संपादकीय

कुपोषण का कलंक

अमरावती जिले के आदिवासी बाहुल क्षेत्र मेलघाट (Melghat, the tribal Bahul region of Amravati district) में कुपोषण की स्थिति में कोई सुधार नहीं लाया गया है. ९० के दशत में मेलघाट में कुपोषण (Malnutrition) खुलकर सामने आया था. उस समय मेलघाट की तुलना सोमालिया के कुपोषण से की जा रही थी. यह बात राष्ट्रीय स्तर पर गूंजी. परिणाम स्वरुप समूचा तंत्र मेलघाट के कुपोषण को लेकर सक्रिय हो गया. इस समय अनेक ऐसी योजना बनाई गई जो कुपोषण समाप्ती के लिए पोषक थी. लेकिन योजनाओं पर अमल प्रभावी ढंग से नहीं हो पाया. यहीं कारण है कि, आज भी मेलघाट के प्रकारांतर में अमरावती के माथे पर कुपोषण का कलंक कायम है. इस वर्ष भी मेलघाट के चिखलदरा व धारणी क्षेत्र के अनेक गांव कुपोषण से प्रभावित है. खास कर इन दिनों विश्वव्यापी महामारी कोरोना के चलते अन्य सभी मामलों की ओर प्रशासन का ध्यान बंटा हुआ है. समूचा तंत्र कोरोना के संकट को टालने के लिए सक्रिय है. इसमें जहां लोगों की कोरोना टेस्ट की जा रही है, वहीं पर पॉजिटिव पाये जाने वाले व्यक्तियों के इलाज में सरकारी तंत्र लगा हुआ है. यहीं कारण है कि, अनेक गांवों में दूषित पानी की सप्लाई होने के कारण वहां बडी संख्या में लोग डायरिया सहित अन्य संक्रामक बिमारियों से पीडित है. इसी तरह कुपोषण के प्रति भी प्रशासन का विशेष ध्यान न रहने के कारण मेलघाट में कुपोषण की स्थिति पहले जैसी ही बनी हुई है. वर्ष २०१९ में ८१ लोग कुपोषण के कारण मौत के शिकार हुए. वर्ष २०२० में भी हालत गंभीर है. इस वर्ष जुलाई माह के अंत तक ७० लोगों की कुपोषण से मृत्यु हुई है. वर्ष २०२० का वर्ष पूरा होने में अब करीब ४ माह का समय शेष है. आने वाले दिनों को देखते हुए यह माना जा सकता है. यह आकडा और आगे बढ सकता है.
कुपोषण की समस्या वर्षों पुरानी रहने के बावजूद इसमें सुधार के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गये है. सर्वप्रथम जब कुपोषण प्रकाश में आया था तब राज्य के तत्कालिन सरकार ने अनेक योजनाएं मेलघाटवासियों के लिए घोषित की थी. कागजो पर योजना पूरी होते हुए भले ही दिखाई दे पर हकीकत में कुपोषण का कलंक कायम है. कुपोषणमुक्त अमरावती जिला बनाने की योजना २००३ में आरंभ की गई. इस योजना से उम्मीद थी कि, अमरावती जिला पूरी तरह कुपोषण मुक्त हो जाएगा. लेकिन पाया जा रहा है कि, कुपोषण के मामले में कोई विशेष सुधार नहीं आया है. मेलघाट परिसर के अनेक गांवों में कुपोषण का कहर देखा जा सकता है. मेलघाट का परिसर यह वनसंपदा से सजा हुआ है. यहा पर पर्यटन की अनेक संभावना है. वहां की वनसंपदा का यदि योग्य जतन किया जाता है, तो निश्चित रुप से इस क्षेत्र का आकर्षण बढ सकता है तथा पर्यटन की संभावना को भी विकसित किया जा सकता है. अनेक पर्यटकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि, मेलघाट जैसा क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण लोगों को आकर्षित कर सकता है.
चारों ओर हरियाली, जगह-जगह बहते झरने लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते है. अभयारण्य में विचरण करते जंगली पशुओं को देखने का अवसर यहा मिलता है. हर वर्ष बाघो की गणना की जाती है. ऐसे सौंदर्य युक्त क्षेत्र में कुपोषण का होना qचता की बात है. इसलिए यह जरुरी है कि, मेलघाट जो पर्यटन दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है. वहां कुपोषण जैसी समस्या का होना इस क्षेत्र के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. मेलघाट में कुपोषण का समापण हो, इस दृष्टि से जो प्रयास हुए है, वे पर्याप्त नहीं माने जा सकते. क्योंकि कभी प्रशासन की लापरवाही, तो कभी मेलघाटवासियों की स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता इसके लिए जिम्मेदार रही है. हर वर्ष बरसात में मेलघाट क्षेत्र में सडकों का आपस में संपर्क टूट जाता है. ऐसी भयावह स्थिति में कुपोषण का बढना स्वभाविक है. कुपोषण की समस्या मेलघाट के लिए नई नहीं है. यहां हर वर्ष कुपोषण की भी समस्या कायम रहती है. हालाकि इसके अनेक कारण है.
मेलघाट में रोजगार के अवसर न होने के कारण अनेक आदिवासियों को हर वर्ष स्थलांतरण करना पडता है. दूसरे क्षेत्र में कार्य के अनुरुप मुआयजा न मिलने के कारण वहां भी उन्हें अभाव से जुझना पडता है. इस हालत में जरुरी है कि, मेलघाट में रोजगार के अवसर विकसित किये जाए. जिससे वहां के नागरिकों को स्थलांतरण से रोका जा सके. इसी तरह सरकारी योजनाओं का प्रभावी ढंग से यदि अमल होता है, तो भी कुपोषण की समस्या से निपटना कठिन नहीं है. लेकिन पाया गया है कि, शिक्षा हो या स्वास्थ्य के अलावा अन्य संस्कृतिक क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है. जरुरी है कि, संबंधित प्रशासन इस बात को गंभीरता से ले तथा मेलघाट के हर वर्ष उभरने वाली कुपोषण की समस्या का निराकरण करें.

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