संपादकीय

आदिवासी श्रमिकों का पलायन

मेलघाट का पर्वतीय क्षेत्र भले ही प्राकृतिक संपदा से रचा-बसा हो तथा मेलघाट के सौंदर्य को देखने के लिए सैलानी हर दम इच्छूक रहते है. लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण मेलघाट के पर्यटन को भारी नुकसान हुआ है. खासकर लॉकडाउन के कारण मेलघाट के अनेक श्रमिक जो रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांतों में गये थे. किन्तु लॉकडाउन के बीच सभी अपने घरों पर वापस आ गये. अब फिर से रोजगार का संकट आदिवासियों के सामने मंडरा रहा है. ऐसी हालत में अनेक आदिवासी परिवार शहरों की ओर पलायन कर रहे है. जिससे मेलघाट के अनेक कार्य अधूरे पडे हुए है. इनकी पूर्तता होना आवश्यक है. इस दृष्टि से मेलघाट के श्रमिकों को कुछ दिन ओर रुकने को कहा जाता तो वह श्रमिकों के सामने रोजगार का विकल्प उत्पन्न हो सकता था. इस वर्ष कोरोना संकट के कारण अनेक विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हजारों श्रमिकों को कार्यमुक्त किया गया है. अब नये सीरे से श्रमिक अपने रोजगार की तलाश से जुट गये है. परिणाम स्वरुप अनेक श्रमिक अब मेलघाट से पलायन कर रहे है. क्योंकि मेलघाट परिसर में योग्य प्रामण में रोजगार नहीं है. इसके चलते हजारों आदिवासियों को दूसरे प्रांत में जाकर रोजगार तलाशना पड रहा है. चूंकि विदर्भ में रोजगार के संसाधन सीमित रहने के कारण लोगों को वैसे भी बेरोजगारी का संकट कायम रहता है. लेकिन लॉकडाउन के बाद मरीजों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है. तथा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के साधन नहीं है. मेलघाट का ग्रामीण क्षेत्र आरंभ से ही रोजगार मिल रहा है. यहीं कारण है कि, बडी संख्या में समीप पलायन कर रहे है. संबंधित प्रशासन को चाहिए कि, श्रमिकों को उनके गृहक्षेत्र यानि मेलघाट में रोजगार उपलब्ध कराया जाये. ताकि लोगों के पलायन न करना पडे. मेलघाट में कुपोषण रोकने व पोशाहार के वितरण के लिए बडे पैमाने पर राशि मिलती है. इस राशि से श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध हो ऐसे घरेलू उद्योग भी आरंभ करना चाहिए.

आरंभ से ही मेलघाट में श्रमिकों को उनके आवासीय क्षेत्र में ही रोजगार उपलब्ध कराने की मांग बरसों से की जा रही है. लेकिन इस दिशा में कदम नहीं उठाये गये है. यहीं कारण है कि, हर वर्ष हजारों आदिवासी रोजगार की तलाश में अन्य प्रांतों में जाते है. यहां पर उन्हें रोजगार भले ही मिल जाता है. उनका आर्थिक शोषण भी इन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है. इसलिए जरुरी है कि, मेलघाट के आदिवासियों को उनके क्षेत्र में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराये जाये ताकि वे स्वयं का उदर निर्वाहन कर सके. साथ ही उन्हें पलायन की नौबत ना आये. मेलघाट में प्रतिवर्ष करोडों रुपय खर्च किये जाते है. ऐसे में यदि कोई लघुउद्योग पर्वतिय क्षेत्र में आरंभ किया जाता है, तो इसका लाभ आदिवासियों के हो सकता है. दूसरे प्रांत में जाने पर आदिवासियों को जो कठीनाईयों का सामना करना पडता है. इस हालत में उन्हें उनके ही क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने का कार्य किया जाना चाहिए. जिससे उन पर पलायन की नौबत न आये. मेलघाट में अप्रतिम सौंदर्य है.

प्रकृति के सानिद्य में इस क्षेत्र में पर्यटन को बढावा दिया जा सकता है. यदि पर्यटकों को पर्याप्त सुविधा मिलती है तो वे इस क्षेत्र के पर्यटन की ओर आकर्षित हो सकते है, लेकिन पाया गया है कि, प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण मेलघाट परिसर कुपोषण के दंश से पीडित है. यदि कुपोषण का कलंक मेलघाट में नहीं होता तो यहां का पर्यटन व्यवसाय विकसित हो सकता था. बहरहाल यह जरुरी हो गया है कि, यहां पर्यटन को विकसित किया जाये. जिससे मेलघाट के लोगों को उनके क्षेत्र में ही कार्य मिल सके.

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