक बनाया जा सकता है. इस बारे में भी चिंतन किया जाना चाहिए. हाल ही में केन्द्रीय कृषि मंत्री के साथ चर्चा में मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे(Chief Minister Uddhav Thackeray) ने यह बात कही. केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर(Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए विविध राज्यों के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्रियों से संवाद किया. इस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने यह बात कही.
महाराष्ट्र यह एक प्रगतिशील प्रांत है. यहां उद्योगों से लेकर सभी कार्यो में नये-नये प्रयोग किए जा रहे है जो कि सफल भी हो रहे है. उद्योग व्यवसायमें अनेक सुधार हुए है. जो व्यापारी एवं ग्राहक की दृष्टि से सुविधाजनक है. इसका लाभ भी व्यवसाय क्षेत्र में देखने मिल रहा है. लेकिन कृषि के मामले में आज भी परंपरागत खेती की जा रही है. कुछ साधन संपन्न किसान अपने खेतों में साधनों का इस्तेमाल कर लेेते है. लेकिन हर किसान के लिए यह बात संभव नहीं है. इसके चलते किसानों को यदि विविध संसाधनों के माध्यम से यह बताया जाए कि कौन सी फसल मौसम, संसाधन आदि देखते हुए अनुकूल है.
यदि किसानों को योग्य मार्गदर्शन मिलता है तो निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र उन्नत हो सकता हैे. किसानों की पीड़ा यह है कि उनकी सारी खेती प्रकृति पर निर्भर है. यदि मौसम अनुकूल रहा व पर्याप्त बरसात होती रही तो कृषि का इसका लाभ मिल सकता है. लेकिन यदि मौसम प्रतिकूल रहा तो कृषि क्षेत्र में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. मौसम की स्थिति यह है कि कभी पूरी तरह सूखा रह जाता है तो कभी अतिवृष्टि किसानों के लिए चिंता का विषय बनती है. सबसे बड़ी बात यह है कि बीते कुछ वर्षो से यह स्थितियां कायम है. परिणामस्वरूप किसानों की पीड़ा भी यथावत है. किसानों की फसलों को नुकसान होने के कारण कई बार वे आर्थिक विवंचना में फंस जाते है. अनेक प्रयासों के बाद भी मार्ग नहीं मिलता देख उन्हें आत्मघाती कदम उठाना पड़ता है.
महाराष्ट्र में विशेषकर विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का असर ज्यादा रहा है. विदर्भ वैसे भी अनेक संसाधनों के मामलों में पिछड़ा हुआ है. यही कारण है कि यहां के किसानों को परंपरागत खेती पर ही निर्भर रहना पड़ता है. उनके पास जो साधन है उसी का उपयोग कर अपने कृषि कार्यो को आगे बढ़ाना पड़ता है.फसल बुआई से कटाई तक अनेक समस्याएं उनके सामने उभरती है. कभी बरसात का संकट तो कभी इल्लियों का हमला जैसी स्थितियां बार-बार निर्माण होती है. यदि योग्य रूप से संशोधन कर किसानों का मार्गदर्शन किया जाए तो वे भी अपने उत्पादन को बढ़ा सकते है व बाजार में अपनी पकड़ कायम कर सकते है.सरकार भी चाहती है कि किसान अपनी फसल को सीधे उपभोक्ता तक पहुंचाए ताकि बिचौलियों का खेल खत्म हो. आज किसानों की पीड़ा यह है कि उन्हें खरीददार पर ही निर्भर रहना पड़ता है. कई किसान तो व्यापारियों से कर्ज लेकर उन्हें एक निश्चित दर में अपनी फसल बेचने का मौखिक करार भी कर लेते है. इसके कारण कई बार में योग्य लाभ नहीं मिल पाता. उत्पादन के समय बाजार में भले ही मिलनेवाली दरे अधिक हो लेकिन उन्हें तयशुदा दरों में ही फसल बेचनी पड़ती है.
कृषि क्षेत्र में अनेक किसानों ने कुछ प्रगतिशील कदम उठाते हुए परंपरागत खेती की जगह आधुनिक साधनों से युक्त खेती की. कुछ फसले जो बाजार की आवश्यकता होती है. उनका उत्पादन किया. जिसमें अदरक, हल्दी आदि का उत्पादन किया गया है. इससे उन्हें एक नये रूप में बाजार मिला. अनावश्यक रूप से नुकसान नहीं उठाना पड़ा. यदि कृषि क्षेत्र में अधिकांश किसान एक ही किस्म की फसल का उत्पादन करते है तो बाजार में फसल की प्रचुरता के कारण दरों में कमी आती है. परिणामस्वरूप किसानों को योग्य लाभ नहीं मिल पाता. यदि किसान अलग-अलग फसलों का उत्पादन करते है तो बाजार में उसकी मांग भी बढी रहती है व उत्पादक किसानों को भी इसका लाभ मिल सकता है. इसके चलते कृषि क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आवश्यक है. यदि कृषि क्षेत्र में संशोधन के लिए अनेक विकल्प निर्माण किए जाए तो किसानों को नुकसान का सामना नहीं करना पड़ सकता. इन संशोधन में किसानों को इस बात से अवगत कराया जा सकता है कि बाजार पेठ का सर्वेक्षण कर किसानों को किस फसल को प्राथमिकता देनी चाहिए. वर्तमान में जो उत्पादित होगा वही बिकेगा. इस तत्व पर कार्य जारी है.
ऐसा नहीं की महाराष्ट्र में संशोधन के लिए कृषि विश्वविद्यालय नहीं है. अनेक विश्वविद्यालय कृषि पर आधारित है, ऐसे उन्हें कृषि आधारित संशोधन करना चाहिए. किसानों के लिए पोषक हो,ऐसी जानकारी किसानों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए. इससे किसानों को अपने कार्यो में गति मिलेगी व फसल के उत्पादन के बाद उसे बाजारपेठ कहां से मिलेगा. यह सोचना भी कम करना पड़ेगा. आधुनिकता यह समय की मांग है.परिणामस्वरूप हर क्षेत्र में नित नये परिवर्तन हो रहे है. इस हालत में अति आवश्यक है कि देश के कृषि क्षेत्र में भी योग्य परिवर्तन किया जाए. किसानों को लाभदायक फसल व मौसम पर निर्भर न रहते हुए फसले उत्पादित करने का अवसर मिले.उसे योग्य बाजारपेठ भी मिले.
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री ने कृषि क्षेत्र की पीड़ा को समझते हुए केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर के समक्ष अपनी बात कहीं. इससे राष्ट्रीय स्तर पर इसका चिंतन हो सकता है तथा किसानों को योग्य मार्गदर्शन दिया जा सकता है. इससे किसानों के जीवनस्तर में सुधार आ सकता है तथा आज जिस तरह आर्थिक विवंचना मेंं फंसकर किसान आत्मघाती कदम के लिए उठाने के लिए मजबूर है वह मजबूरी दूर की जा सकती है व धरा को सुजलाम सुफलाम बनाया जा सकता है.