संपादकीय

निराशा में उठ रहे आत्मघाती कदम

देश में कोरोना संक्रमण के कारण करीब एक साल से बार-बार लॉकडाउन के चलते अनेक लोगों को अपना रोजगार खोना पड रहा है. जिसके कारण उनकी आार्थिक हालत दयनीय होती जा रही है. इस दैन्य अवस्था के चलते अनेक परिवार अब आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो गये है. हाल ही में पुणे में एक व्यक्ति ने बेरोजगारी से त्रस्त होकर पहले अपनी पत्नी की हत्या की व पुत्र को भी तीक्ष्ण हथियार से मौत के घात उतार दिया व अंत में स्वयं को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. कोरोना संक्रमण से जान जा सकती है. भले ही यह सबसे बडा सत्य है. लेकिन उससे भी ज्यादा भयावह की स्थिति रोजगार के अभाव मेें लोगों के सामने उभर रही है. भूख से विलखते बच्चें तथा घर में अभाव का साम्राज्य जिसके कारण बढता मानसिक तणाव अब लोगों को निराशा के गर्त में ढकेल रहा है. निराशा की इस दौर में कुछ लोग भले ही हिम्मत बांध रहे है, लेकिन सिस्टम के आगे वे भी मजबूर है क्योंकि सुरसा के मूंह की तरह लॉकडाउन दिनोंदिन विस्तारित होता जा रहा है. जिसके कारण लोगों का हौसला भी अब टूटने लगा है.
पहले आपदा की स्थिति में सरकारों की ओर से लोगों को आर्थिक सहायता व जरुरत की सामग्री दी जाती थी. अब सरकारें स्वयं कंगाल हो चुकी है. ऐसे में वह क्या सहायता कर पाएंगी. यह प्रश्न भी अनेक परिवारों के सामने उभरने लगा है. क्योंकि जब भी सरकारी स्तर पर कोई मिटींग होती है तथा उसके बाद जब घोषणाएं की जाती है उसमें मुख्य रुप से एक ही बात सुनने मिलती है कि, लॉकडाउन को और भी कडा किया जाएगा. सारी उर्जा लॉकडाउन कडा करने में ही उलझकर रह गई है. लेकिन उस कडाई के कारण जिन लोगों का दाना पाणी भी कठिन हो गया है, उनके बारे में जिक्र करने वाला न तो कोई सरकार है और ना ही जनप्रतिनिधि है. इस हालत में अनेक परिवारों को अभाव का सामना करना पड रहा है. सीमित समय के लिए यदि लॉकडाउन रहता तो भी लोग कैसे भी उसका पालन कर पाते थे. लेकिन अब पालन करना भले ही उनकी मजबूरी बन गई है. इस मजबूरी के कारण अपने आपको अनेक परिवार असहाय महसूस कर रहे है. जिनमें कुछ हौसला है वे अभी संघर्ष कर समय व्यतीत कर रहे है. लेकिन जिनके पास सबकुछ समाप्त हो चुुका है तथा घर में केवल नौनिहालों की कि भूख से होती तडफ एवं अभाव का साम्राज्य उन्हें शारिरीक रुप के साथ-साथ मानसिक रुप से भी तोड दे रहा है. जिसके कारण वे आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर है. हाल ही में सर्वेक्षण में कहा गया है कि, कोरोना संकट के कारण रोजगार का संकट तीव्रता से बढ गया है.
देशभर में अप्रैल माह में 34 लाख वेतनभोगियों का रोजगार चला गया है. कोरोना से बचने के लिए अनेक लोगों ने छोटे व्यापार भी आरंभ किये थे लेकिन उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है. अनेक लोगों में कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन के दौरान जीवनावश्यक वस्तुओं का कारोबार आरंभ किया. अनेक लोगों ने फलों की तो अनेक लोगों ने सब्जियों की दुकानें लगाई. लेकिन अब लॉकडाउन में एक नई बात सामने आ रही है. जिसे कडक लॉकडाउन का नाम दिया जा रहा है. इसके कारण सडक किनारे बैठकर सब्जी व अनेक खाद्य पदार्थ की बिक्री करने वालों को भी अब घर पर बैठना पड रहा है. पहले नियमित रोजगार को लॉकडाउन के कारण बंद करना पडा है. उसके बाद अस्थायी तौर पर सब्जी आदि का कार्य आरंभ किया तो कडक लॉकडाउन के नाम पर उसे भी छीन लिया गया है. इससे अब अधिकांश घरों में अभाव का साम्राज्य कायम होने लगा है. यहीं वजह है कि, अब अनेक लोगों का हौसला टूट रहा है. विशेष बात यह है कि, लगातार लॉकडाउन व अन्य प्रयोग करने के बाद भी लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया. यहा तक की अब मरने वालों की संख्या भी बढने लगी है. प्रश्न यह उभरने लगा है कि, भविष्य में क्या स्थिति होगी. वर्तमान ही जब पूरे अभाव में डूबा हुआ है, तो भविष्य आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जा सकता है. सरकारों को चाहिए कि, वह बीमारी नियंत्रण के लिए प्रयास के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि, देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जो कमाना, रोज खाना की स्थिति से गुजरता है. उनके सामने यदि रोजगार का संकट आ गया है, वे कैसे अपना जीवन यापन करें, अत: सरकार का दायित्व है कि, लॉकडाउन के कारण जो परिवार अभावग्रस्त हो गये है, उन्हें योग्य सहायता प्रदान की जाये तथा उनका मनोबल कायम रखा जाये.

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