संपादकीय

उत्सव में उत्साह के साथ ही जागरूकता भी हो

प्रकृति इंसान को बहुत कुछ देती है और इंसान भूमि, जल और वायु प्रदुषण से उसका संतुलन दिन प्रतिदिन बिगाडता जा रहा है. सुंदरता के मोह में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां विसर्जन होने के बाद भी काफी लम्बे समय तक पानी में घुलती नहीं हैं. ऐसी मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक रंग भी पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी हानिकारक होते हैं. खतरनाक रसायनों से बनी मूर्तियों का विसर्जन पानी के स्त्रोत जैसे कुआं, तालाब और नदी में बहा देना पानी के स्तर और उसकी गुणवत्ता दोनो को कम कर देते हैं. ऐसी मूर्तियों से निकलने वाले रसायनों से न्यूरोलॉजिकल और कैंसर जैसी बीमारियों की समस्या भी सामने आ सकती है. अत: अब यह समय आ चुका है कि हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि ‘क्या भगवान हमारी ऐसी प्रार्थना को स्वीकार करेंगे, जिससे पर्यावरण और किसी की जिंदगी, दोनो को नुकसान हो,‘ प्लास्टर ऑफ पेरिस से जुडी इस समस्या को ध्यान में रखकर लेट्स क्लीन अमरावती ग्रुप अक्टूबर २०१७ से छत्री तलाव और बोर नदी के तल की सफाई में कार्यरत है. सफाई के साथ ही आने वाली पीढी को इस समस्या से अवगत करने के लिए शहर की स्कूलों में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के बारे में जानकारी देते हैं. लेट्स क्लीन अमरावती ग्रुप पिछले २ वर्षो में २५०० से अधिक मूर्तियां छत्री तलाव और बोर नदी से निकल चुका है. तलाब की स्वच्छता के दौरान कुछ प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों का वजन बढाकर उनका मिट्टी की होने का विश्वास दिलाकर बेचने क लिए होता है. मूर्तियों से जुडी सारी समस्याओं से बचने का एक ही इलाज है, और वह है शुद्ध मिट्टी से बनी और नैसर्गिक रंगों से रंगी भगवान की मूर्तियों का इस्तेमाल. अपने जनजागृति अभियान को एक और कदम आगे बढाते हुए पिछले साल की तहर इस साल भी लोगों को आसानी से मिट्टी से बनी मूर्तियां उपलब्ध कराने का प्रयास किया है. लेट्स क्लीन अमरावती ग्रुप सभी से यह निवेदन करते हैं कि, जैसे हम मन और वचन से हमारे आराध्य देव गणपति की पूजा करते हैं, वैसे ही इस साल क्यों ना हम कर्म से भी (मिट्टी से बने हुए गणपति) पूजन करें, ताकि हमें भगवान सुख, समृद्धि दें और कोरोना जैसी महामारी से बचाए रखें.
– डॉ. अनुकूल पटेरिया
अध्यक्ष, लेटस् क्लीन अमरावती.

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