संपादकीय

आंदोलन का एक माह

कृषि बिलों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली की सभी सीमाओं पर किसानों की ओर से आंदोलन जारी है. इस आंदोलन को एक माह का समय बीत गया है. आंदोलन 31 वें दिन में प्रवेश कर चुका है, ऐसे में वार्ताओं के करीब छह दौर हुए. लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया. सरकार का दावा है कि किसान बिल किसानों के हित में है. जबकि किसान इसे किसान विरोधी बताते हुए रद्द करने की मांग कर रहे है. परिणामस्वरूप आंदोलन का कोई हल नहीं निकल पा रहा है. 25 दिसंबर को अनेक किसानों को उम्मीद थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों से संवाद साधते हुए कोई महत्वपूर्ण घोषणा करेंगे. जिससे आंदोलन समाप्त होने का मार्ग प्रशस्त होगा. लेकिन प्रधानमंत्री का ज्यादा जोर इस बात पर रहा कि उन्होंने किसानों को 6 हजार रूपये प्रतिवर्ष किसान सम्मान निधि के रूप में देना आरंभ किया है. इससे किसानों को राहत मिल रही है. लेकिन यह सच नहीं है कि किसानों को इस राशि से कोई विशेष लाभ मिल रहा है. क्योंकि जो राशि दी जा रही है. जिसे विभाजित किया जाए तो हर किसान को प्रतिमाह 500 रूपये इस निधि के रूप में मिल रहे है. इससे किसान को कुछ भी विशेष लाभ नहीं मिल पायेगा. किसानों की मुल समस्या यह है कि उन्हें फसलों का योग्य समर्थन मूल्य मिले.यदि सरकार किसानों को यह लिखकर देने को तैयार हो जाती है कि निर्धारित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर अनाज खरीदनेवालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी तो किसान कुछ हद तक सरकार द्बारा पारित तो निश्चित रूप से किसानों को भी अपने आंदोलन के बारे में सोचना पड सकता है पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है.
कुछ किसान मानते है कि प्रधानमंत्री द्बारा पारित कृषि विधेयक किसानों के हित में है. लेकिन अधिकांश किसानों का मत इसके विपरित है. इस हालत में कोई योग्य निर्णय लेना संभव नहीं हो पा रहा है. यह सच है कि किसानों के साथ हर दम अन्याय होता रहा है. बार-बार अन्याय में उलझकर किसान आज खुद का हित अनहित क्या है ? इस बारे में गंभीरतापूर्वक सोच रहा है. क्योंकि किसानों के प्रति अन्याय का सिलसिला कभी रूका नहीं है . हाल ही में एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों को फसल बीमा योजना के लाभ से अवगत करवा रहे थे. वहीं पर किसानों को फसल बीमा के रूप में केवल 1800 रूपये दिए गये है. जबकि किसानों ने फसल बीमा के लिए 1100 रूपये की राशि उन्होंने पहले ही संबंधित कंपनियों को जमा कराई थी. 1100 रूपये की राशि भरकर 1800 रूपये मिल रहे है, ऐसे में किसानों में रोष का वातावरण है. स्पष्ट है कि किसानों के साथ अन्याय जुडा हुआ है. इसलिए किसान भी इस बार आरपार की लडाई के मुड में है.
एक माह से ज्यादा समय बीतने के बाद भी किसानों के आंदोलन जारी रहना अपने आप में चिंतनीय बात है. जो किसान देश का अन्नदाता है. उसके प्रति हर किसी को सहानुभूति है. लेकिन किसानों का भी जिद पर अडे रहना भी अपने आप में उचित नहीं कहा जा सकता. इसके लिए सरकार एवं किसान दोनों को बीच का मार्ग निकालना होगा. योग्य संवाद के जरिए इस आंदोलन को समाप्त करना जरूरी है. इसके लिए सरकार को भी सार्थक पहल करनी होगी. आंदोलन के 30 दिनों में अनेक किसानों की मृत्यु भी हो गई है. दिल्ली में इन दिनों पारा तीन डिग्री सेल्सियस से कम है. जाहीर है यहां ठंड तीव्रता से जारी है, ऐसी ठंड के माहौल में भी किसानों का आंदोलन जारी है. सामान्य व्यक्ति को भी वातावरण को देखते हुए किसानों पर तरस आ सकता है. लेकिन सरकार की ओर से जो ठोस भूमिका अपनाई जा रही है. उसमें कहीं तो लचीलापन आना जरूरी है.
कुल मिलाकर किसानों की समस्या वर्षो से जटिल रही है. उस जटिलता को समझने के लिए सरकार एवं किसान दोनों को मिलकर संवाद करना होगा तभी कहीं योग्य हल निकल सकता है किसान कृषि कानून रद्द होने की मांग को लेकर अपने आंदोलन पर डटे हुए है. आनेवाले समय में यह आंदोलन जारी रहेगा यह मानस भी किसानों ने व्यक्त किया है. बेशक किसानों की मांग एकाएक पूर्ण नहीं की जा सकती. कम से कम इस बारे में किसानों से संवाद तो किया जा सकता है. उन्हें योग्य आश्वासन लिखित रूप में देकर आंदोलन को समाप्त किया जा सकता है. इसलिए जरूरी है कि किसान और सरकार के बीच वार्ता जरूरी है.

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