संपादकीय

प्रदूषण का खतरा

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण इस कदर बढ़ गया है कि लोगोंं को सांस लेना भी कठिन हो गया है. प्रदूषण का यह सिलसिला भले ही वर्तमान में राजधानी में हो लेकिन जिस तरह पर्यावरण की उपेक्षा की जा रही है. उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आनेवाले समय में प्रदूषण का खतरा और भी तीव्र हो सकता है. इसके लिए अभी से सभी को सजग होना जरूरी है. वैसे तो पूरे देश में भी प्रदूषण की स्थिति संतोषजनक नहीं है. सड़क विस्तारीकरण सहित अन्य विकास कार्यो को लेेकर पेड़ पौधों की बड़े पैमाने पर कटाई हो रही है. नियमानुसार यदि हम किसी एक पेड़ को काटते है तो हमें उसके बदले तीन पेड़ लगाने पड़ते है. लेकिन इसका पालन कहीं नहीं हो रहा है. यही कारण है कि प्रदूषण का खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. इसे नियंत्रित करने के लिए सभी वर्ग को अपना योगदान देना जरूरी है, बीच में पौधारोपण का अभियान आरंभ किया गया था. महाराष्ट्र सरकार ने तो हर वर्ष लाखों की तादाद में पौधे लगाने का कार्य आरंभ किया था. हर वर्ष हजारों पौधे लगाए जाते है. इस वर्ष कोरोना के कारण पौधारोपण का अभियान आरंभ नहीं किया गया. इस अभियान मेंं लोगों को पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में छेड़ा जाता है. इसके अंतर्गत बीते कुछ वर्षो में राज्यभर में करोड़ों पौधे रोपित किए जाते है. अब तक कई पौधे रोपित हो चुके है.लेकिन जिस प्रमाण में पौधारोपण चाहिए था. उस प्रमाण में पौधे नहीं रोपित किए गये. इससे प्रदूषण का खतरा बढ़ा हुआ है.

राजधानी दिल्ली में भले ही खतरा है लेकिन अब उसका विस्तार सभी क्षेत्रों में होने लगा है. इसलिए हर किसी को चाहिए कि वह पौधारोपण के लिए तत्पर रहना चाहिए.
बीते कुछ वर्षो में वाहनों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि उसका धुआं सर्वत्र फैल रहा है तथा यह धुआं वातावरण में फैलने के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ रही है. विभिन्न शहरों में अनेक सामाजिक संगठन बिना किसी उम्मीद के पौधे रोपित करने का अभियान छेड़ते थे. लेकिन इन संगठनों को राजाश्रय न मिलने के कारण यह अभियान भी कामयाब नहीं हो पा रहा है. कुछ वर्षो पूर्व तक अनेक सामाजिक संगठन बरसात के माह में पौधे रोपित कर अपना फर्ज अदा करते थे. इसके लिए संगठनों पर खर्च का बोझ बढ़ जाता था. इसी तरह सरकार की ओर से कोई विशेष प्रोत्साहन भी नहीं दिया गया. जिसके कारण अनेक सामाजिक संगठनों ने इस दिशा में अपना योगदान रोक रखा है. जरूरी है कि पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए सामाजिक संगठनों का भी योगदान दिया गया है. क्योंकि यह समस्या केवल सरकारी समस्या ही नहीं है. बल्कि मानवीय सृष्टि के लिए पौधों का होना अति आवश्यक है. इस कार्य में यदि हर कोई योगदान दे तो उसका लाभ आनेवाले समय व आनेवाली पीढिय़ों को मिल सकता है.

पर्यावरण संतुलन के लिए पौधों का होना आवश्यक है. क्योंकि पौधे कार्बनडाईआक्साइड खुद ग्रहण करते है तथा शुध्द हवा वातावरण में देते है. लेकिन अपने स्वार्थ के कारण अनेक पेड़ पौधों को काटने का जो सिलसिला जारी है. उस पर रोक लगनी चाहिए.
वर्तमान में राजधानी दिल्ली में जो स्थिति निर्माण हो रही है. आनेवाले समय में और भी जटिल हो जायेगी, ऐसे में सांस लेना दुभर हो जायेगा. इसलिए जरूरी है कि जहां पर्यावरण की स्थिति को समझा जाए. यदि पेड़ पौधे जीवित रहेंगे तो पर्यावरण को व्यापक लाभ होगा. बीते दिनों पर्यावरण के खतरेवाले अनेक शहरों के नाम भी घोषित किए गये थे. पर्यावरण का यह संकट हर प्रांत में बढ़ रहा है. इसलिए वहां की सरकारों को चाहिए कि पर्यावरण संतुलन के लिए योगय कदम उठाए. शालाओं में भले ही पर्यावरण संबंधी विषय रखा गया है. लेकिन यहां दी जानेवाली शिक्षा थ्योरोटिकल है. जबकि इसका प्रॅक्टीकल होना जरूरी है. कुल मिलाकर पर्यावरण का संकट दिनों दिन गहरा रहा है. राजधानी दिल्ली में अभी से ही प्रदूषण के कारण सांस लेना कठिन हो गया है. यदि यही सिलसिला चलता रहा तो भविष्य में हर किसी को सांस लेना कठिन हो जायेगा. हालांकि लोगों में अब पर्यावरण के प्रति जागरूकता आ रही है. लेकिन इसकी रफ्तार अत्यंत कम है.

जबकि प्रदूषण की रफतार तेज हैे. ऐसे में दोनों में संतुलन बनना आवश्यक है. मानवीय सृष्टि को कायम रखने के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति पर्यावरण पर ध्यान दे. जिन कारणों से प्रदूषण बढ़ता है उसे दूर करे. अभिप्राय यह पर्यावरण के प्रति आज हम जागृत नहीं होते है तो हो सकता है आनेवाला समय अत्यंत जटिल हो जाए. बालको को बचपन से ही पर्यावरण संतुलन की शिक्षा देना जरूरी है. जिससे इस राष्ट्रीय अभियान में योगदान दे सके.

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