रावत का ड्रेसकोड
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत ने अपने एक बयान में कहा है कि युवतियां व महिलाएं फटी हुई जींस न पहने. मुख्यमंत्री द्वारा दिए गये इस बयान से महिलाओं में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है. महिलाओं का कहना है कि यह उनका संवैधानिक हक है कि वे क्या पहने और कैसे रहे, ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह का बयान देना उचित नहीं है. यहां तक की फिल्म जगत की मशहूर हस्ती अमिताभ बच्चन की नातन ने भी मुख्यमंत्री के इस बयान की आलोचना की है. निश्चित रूप से किसी के पहनावे को लेकर विचार नहीं लादे जा सकते. क्योंकि यह हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह अपना जीवन व रहन सहन कैसा रखे. विशेष यह कि फटे वस्त्र पहनने का फैशन विगत अनेक वर्षो से जारी है. जिसके चलते यदि कोई प्रतिक्रिया व्यक्त भी करनी थी तो उसे तब प्रस्तुत किया था जब इस तरह का फैशन आरंभ हुआ था. वैसे भी प्राथमिक शालाओं में शिक्षको द्वारा यह सीख दी जाती है कि भले ही वस्त्र फटे हो लेकिन उसमें स्वच्छता होनी चाहिए. यह स्वच्छता केवल वस्त्र में ही नहीं मन में भी होना जरूरी है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा उपरोक्त बयान दिए जाने के बाद महिलाओं में जो प्रतिक्रिया उभर रही है. उसमें यह कहा जा रहा है कि महिलाओं के प्रति ड्रेसकोड की भाषा उचित नहीं है. ड्रेस में कोई खराबी नहीं अलबत्ता लोगों की नियत में भले ही खराबी हो. इसलिए महिलाओं के प्रति हर किसी को अपना द़ृष्टिकोण प्रगतिशील रखना चाहिए. वैसे भी जब-जब महिलाओं पर ड्रेसकोड लादने की बात कही गई देशभर की महिलाओं ने उसका विरोध किया है.
यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री द्वारा ड्रोसकोड के विषय में कहते समय कोई दुर्भावना नहीं थी. लेकिन जब इस बात को संस्कार से जोडा गया तो लोगों में खासकर महिलाओं में तीव्र प्रतिक्रिया उमटने लगी है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री एक पालक भी है. इस द़ृष्टि से उनके बयान की प्रस्तुति में कोई दुर्भावना नहीं हो सकती. पालक होने के नाते एक सलाह के तौर पर उनके द्वारा यह बात कही जा सकती है. बहरहाल मुख्यमंत्री ने अपनी बात तो कह दी है. उसे गलत लहजे में नहीं लिया जाना चाहिए. एक सलाह के तौर पर भी इस बात को सुना जा सकता है. इससे पहले खाफ पंचायत ने भी ड्रेसकोड के बारे में कहा गया था. उस समय भी इस बात का विरोध हुआ था. निश्चित रूप से हर महिला यह चाहती है कि उन पर अनावश्यक बंधन न लगाया जाए. आज महिलाए सभी क्षेत्र में अग्रसर होकर काम कर रही है. इसलिए उन्हें भी यह आजादी मिलना जरूरी है कि वे अपनी मर्जी के मुताबिक परिधान करे. लेकिन यह अपेक्षा हर किसी की रहती है कि परिधान मर्यादा के बीच हो. महिलाओं का मानना है कि वे जब सभी क्षेत्रों में पुरूषों की बराबरी तो उन्हें अपने रहन सहन के विषय में भी योग्य आजादी मिलनी चाहिए. यह बात अलग है. हर व्यक्ति की अपनी एक राय हो सकती है लेकिन जब सामाजिक जीवन में रहना पडता है तो उसके कुछ मापदंड अवश्य रहते है. इसलिए जरूरी है कि हमारा आचरण सामाजिक मर्यादाओं के बीच में हो. यदि ऐसा होता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं रहेगी. कुल मिलाकर मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत ने जो बयान दिया है. वह पूरी तरह से उचित नहीं माना जा सकता. कहीं न कहीं महिलाओं के आत्मसम्मान को इस बयान से ठेस पहुंचती है. यही कारण है कि महिलाओं में इस बयान को लेकर तीव्र प्रतिक्रियाए है. इसलिए जरूरी है कि हर कोई इस बयान के विषय में गंभीरतापूर्वक चिंतन कर अपनी राय तय करे. मुख्यमंत्री द्वारा एक तरीके से योग्य सलाह दी गई है. लेकिन इस बयान से नारी अस्तित्व को धक्का लगता है तो उचित नहीं है. फैशन का उद्देश्य अपने व्यक्तित्व को निखारना है. यदि कुछ फैशन से किसी को आपत्ति है तो उसे वह व्यक्त भी करता है. हालाकि यदि कोई सामान्य व्यक्ति इस तरह की प्रतिक्रिया दे तो उसे योग्य महत्व नहीं मिल पायेगा. लेकिन किसी महत्वपूर्ण पद पर विराजमान व्यक्ति द्वारा इस तरह की प्रतिक्रिया अत्यंत मायने रखती है. यही कारण है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत प्रतिक्रिया को लेकर महिलाओं में रोष है. यहां तक की अनेक महिलाओं ने मुख्यमंत्री को अपने बयान पर माफी मांगने को भी कहा है. निश्चित रूप से यह बात कहीं न कहीं महिलाओं की भावनाओं को आहत करनेवाली है. इसीलिए मुख्यमंत्री रावत को चाहिए वे अपने बयान को वापस ले.
व्यक्ति जब एकल जीवन में रहता है तो उसके आचरण में वह जो भी कार्य करता है इसके लिए वह स्वयं ही जिम्मेदार माना जाता है न तो कोई उसे प्रोत्साहित करता है और न ही उसे कोई हतोत्साहित करता है. लेकिन सामाजिक जीवन में आने के बाद सारे मापदंड बदल जाते है. वर्तमान में हर कोई सामाजिक प्राणी है. इसलिए उसे अपने व्यवहार भी सामाजिक मर्यादाओ के अनुकूल करना चाहिए. बेशक मुख्यमंत्री रावत ने जिस किसी भी भावना के वशीभूत होकर महिलाओं को ड्रेसकोड के बारे में बयान दिया है उसे सामान्य तौर पर लेना चाहिए. लेकिन पाया जा रहा है कि इस बयान को अनावश्यक रूप से विषय बनाया जा रहा है. इसके चलते जरूरी है कि सामाजिक जीवन व महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति की राय के बीच योग्य तालमेल जरूरी है. खासकर जिन बयानों से किसी वर्ग विशेष में नाराजी उभरती है, ऐसे बयानों से बचना चाहिए. यदि महिलाओं को मुख्यमंत्री के बयान से नाराजी है तो सीएम रावत का यह दायित्व है कि वे अपने बयान को लेकर खेद भी व्यक्त करे.