संपादकीय

व्यवहारिक गठबंधन

ग्राम पंचायत चुनाव के माध्यम से एक बात स्पष्ट रूप से सामने आयी है कि राज्य में सत्तारूढ महाआघाडी गठबंधन केवल अवसरवादी गठबंधन न होकर व्यवहारिक गठबंधन है. शिवसेना के नेतृत्व वाले इस गठबंधन में शामिल घटक दलों की भले ही नीतिया आपस में मेल नहीं खाती हो. लेकिन समय के अनुरूप कार्य तथा निर्णय लेना इस गठबधन की खूबी रही है. जिसके कारण यह गठबंधन व्यवहारिक गठबंधन है. वर्तमान मेंं ऐसे ही गठबंधनों की जरूरत है. क्योंकि किसी एक दल की सरकार का आना कहीं न कहीं अति रंजना वाली स्थिति उत्पन्न कर देता है. एकतरफा निर्णय लिए जाने से जनमानस की भावनाओं को विशेष अहमियत नहीं मिल पाती. यही कारण है कि देश में कुछ निर्णय जनसामान्य व किसानों के लिए प्रतिकुल बने हुए है. जिसको लेकर आंदोलन भी जारी है. एक ही दल की सरकार की निर्मिति से विपक्ष पूरी तरह कमजोर हो जाता है. जबकि प्रजातंत्र में सत्तादल के साथ साथ विपक्ष का भी मजबूत होना अति आवश्यक है. कोई भी दल हो बेशक व सभी क्षेत्र के लोगों को खुश नहीं रख सकता. बिगडी व्यवस्था में सुधार के लिए उसे कुछ नये कदम उठाने पडते है. जिससे जनसामान्य का जीवन प्रभावित होता है . विपक्ष न रहने के कारण उनकी यह पीडा सामने नहीं आती है. जिससे सभी लोगों को पीडा के घूट पीकर रहना पडता है. इस बार ग्राम पंचायत चुनाव में महाराष्ट्र मेें सत्तारू ढ महाआघाडी गठबंधन का बोलबाला रहा है. जबकि सरकार के गठन के बाद से अनेक राजनीतिक दलों ने इस गठबंधन को विफल बताया है. बार-बार यह बात उठती है कि यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा. लेकिन सरकार ने सत्ता संचालन का एक वर्ष पूर्ण किया है. खास बात यह है कि इस कार्य में अनेक बाधाए भी थी. सबसे बडा संकट कोरोना महामारी का रहा है. मुुंबई में हजारो लोग इस बीमारी से पीडित हुए. इसी तरह पूरे राज्य में भी कोरोन का कहर छाया रहा. बीमारी के कारण संक्रमण रोकने के लिए प्रशासन द्बारा जो ऐहतियाती कदम उठाये गये है. उससे भी कई लोगों को भारी नुकसान हुआ है. सारे पर्व लाकडाउन में रहने के कारण उत्सव जैसी कोई बात नहीं हो पायी. परिणाम स्वरूप अनेक व्यापार हाशिये पर पहुंच गये. अब उन्हें संवरने में काफी समय लग रहा है. चूकि सरकार के इस मामले में अनेक निर्णय एकतरफा लिए जाते रहे है. जिसके कारण लोगों को परेशानियों का भी सामना करना पडा. बेशक केन्द्र में सत्तारूढ सरकार के समर्थक स्वयं को हर क्षेत्र में मजबूत बता रहे है. लेकिन कहीं न कहीं दोष लोगों को दिखाई दे रहा है.
ग्रापं चुनाव यह राजनीति का प्रथम सोपान है. यहां पर मिलनेवाली सफलता से ग्रामीण जनजीवन की भावनाएं उभरकर सामने आती है. ग्रामीण जनजीवन ने इस चुनाव में राज्य में सत्तारूढ महाविकास आघाडी के प्रति अपनी अनुकूलता दिखाई है. जिससे यह स्पष्ट है कि जनसामान्य महाविकास आघाडी के प्रति अनुकूल होता जा रहा है. सरकार गठन के बाद जिस तरह आघाडी की आलोचना की गई थी. वह अब स्वतंत्र रूप से योग्य निर्णय ले रहा है. खासकर महाविकास आघाडी के सभी घटक दल भी जनसामान्य की द़ृष्टि में योग्य कार्य कर रहे है. सरकार के सामने इस समय अनेक चुनौतिया है. बावजूद इसके ग्राम पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण रहा तथा इसकी मतगणना पश्चात यह बात सामने आने लगी है. महाविकास आघाडी को माननेवाले आज राज्य में अनेक लोग है. बेशक सरकार के गठन होने के बाद राज्य में विशेष बडे कार्य नहीं हो पाए है. लेकिन जो कार्य हुए है वे ठोस कार्य थे. इसके कारण आघाडी के प्रति लोगों में अनुकूलता निर्माण हुई है तथा लोग इस पर विश्वास करने लगे है.
कुल मिलाकर सत्ता संभालने के बाद से महाविकास आघाडी के प्रति लोगों में जो धारणा थी कि यह गठबंधन बेमेल है. लेकिन अब यह धारणा क्षीण होने लगी है. जनसामान्य मानने लगा है कि भले ही सरकार के घटक दलों में मतभेद है. लेकिन मनभेद कतई नहीं है. सभी सदस्य राज्य का विकास चाहते है. विशेषकर ऐसी स्थिति में वे कार्य कर रहे है. जब राज्य में विपक्ष पूरी तरह मजबूत है. बावजूद इसके विपक्ष अपना प्रभाव नहीं छोड पा रहा है. यही कारण है कि धीरे धीरे यह महाआघाडी राज्यवासियों के हदय में स्थान बना लेगी व सत्ता के क्रम को पूरी तरह एकजूट होकर संचालित करेेगी.

Related Articles

Back to top button