संपादकीय

आस्था से खिलवाड

विवादग्रस्त तांडव वेब मलिका के दो आपत्तिजनक दृश्य अलग करने के बाद भी तांडव के खिलाफ शिकायतों का सिलसिला जारी है. बुधवार को मलिका के निर्माता के विरोध में महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश में प्राथमिक जांच रिपोर्ट दाखिल की गई है. उत्तरप्रदेश में गंभीर धाराओं के अंतर्गत मामले दर्ज किए गये है. जिसके चलते लखनउ पुलिस का दल बुधवार को जांच के लिए मुंबई पहुंचा. तांडव यह विवादग्रस्त धारावाहिक होने के साथ साथ करोडो देशवासियों की भावनाओं को आहत करनेवाला है. इस बात को लेकर लोगों में भारी विरोध है. विरोध होना स्वाभाविक भी है. एक ओर युग पुरूष भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण को लेकर देशभर में निधि संकलन अभियान जारी है. इस अभियान में न केवल भगवान राम के अनुयायी हिन्दु ही धनराशि प्रदान कर रहे है. बल्कि अनेक धर्म के अनुयायी भी यथाशक्ति सहयोग दे रहे है. धार्मिक भावनाओं का आदर किस तरह किया जा सकता है यह इस अभियान के माध्यम से दिखाई दे रहा है. ऐसे में तांडव जैसे वेब धारावाहिक न केवल लोगों के आस्था स्थल को आहत कर रहा है. बल्कि जनमानस में रोष उत्पन्न करने का काम भी कर रहा है. बीते कुछ वर्षो में लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड करने का प्रयास किया जा रहा है. जिसमें कभी आश्रमों को अय्याशी का अड्डा दिखाने की कोशिश की जा रही है. जाहीर है अब तक ऐसे दृश्यों का यह प्रस्तुतियों का विरोध नहीं किया गया. यदि किया गया तो भी उसमें वह तीव्रता नजर नहीं आयी. जिसके कारण जनसामान्य की भावनाओ से खिलवाड करनेवाले अपनी मनमानी करते रहे है. बेशक कुछ धार्मिक मूल्यों का अमल करते हुए देश के अधिकांश लोग सहिष्णुता की भावना से ओरो के अपराध माफ करते रहे है. यह संस्कारों में प्राप्त नम्रता इस गुण का असर था. लेकिन जब नम्रता को कायरता समझने की मानसिकता बन जाती है तो उसका विरोध होना स्वाभाविक है. अब यह सिलसिला आरंभ हो गया है. पदमावती फिल्म के बाद रानी पदमावती के विषय में दर्शाये गये कुछ दृश्यों को लेकर करनी सेना ने जिस तरह विरोध प्रदर्शन किया था वह ऐसे तत्वों के लिए एक सबक रूप में था. लेकिन कुछ लोगों ने इस बात का सबक लेना उचित नहीं समझा. यही कारण है कि जनभावनाओं से खिलवाड करनेवाले दृश्यों की भरमार के साथ वेब सिरिज प्रस्तुत की जाती रही.
तांडव में भी इस तरह के अनेक दृश्य है. जो जनभावनाओं को आहत करते है. इसके पहले कंस ने प्रमुख व्यक्तिरेखा के अनेक विवादग्रस्त दृश्य हटाए गये है. वादग्रस्त दृश्य में जिशान अयुब नामक महाविद्यालय के विद्यार्थी शिवा नाम के पात्र को साकार किया है. एक नाटक में महादेव की भूमिका में भी वह नजर आता है. महादेव एवं नारद में भी आपत्ति जताई गई है. धार्मिक ग्रंथों के प्रसंगों को बिना समझे उस पर अनेक टिप्पणियां की जाती रही है . जबकि सतही तौर पर किसी अंश का अर्थ भले ही भिन्न नजर आता हो, लेकिन गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उसका यथार्थ सामने दिखाई देता है. रामचरित मानस की एक चौपाई को लेकर हर दम विवाद उठते रहे है. सतही उसका शाब्दिक अर्थ महिलाओं एवं जाति विशेष की भावनाओं को आहत करता है . लेकिन विदवानों द्बारा उसकी जो व्याख्या सामने आयी है वह स्पष्ट करती है कि इस चौपाई में किसी की भावनाओं को आहत करने का कोई उद्देश्य नहीं था. लेकिन शाब्दिक अर्थो में जाकर लोगों द्बारा उसका विरोध होता रहा है. इसलिए किसी भी धार्मिक ग्रंथ तथा उसके प्रसंगों को गंभीरता से समझना जरूरी है. तभी टिप्पणी सार्थक कहीं जा सकती है.
कुल मिलाकर कुछ लोगों द्बारा जनमानस की भावनाओं को सहजता से लिया जाता है जो कि उचित नहीं है . कम से कम धार्मिक भावनाओं को समझने की आवश्यकता है. क्योकि धार्मिक ग्रंथ उसके प्रसंग लोगों के मन में बसे है. कोरोना काल में देशभर के धार्मिक स्थल बंद किए गये थे. लेकिन धर्म से जुडे लोगो को कोई पीडा नहीं हुई. क्योंकि उनके इष्ट उनके हदय में निवास करते थे. लोगों ने इस प्रसंग को भी सकरात्मक दृष्टि से देखा. अनेक लोगों की प्रतिक्रिया थी कि ईश्वर मंदिरों से अब लोगों के घरों में भी आ गये है. सभी पर्व लोगों ने आस्था के साथ मनाए. अगर धार्मिक भावनाओं को सकरात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया जाता है तो यह सराहनीय है. लेकिन नकरात्मक प्रस्तुति भावनाओं को आहत करती है . इससे हर किसी को बचना चाहिए.

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