संपादकीय

चुनाव प्रचार में खोयी श्रमिकों की पीडा

बिहार में विधानसभा चुनाव के चलते व्यापक अभियान आरंभ हो गये है. जहां सत्तादल व विपक्ष अपने जीत के दावे कर रहा है. वहीं पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का भी सिलसिला जारी है. बिहार के चुनाव में सबसे ज्यादा प्रभाव प्रवासी श्रमिकों का रहेंगा. लॉकडाउन के दौरान उन्होंने जो पीडा भुगती है वह कहीं ना कहीं चुनाव पर अपना असर दिखाएंगी. देश में जहां बुलेट ट्रेन चलाने की प्रक्रिया तेजी से जारी है वहीं पर हजारों श्रमिकों को लॉकडाउन के दौरान पैदल सफर कर अपने गांव पहुंचना पडा. सैकडों किलो मीटर का यह सफर वे चाहे भी तो सारी उमर भूल नहीं सकते. लॉकडाउन के बाद अनेक प्रवासी श्रमिक इस भय से अपने घरों की ओर निकल गये कि, इस लॉकडाउन में उनका जीवन यापन कैसा होगा. क्योकि अब तक घर चलाने की जिम्मेदारी घर के मुखिया पर रहती थी. वह किसी ना किसी तरह जुगाड कर अपने परिवार का उदर पोषण कर रहा था. लेकिन लॉकडाउन के कारण हजारों श्रमिक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गये. कईयों के रोजगार भी समाप्त हो गये. ऐसे में उनके सामने अपने गांव जाना ही एकमात्र विकल्प बन गया था. जिसके चलते हजारों की संख्या में श्रमिक निजी तौर पर अपने घरों की ओर रवाना हुये. कुछ वाहनों ने अवैध रुप से इन श्रमिकों से मनमानी राशि वसूल कर उन्हें गांव की ओर पहुंचाया. जिनके पास पैसा था उन्होंने भले ही ऐसे अवैध वाहनों का इस्तेमाल किया. लेकिन महानगरों में श्रमिकों के रोजगार के संसाधन लगभग समाप्त हो जाने के कारण उन्हें गांव लौटना जरुरी था. हालांकि प्रवासी श्रमिकों ने उन्हें घर पहुंचने के लिए सरकारी सुविधा की उम्मीद की थी. लेकिन श्रमिकों को योग्य सुविधा नहीं मिल पाई. परिणाम स्वरुप वे पैदल ही घर की ओर निकल गये. किसी भी तरह संघर्ष कर अपने घर पहुंचे. ऐसे में उन्होंने जो पीडा भुगती है. उसे भुलाया नहीं जा सकता. यहीं कारण है कि, इस चुनाव में श्रमिक वर्ग चुनाव के परिणाम बदल सकते है. जिस समय लॉकडाउन था उस समय यदि अनेक ग्रामीणों को उनके गांव जाने की सुविधा की जाती, तो संभव था. उनके मन पर केंद्र व राज्य सरकार के प्रति एक तरीके से रोश का माहौल है.

यदि श्रमिक किसी भी तरह अपने गांव पहुंच गये है, तो उन्हें वहीं रोजगार उपलब्ध कराया जाता. यदि ऐसा होता तो उन्हें राहत मिलती. लेकिन पाया गया कि, पैदल यात्रा में भी उन्हें प्रशासन की ओर से मिलने वाली कठीनाईयों का भी सामना करना पडा. वर्तमान में जिस तरह चुनाव सुचारु रुप से करने के प्रयास जारी है. उसी तरह यदि प्रवासी श्रमिकों को आने-जाने के लिए सुविधा उपलब्ध करायी जाती, तो उन्हें प्रवासी श्रमिकों को कठीनाई का सामना नहीं करना पडा. बेशक कोरोना का संकट अपने आप में अपने आप में एक जटील समस्या थी. इस समय सरकार को बीमारी से निपटने के लिए अपनी सारी उर्जा लगा दी. परिणाम स्वरुप अन्य क्षेत्र से सरकार का ध्यान हट गया. जिसके कारण रोजगार खोने के कारण भयभीत श्रमिकों को उनके गांव पहुंचाने की व्यवस्था का इंतजार था. लेकिन लॉकडाउन में कोई व्यवस्था सरकार की ओर से की गई. परिणाम स्वरुप अनेक श्रमिक संघर्ष कर अपने गांव पहुंच पाये. यदि सरकार उन्हें यहां भी योग्य रोजगार उपलब्ध कराती है, तो वे कहीं ना कहीं सरकार के प्रति कृतज्ञ रहते. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया.

श्रमिकों को पैदल ही अपने गांव जाना पडा. जिसके कारण उनकी सारी जमापूंजी भी नष्ट हो गई. इस हालत में उन्हें अभी भी कठिनाईयों से गुजरना पड रहा है. जाहीर है यह दर्द उन्हें भुलाये नहीं भुलेंगा. बिहार उत्तरप्रदेश के अधिकांश परिवार के सदस्य मुंबई सहित अनेक महानगरों में रोजगार या मजदूरी करते है. इस कार्यों को करते समय उन्हें भारी कठिनाई होती है. लेकिन लॉकडाउन जैसी समस्याओं में यदि उन्हें महानगरों में अटका रहना पडता, तो वे कैसे अपना गुजर बसर करते. स्पष्ट है उन्हें इस समय केवल एक ही विकल्प अपने गांव पहुंचना ही नजर आ रहा था. यहीं कारण है कि, हजारों की संख्या में श्रमिकों ने पैदल ही पलायन किया. गांव पहुंचने के बाद भी उन्हें राहत नहीं मिली. ्नयोंकि गांव में पहले से ही व्याप्त विपन्नता के कारण उन्हें भुखमरी का भी सामना करना पड रहा है. जिसके चलते वे पुन: रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांत जाने के लिए मजबूर है. कुलमिलाकर चुनाव की सरगर्मिया बिहार में जारी है. लेकिन वहां के श्रमिक वर्ग के लिए कोई योजना न तो सत्तादल और ना ही विपक्ष के पास है. चुनाव में कहीं भी श्रमिको की पीडा का उच्चारण नहीं हो रहा है. यहीं कारण है कि, श्रमिक वर्ग अब अपने हित में सोचने के लिए मजबूर हो गया है.

इस हालत में सरकार को चाहिए कि, वह श्रमिकों को नजर अंदाज ना करें. उनके लिए अनुकूल पैकेज घोषित करें, ताकि भविष्य में उन्हें भटकना ना पडे व उन्हें अपने ही क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध हो. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि, वे बिहार जिन मामलों में बदनाम है, उन कलंकों को दूर कर प्रांत में रोजगार के अवसर यदि उपलब्ध कराये जाते है, तो श्रमिकों के ओर से उन्हें समर्थन मिल सकता है. जरुरी है कि, चुनाव के प्रचार के बीच श्रमिकों की समस्या पर भी ध्यान दिया जाये. ताकि भविष्य में उन्हें कठिनाईना उठानी पडे.

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