संपादकीय

मंत्री का त्यागपत्र

बिहार में पदभार संभालने के बाद महज एक घंटे में मंत्री पद से त्यागपत्र दिए जाने का संभवत यह पहला अवसर है. हाल ही में बिहार में मुख्यमंत्री नितिश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू को भाजपा गठबंधन की सरकार ने पदभार संभाल लिया है. इसमें शिक्षामंत्री के रूप में मेवालाल चौधरी को नियुक्त किया गया. उन पर शिक्षा क्षेत्र में अनेक भ्रष्टाचार के आरोप लगे है. मंत्री बनने के बाद से ही उनका विरोध आरंभ हो गया था. लगातार विरोध के चलते उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया है. इससे पूर्व भी अनेक सरकारों में शामिल मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है. लेकिन आरोप लगते ही त्यागपत्र देने की नौबत कभी नहीं आयी. लेकिन बिहार में मंत्री पद की शपथ लेने के बाद तथा पदभार संभालने के बाद त्यागपत्र देना पड़ा, ऐसा चित्र भारतीय राजनीतिक के इतिहास में नहीं दिखाई दिया.

अव्वल तो मंत्री पद के लिए नेता का चयन करते समय सभी बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. लेकिन बिहार में ऐसा नहीं किया गया. मेवालाल पर भ्रष्टाचार के कई आरोप है. बावजूद इसके उन्हें मंत्री पद बहाल किया गया. हालाकि होना यह चाहिए था कि बिहार में जब लोगों ने सरकारी नौकरियों के सब्जबाग दिखाए जाने के बाद भी मतदाताओं ने भाजपा एवं जेडीयू गठबंधन को विजयी बनाया.जिस समय चुनाव परिणाम आ रहे थे उस समय लोगों में यह भय था कि स्पष्ट बहुमत किसे मिलता है. जनादेश घोषित होते ही यह बात स्पष्ट हो गई कि जनादेश गठबंधन वाली सरकार के लिए मिला है. इसके आधार पर मुख्यमंत्री नितिश कुमार के नेतृत्व में भाजपा जेडयू गठबंधन की सरकार अस्तित्व में आयी. लेकिन सरकार में मंत्रियों का चयन करते समय विशेष भूल सामने नहीं दिखाई दी. जब विपक्ष ने इस भूल का अहसास कराया तब कहीं जाकर शिक्षामंत्री मेवालाल चौधरी ने त्यागपत्र दिया है. हालाकि उनका मानना है कि जब तक आरोप साबित नहीं होते तब तक इन आरोपों का कोई औचित्य नहीं है.
तेजस्वी यादव द्वारा इस बात को सामने लाया गया कि इस मामले में स्वयं नीतिश कुमार दोषी है. क्योंकि उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि वे जिन लोगों को मंत्री बना रहे है क्या वे मंत्री पद के मापदंड पर खरे उतरते है. जब भ्रष्टाचार का आरोप है तो ऐसे व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाना चाहिए था. हालाकि मेवालाल ने पद से त्यागपत्र देते हुए कहा है कि मर्यादा का पालन करते हुए उन्होंने यह त्यागपत्र दिया है. जबकि उन पर कोई आरोप साबित नहीं है. निश्चित रूप से उनका यह कथन भी महत्वपूर्ण है. आरोप लगना व आरोप साबित होना दोनो अलग-अलग बाते है. बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जाता कि जहां धुआं है वहां आग होगी ही.नितिश सरकार के लिए यह एक चिंता का विषय है. उन्होंने सभी मंत्रियों की साधन सुचिता कायम रखने के लिए विशेष ध्यान नहीं दिया था. यहां एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि सरकार बनने के तुरंत बाद मंत्री महोदया पर त्यागपत्र की नौबत आयी. ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि बिहार में विपक्ष अत्यंत मजबूत स्थिति में है.

विपक्ष के लगातार आक्रमण के बाद मंत्री महोदय को तत्काल त्यागपत्र देना पड़ा. वर्तमान राजनीति में जहां सत्तादल का मजबूत रहना आवश्यक है. वहीं पर विपक्ष भी प्रभावी होना चाहिए. यदि विपक्ष कमजोर रहा तो अनेक समस्याएं निर्माण हो सकती है. वर्तमान में बिहार में जो लोगों ने जनादेश दिया है उसमें जितना महत्व सत्तादल को दिया गया है. उतना ही विपक्ष के गठबंधन को मिला है. इससे भविष्य में अनेक सार्थक परिणाम दिखाई देंगे. सरकार यदि कुछ निर्णय के मामले में गलत दिखाई देती है तो विपक्ष तत्काल आक्रमक होकर उसका विरोध कर सकता है. मेवालाल चौधरी के मामले में यह बात खुलकर सामने आयी है. जन सामान्य को मजबूत बनने के लिए विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है. कुल मिलाकर बिहार में शिक्षामंत्री द्वारा दिया गया त्यागपत्र यह जनमानव के अनुकूल है.

बहरहाल इस बात को माना जा सकता है कि यदि विपक्ष मजबूत हालत में रहा तो सत्ताधारी दल पर भी अंकुश रहेगा तथा निर्णय में सबकी सहभागिता रहेगी. इसलिए इस बात पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है कि राजनीति में विपक्ष को भी मजबूत बनाया जाए. बहरहाल मंत्री मेवालाल ने त्यागपत्र देकर योग्य कार्य किया है. इससे मर्यादा बनी रहेगी. मामले की जांच जारी है. उसका सच अंत में सामने आयेगा. लेकिन इसके लिए विपक्ष को मजबूत बनाना आवश्यक है. स्वयं विपक्ष को भी आत्मविश्वास एवं जिम्मेदारी की साथ अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी तभी सुशासन की स्थिति निर्माण होगी.

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