संपादकीय

बलात्कार रोकने का फार्मूला

उत्तरप्रदेश के हाथरस में हुए सामूहिक दुष्कर्म एवं पीडि़ता की मृत्यु के मामले में बयान देते हुए भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह ने एक नया फार्मूला सुझाया है. उन्होंने कहा है कि वे केवल एक विधायक ही नहीं बल्कि एक शिक्षक भी है. उनका मानना है कि बलात्कार की घटनाओं पर कानून और दंडात्मक कार्रवाई से नहीं रोकी जा सकती. अपराध पर नियंत्रण के लिए पालको का भी दायित्व हैकि वे अपनी पुत्रियों को योग्य संस्कार दें. विधायक महोदय के कहने का अर्थ भले ही संस्कार से जुड़ा हो लेकिन उसे दूसरे अर्थ में लिया जाए तो यह भी बात सामने आती है कि पालको द्वारा अपनी पुत्रियों को संस्कार नहीं दिए जाते है. जिसके कारण बलात्कार की घटनाएं हो रही हैे. बलात्कार यह शब्द ही अपने आप में जोर जबर्दस्ती को स्पष्ट करता है. इस हालत में संस्कार की सर्वाधिक जरूरत पुत्रियों से अधिक पुत्रों के लिए है. क्योंकि जो पीडि़त है वह उसकी विवशता है. लेकिन अपराध करनेवाले तत्वों की मानसिकता कहां मर जाती है कि वे यह भूल जाते है कि,उनके अपने परिवार में भी इसी तरह बहन बेटियां है.

हर माता-पिता अपने पाल्यों को समुचित संस्कार प्रदान करता है. चूंकि युवतियों को भी आज विभिन्न कारणों से घर के बाहर जाना पड़ता है व अनेक कार्यो में उनकी हिस्सेदारी रहती है. इस हालत में उनके पास संचित संस्कार उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोकते है लेकिन उनकी इस संस्कारित कार्यशैली को कुछ असमाजिक तत्व अलग अंदाज में लेते है. विनम्रता को कायरता समझ उन पर आक्रमक हो जाते है. अब तक दुष्कर्म की घटनाओं में यह बात सामने आयी है कि पीडि़ता के साथ ज्यादती की गई है, ऐसे में संस्कारित युवती भी असामाजिक तत्वों के आगे मजबूर हो जाती है तथा उसे भीषण आघात का शिकार होना पड़ता है. विधायक महोदय द्वारा जो संस्कार का फार्मूला दिया गया है वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि बलात्कार या अन्य दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए कानून व्यवस्था की भूमिका अहम रहती है. कानून बना लेना आसान है पर उस पर अमल भी होना चाहिए. अब तक पाया गया है कि दुष्कर्म की घटनाएं आए दिन बढ़ती जा रही है. इसे रोकने के लिए कडे कानून की आवश्यकता है.

जिस तरह नई दिल्ली में निर्भया दुष्कर्म कांड, हैदराबाद में पशु चिकित्सक महिला के साथ हुए दुष्कर्म कांड में जिस तरह पुलिस ने गंभीरतापूर्वक जांच की तथा हैदराबाद कांड मामले में आरोपियों का ऐनकाऊंटर हो गया वह भूमिका पूरे देशवासियो के लिए उत्साह का क्षण रहा. इन दोनों घटनाओं में आरोपियों को योग्य सजा मिली हैे. इसी तरह हर दुृष्कर्म के मामले मेें तेजी से कडी से से कडी सजा का पालन किया जाना चाहिए. संस्कार केवल कन्याओं को देने से ही समस्या का निराकरण नही होगा. उन्हें संस्कार के साथ साथ स्वयं के बचाव के लिए भी कुशल बनाना जरूरी है. वर्तमान में जब ऐसी घटनाएं बढ़ रही है.इसलिए जरूरी है कि दोषियों पर कडी कार्रवाई हो. जब तक दोषियों को कडे से कडा दंड नहीं मिलता तब तक इसी तरह संभ्रम कायम रहेगा. जरूरी है कि हर कोई ऐसे तत्वों के खिलाफ ठोस भूमिका रखे.

हाथरस कांड के मामले में कांग्रेस के एक नेता द्वारा कहा गया है कि इस घटना के आरोपी का सरकलम कर जो उनके पास जायेगा. इस आशय का बयान भी किस संस्कार में आता है. संस्कार की जिम्मेदारी केवल पुत्रियों पर थोपी जा रही है. इस हालत में संबंधित विधायक का बयान पीड़ाजनक है. हाथरस की घटना को लेकर अनेक पहलू सामने आ रहे है. एक ओर पीडि़ता का परिवार यह कह रहा है कि पीडि़ता के साथ अन्याय नहीं हुआ उस पर गैंगरेप किया ही नहीं गया. जबकि विरोधी पार्टी के नेतागण सहित पीडि़ता के परिवार के लोग इस घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे है. इसके लिए राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मंडल हाथरस में पीडि़त परिवार से मिल रहे है. लेकिन अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने पीडि़ता के लिए सहायता घोषित नहीं की है. सच तो यह है कि इस घटना का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए था. सरकार ने इस घटना की सीबीआई जांच की तैयारी दिखाई है तो निश्चित रूप से इसकी जांच पूरी तरह की जानी चाहिए. इसी तरह दुष्कर्मियों को किस तरह दंडित किया जा सकता है, इसका भी प्रबंध होना आवश्यक है.

आज देश में करीब १७ हजार से अधिक मामले महिला उत्पीडऩ के लंबित है जिनकी अभी पूरी तरह सुनवाई नहीं हो पायी है. यही कारण है कि अनेक लोग न्याय से वंचित रह जाते है. जरूरी है कि ऐसे मामलो की सुनवाई फॉस्ट ट्रॅक अदालतों में होना चाहिए.इससे फैसला भी जल्द हो जायेगा व पीडि़त के साथ न्याय हुआ है यह हर कोई मान सकता है. क्योंकि कानून मानता है कि देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता. इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पूरे मामले की व्यापक जांच करे. जो दो विरोधावाासी बाते सामने आ रही है. उसका भी निराकरण होना चाहिए. कुल मिलाकर हाथरस की घटना अपने आप में काफी मायने रखती है. इस मामले में तत्काल न्याय की दरकार है. बहरहाल इस मामले को गंभीरता से लेना आवश्यक है. साथ ही दोषियों पर कार्रवाई भी की जानी चाहिए. संस्कार का मिलना अति आवश्यक है. लेकिन संस्कार को ही सर्वेसर्वा नहीं माना जा सकता. दुर्घटना का शिकार होना यह संस्कार से जुड़ा पहलू नहीं है. संस्कारित ही करना है तो पुत्रियों की जगह पुत्रों को किया जाना चाहिए. ताकि वे महिलाओं के प्रति सम्मान का महत्व समझे. यह सर्वविदित मत है कि ‘भय बिन होई न प्रीत’ इसलिए कानून का डर भी होना आवश्यक है. यह डर तभी पैदा हो सकता है जब दोषियों को कडे से कडा दंड दिया जाए.

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