संकल्पों को साकार करने वाला क्षण
देश के १३० करोड लोगों की साक्ष में विगत ५०० वर्षों से जिस क्षण की प्रतीक्षा की जा रही थी, वह क्षण ५ अगस्त को साकार हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राजजन्मभूमि परिसर में रामलला के मंदिर की आधार शिला रखी गई. निश्चित रुप से यह क्षण एक ऐतिहासिक क्षण कहा जाएगा. इस क्षण को साकार करने के लिए अनेक साधु-संतों को अपनी आहुति देनी पडी. अनेक लोगों का रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण को लेकर अलग-अलग संकल्प था. इन संकल्पों में एक महिला ने १९९२ के बाद जब तक मंदिर का निर्माण आरंभ नहीं होता तब तक अन्न न ग्रहण करने का संकल्प लिया. इसी तरह किसी ने अपनी शिखा बढा रखी थी.
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंदिर निर्माण आरंभ होने पर ही अयोध्या जाने का संकल्प किया था. इस तरह के हजारों लोगों के संकल्प का भी राम जन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखे जाने के साथ पूर्ण हुई है. कई बार रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाने की मांग को लेकर आंदोलन हुए. अदालतों में सुनवाई हुई. तब कहीं जाकर इस क्षण को आज सहीं स्वरुप मिल पाया है. केवल आधारशिला रखना ही मुख्य बात नहीं है. जिस तरह राम का अवतार धर्म स्थापना के लिए हुआ था. उसी तरह राम जन्मभूमि शिलान्यास भी एक तरीके से धर्म की स्थापना का स्वरुप बन गया है. आम तौर पर शिलान्यास समारोह भाषणबाजी, व्यर्थ के आडंबर, अनावरण आदि तरीके से होते है. लेकिन मंदिर के निर्माण के कार्यों की शुरुआत विधिवत विद्वानों के मंत्रोच्चार के बीच हुआ. इसी तरह मंदिर के निर्माण की शुरुआत के लिए स्वयं प्रधानमंत्री एक सामान्य भक्त के रुप में कार्यक्रम में आये. रामजन्मभूमि मंदिर के निर्माण को लेकर समूचे अयोध्या विगत १ सप्ताह से जगमगा रही है. रामलला की मूर्ति के प्रधानमंत्री द्बारा सर्वप्रथम दर्शन किये गये.
साष्टांग दंडवत कर प्रधानमंत्री मोदी ने राम को अपने आप को समर्पित किया. दंडवत का मतलब ही यह है कि, सर्व शक्तिमान जीवचराचर नायक ईश्वर के प्रति समर्पण भाव. हालाकि जो क्षण ५ अगस्त को साकार हुआ है. वह कब होगा, कैसे होगा यह प्रश्न किसी के मन में हिलोरे मार रहा था. क्योंकि इतनी आसान डगर नहीं थी. लेकिन यदि नेतृत्व कुशल है, तो किसी भी समस्या का समाधान खोज सकता है. यहीं कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों हुआ. जो व्यक्ति आरंभ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित रहा है उसे यह सौभाग्य मिलना ही था. स्वयं रामायण में उल्लेख है कि, भगवान राम चाहते तो युद्ध में वीरगति को प्राप्त सभी को पुनर्जीवित कर सकते थे. लेकिन उन्होंने इस कार्य के लिए इंद्र को महत्व दिया है. इंद्र द्बारा अमृत की दृष्टि किये जाने पर अनेक