स्वदेशीयत को दे बढावा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस वर्ष की अंतिम मन की बात कार्यक्रम में कहा कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत में बने उत्पादों का इस्तेमाल किया जाए. इससे न केवल राष्ट्र मजबूत होगा बल्कि राष्ट्रप्रेम की भावना मजबूत बनेगी. वैसे भी देशवासियों में राष्ट्र के प्रति व्यापक अपनापन है. यह बात कई अवसरों पर देखने में आयी है. जब भी राष्ट्र पर कोई संकट निर्माण हुआ है सभी राष्ट्रवासी एकजुट होकर राष्ट्र के प्रति अपना योगदान देने के लिए आगे आए है. ऐेसे में यह जरूरी हो गया है कि राष्ट्र को भी मजबूत किया जाए. राष्ट्र में निर्मित वस्तुओं को बढावा दिया जाए. क्योंकि राष्ट्रनिर्मित वस्तुओं से जो लाभ होगा वह देश के ही उत्पादक को होगा. इस लाभ के माध्यम से वह ओरों को रोजगार दे सकेगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकाशवाणी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 72 वें संस्करण को रविवार को प्रस्तुत किया. इस समय उन्होंने राष्ट्रवासियों से अनुरोध किया कि वे राष्ट्र में निर्मित वस्तुओं को ही उपयोग में लाए. प्रधानमंत्री के इस संदेश का व्यापक असर देशवासियों ने इससे पूर्व भी देखा गया है. रक्षाबंधन के समय अनेक महिलाओं ने चीन सहित विभिन्न देशेां से निर्मित होकर यहां पहुंचनेवाली वस्तुओं की खरीद का टाला. उसका विशेष रूप से बहिष्कार किया. निश्चित रूप से यह कृति देशवासियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था. आज भी सभी को यह संकल्प जरूरी है कि वे राष्ट्र में निर्मित वस्तुओं का इस्तेमाल करे. स्पष्ट है कि इस तरह के संकल्प से देशवासियों को उत्पादन में प्रोत्साहन मिलेगा.
केवल राष्ट्र निर्मित वस्तुएं के इस्तेमाल से आत्मनिर्भरता संभव नहीं. इसके लिए जरूरी है कि वस्तुए के निर्माण के साथ साथ गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. यदि वस्तुएं गुणवत्ता से परिपूर्ण हो तो उपभोक्ता को भी राहत मिलती है तथा वह बार-बार ऐसी वस्तुओं को खरीदने को प्राथमिकता देगा. आमतौर पर पाया जाता है कि अनेक वस्तुए मिलावट के लिए बदनाम है. उत्पादको को चाहिए कि वे ऐसी वस्तुओं पर ध्यान रखे. इन वस्तओं में मिलावट है उसका बहिष्कार भी किया जाना चाहिए. साथ ही दंडात्मक कार्रवाई भी की जानी चाहिए. यदि गुणवत्तापूर्ण वस्तुएं नही रहती है तो उपभोक्ता को भारी निराशा का सामना करना पडता है. ऐसे में वह यह सोचने को मजबूर रहता है कि देश में निर्मित वस्तुए बाहर से आनेवाली वस्तुओं की तुलना में अत्यंत कमजोर है. जिसके कारण इसका मन खट्टा हो जाता है. स्वदेश की भावना पर आंच आती है. इसलिए जरूरी है कि वस्तुुओं के उत्पादक स्वयं वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान दे. यदि ऐसा किया जाता तो वस्तुओं की बिक्री में कोई रूकावट नहीं आयेगी.
महात्मा गांधी ने लघु उद्योगों की संकल्पना प्रस्तुत की थी. इसमें उन्होंने चाह था कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित होनेवाली वस्तुओं को प्रोत्साहन मिलेगा. आज देश के हर ग्रामीण क्षेत्र में बचत समूह कार्यरत है. इसके माध्यम से अनेक महिलाएं एकजुट होकर लघु उद्योगों को बढावा दे सकती है. हालाकि सरकार की ओर से हर वर्ष महिला बचत समूहों के उत्पादों को योग्य मार्केट मिले इसलिए अलग-अलग स्थानों पर प्रदर्शनी आदि की व्यवस्था की जाती. जिसके माध्यम ये उपभोक्ता इन उत्पादों को खरीदकर राष्ट्रीयता को बढावा देने का प्रयास कर सकता है. सरकार को भी चाहिए कि देश में निर्मित वस्तुओं को योग्य बाजारपेठ उपलब्ध कराए. यदि ऐसा किया जाता है तो निश्चित रूप से स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लोगों में चाह निर्माण होगी. देश में ऐसी कोई भी वस्तुए नहीं है जिसका उत्पादन कठिन हो. यदि यहां के उत्पादक चाहे तो एक से एक गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं को उत्पादित कर सकते है. यह संभव है कि जिन वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जा रहा है. उसका लागत मूल्य बढ सकता है. इसके कारण बिक्री का भी महंगा होना संभव है, ऐसे में सरकार को स्वयं पहल कर योग्य सुविधाएं व करों में छूट दी जाए तो निश्चित रूप से इसका लाभ मिल सकता है. उपभोक्ता भी कम लागत में वस्तुओं का निर्माण कर सकते है. कुल मिलाकर प्रधानमंत्री द्बारा जो मन की बात कही गई है वह न केवल राष्ट्रहित में है बल्कि राष्ट्र के विकास के लिए भी आवश्यक है. इसके लिए सभी को अपना योगदान देना होगा. उपभोक्ताओं को जहां वस्तुओं की श्रेणी उंची रखने का कार्य करना है वहीं पर उपभोक्ताओं को भी स्वदेश निर्मित वस्तुओं की खरीदी पर ध्यान देना होगा. इसके लिए जरूरी है कि देशवासी यह संकल्प ले कि वे विदेश निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार करने के साथ स्वदेश निर्मित वस्तुओं का उपयोग करेंगे. निश्चित रूप से ऐसा करने पर राष्ट्र के विकास में भारी योगदान मिलेगा. जरूरी है कि हर कोई इस बारे में चिंतन करे और सरकार भी स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण में जुडे लोगों को योग्य रियायत दे. जिससे वे अपने उत्पादो को कम लागत में निर्मित कर सके.