परिवारवाद का विरोध
कांग्रेस में इन दिनों विभिन्न नेताओं की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) से आग्रह किया गया है कि, वे परिवारवाद का मोह त्याग दे, क्योकि वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति जिस तरह दयनीय होती जा रही है. उसे देखते हुए अब यह महसूस किये जाने लगा है कि, पार्टी को नया जीवन देने के लिए प्रजातांत्रिक मूल्यों का जतन जरुरी है. यह इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि, कांग्रेस यह आजादी से पूर्व से ही कार्यरत है. आजादी के लिए पार्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ऐसे हालत में राजनीति से कांग्रेस का लुप्त हो जाना एक दुखद पहलू माना जाएगा. लेकिन कांग्रेस को कायम रहने के लिए अतिआवश्यक है कि, वह अपने ही पार्टी के प्रतिभाशाली नेतृत्व को योग्य स्थान दे. बदलते परिवेश में हर पार्टी का नेतृत्व अपने-अपने प्रभावी होना जरुरी है. लेकिन कांग्रेस ने कुछ नेताओं में महत्वपूर्ण नेतृत्व क्षमता है, लेकिन पार्टी परिवारवाद उलझी होने के कारण ऐसे योग्यतावान नेताओं को भी उपेक्षित रखा गया है. निश्चित रुप से यह बात उपेक्षित नेताओं के संबंध में आ रही होगी. पार्टी ने अब तक अनेक बार अध्यक्ष पद पर परिवार के ही लोग ही जुडे है. जिससे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को हीन भावना का शिकार होना पड रहा है. चूंकि इन नेताओं में भरपूर प्रतिभा है. नेतृत्व क्षमता से ऐसे नेताओं को नजरअंदाज करना उचित नहीं है. पार्टी में अनेक नेताओं ने इस बारे में सोनिया गांधी से मांग की है कि, वे परिवारवाद से बाहर हटकर योग्य व्यक्ति को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपे. इससे नये लोग भी जुडेंगे व पार्टी को अपनी जडे जमाने में कई वर्ष लगे है. ऐसे में कांग्रेस को जीवित रखने में पार्टी के योग्य व्यक्तियों को अवसर दिया जाए, ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में गांधी-नेहरु परिवार के सदस्य भी हर दम नेतृत्व करते रहे. ९० के दशक में सीताराम केशरी को अध्यक्ष चुना गया था. अब फिर से कांग्रेस नेताओं में मांग उठ रही है कि, कांग्रेस अध्यक्ष परिवारवाद का मोह त्याग कर योग्य एवं कुशल व्यक्ति के हाथों नेतृत्व की कमान सौंपे. प्रजातांत्रिक देश में जितना महत्व सत्ताधारी दल का है. उतना ही महत्व विपक्ष का भी है. क्योकि विपक्ष दिशा दर्शक के रुप में कार्य कर सकता है. बेशक संख्या बल के आधार पर वह अपनी बात को मनवा न सके पर मुद्दा तो उठाया जा सकता है. अनेक ऐसी बाते है जिसके बारे में देश में चर्चा होना अतिआवश्यक है. निश्चित रुप से यदि कांग्रेस के कुछ नेता नेतृत्व को लेकर पत्रव्यवहार कर रहे है. इसमें उनका यहीं मानना है कि, यदि कांग्रेस परिवारवाद का मोह त्याग सकती है तो, योग्य व्यक्ति अध्यक्ष बनने के लिए सामने आएंगे तथा इससे पार्टी के गरिमा भी बढेगी. इन दिनों हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति सजग है. जहां निजी संस्था में वह प्रजातांत्रिक तरीके से कार्यप्रणाली चाहता उसी तरह राजनीतिक दलों में भी लोग प्रजातांत्रिक मूल्यों का जतन करने की पार्टी अध्यक्ष से अपेक्षा कर सकते है. इसी अपेक्षा के वशीभूत होकर उन्होंने पत्रव्यवहार भी किया है. जिसमें उन्होंने योग्य व्यक्ति को अध्यक्ष रुप में देखने की मनसा व्यक्त की है. इसमें कुछ गलत भी नहीं है. यदि पार्टी के भीतर से ही योग्य व्यक्ति का चयन किया जाता है. इसका असर जनसामान्य पर भी होगा. जेसा कि अब तक होता आया है कि, लोग यह मानकर चल रहे थे कि, पार्टी के अध्यक्ष पद पर केवल एक ही परिवार का कब्जा रहेगा. पार्टी के कार्यकर्ता इसके प्रति समर्पित भी थे. बेशक चुनाव में पार्टी को विशेष सफलता नहीं मिली है. पर उसे विपक्ष में बैठने का अवसर मिला है. यदि पार्टी का नेतृत्व इस बारे में सजग है तो वह विपक्ष की भूमिका निभाए, तो उन्हें काफी हद तक राहत मिलेगी. कुलमिलाकर कांग्रेस के आंतरिक मामले में पत्रव्यवहार का जो सिलसिला जारी है. इस बात को पार्टी के वर्तमान नेतृत्व को गंभीरता से लेना चाहिए. पार्टी स्तर पर बैठक कर पार्टी की भूमिका स्पष्ट करना चाहिए, ताकि पार्टी अध्यक्ष पद के लिए योग्य व्यक्ति का चयन किया जा सके. इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि, वर्तमान नेतृत्व योग्य नहीं है. लेकिन नेतृत्व चाहे जो भी हो, उसमें कुछ खामिया व कुछ मौलिकता भी होती है. इसलिए यदि नेतृत्व में समय-समय पर जिम्मेदार व्यक्तियो ंको आसिन किया जाए, तो वे अपनी मौलिक प्रतिभा के माध्यम से पार्टी को संजीवनी दे सकते है. अभिप्राय यह पार्टी को चाहिए कि, वह पत्र को गंभीरता ले व प्रजातांत्रिक तरीके से चयन कर योग्य व्यक्ति को नेतृत्व सौंपे.