अछूते न रहे विदर्भ के प्रश्न
आगामी दिनों में नागपुर में विधानसभा का शीतकालीन सत्र में विदर्भ के प्रश्न को प्रमुखता से स्थान दिया जाए. कुछ संगठनों की मांगे शीतकालीन सत्र में केवल विदर्भ के ही मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए. यह जरुरी भी है. संयुक्त महाराष्ट्र के गठन के वक्त विदर्भ के साथ न्याय करने के उद्देश्य से नागपुर करार किया गया था. करार के अनुसार नागपुर में होने वाले विधान मंडल के अधिवेशन में विदर्भ के मुद्दों पर ही चर्चा होनी चाहिए. जबकि शोकांतिका यह है कि, विदर्भ के मुद्दों पर अव्वल तो चर्चा नहीं हो पाती. ऐसे में यदि कोई चर्चा होती है तो वह पर्याप्त नहीं रहती. कुछ ही मुद्दे उठने के बाद विदर्भ की चर्चाएं गायब हो जाती है. वर्तमान विधानसभा में 62 सदस्यीय विधायक है. यदि सभी विधायक अपने पार्टी स्तर से उंचा उठकर संयुक्त रुप से विदर्भ के विकास के लिए प्रयास करना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. एक जमाने में 15 दिनों तक केवल विदर्भ की गूंज रहती थी. लेकिन अब विदर्भ की चर्चाएं सीमित रहती है. परिणाम स्वरुप विदर्भ के अनेक मुद्दे आज भी हासिये पर है. इससे विदर्भ का अनुशेष दिनों दिन बढता जा रहा है. इसे कम करने के लिए सरकार की ओर से ठोस कदम भी नहीं उठाये गये है. इससे विदर्भ के किसानों, नागरिकों को लाभ मिलेगा. बीते दिनों कर्फ्यू के कारण लोग घर से बाहर नहीं निकले. जिसका सार्थक असर देखने को मिला. इससे कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हुई है. लेकिन ये प्रयास निरंतर जारी नहीं है. परिणाम स्वरुप अनेक व्यवसायियों व रोज कमाने खाने वाले परिवारों पर संकट का माहोल निर्माण हो गया था. अब बिगेन-अगेन प्रक्रिया आरंभ हो गई है. इसके लिए हर किसी व्यवसाय को छूट दी जा रही है. लेकिन कुछ व्यवसाय अभी भी बंद है. विदर्भ में बडे उद्योग न रहने के कारण अनेक घरों में लघु उद्योग जारी है. इन उद्योगों को गति मिलनी चाहिए. अब तक अनेक विद्यार्थियों को आजीविका के लिए परेशान नहीं होना पडा. घरेलू उद्योग उन्हें राहत दे रहे है, लेकिन इसकी संख्या अत्यंत सीमित है. इसलिए जरुरी है कि, हर जिले में रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए. विदर्भ के अनेक जिलों में रोजगार के अवसर लगभग समाप्त हो गये है. इसलिए सरकार को अब कोशिश करनी चाहिए कि, आर्थिक कारणों से जो घरेलू उद्योग बंद पडे है, उन्हें फिर से आरंभ करना चाहिए. विदर्भ में सबसे बडा प्रश्न रोजगार का ही है. यहां के अनेक युवक रोजगार के लिए प्रति वर्ष दूसरे प्रांतों में पलायन करते है. कोरोना के कारण हर प्रांत की हालत दयनीय है. अत: रोजगार के संसाधन कैसे बढेंगे इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
हालांकि बिगेन-अगेन अभी पूरी तरह लागू नहीं हुआ है. ऐसे में यदि श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किये जाते है, तो जब पूरी तरह बिगेन-अगेन होने के बाद अतिआवश्यक है कि, विदर्भ में नये रोजगार के साथ-साथ पूराने रोजगार को भी संचालित करना चाहिए. अनेक शहरों में ऐसे कई प्रतिष्ठान है. जो पहले शहर के लोगों को रोजगार देने का माध्यम बने थे अब लॉकडाउन के बाद सभी उद्योग प्रभावित हुए है. ऐसे में रोजगार के संसाधन बढाने के लिए सरकार को चाहिए कि, उद्योगों को पुनर्जिवित करें. इसके अलावा विदर्भ के अनेक प्रश्न है. यहां पर पर्यटन की अनेक संभावनाएं है, लेकिन योग्य सहयोग न मिल पाने के कारण पर्यटन प्रभावित हुआ है. यदि सरकार की ओर से विदर्भ के अनेक पर्यटन स्थलों को विकसित किया जाये, तो यहां पर सैलानियों की भीड बढेंगी व रोजगार के अवसर उपलब्ध होगे. पेयजल संकट इस वर्ष अभी नहीं है लेकिन आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा हो सकता है. इसके लिए भी स्थायी उपाय योजना होना जरुरी है. खासकर कुछ जल परियोजनाएं जो अभी पूरी नहीं हो पायी है, उन्हें पूरा किया जाना चाहिए.
कुलमिलाकर विदर्भ की समस्यां के लिए विदर्भ के जनप्रतिनिधि जिम्मेदार है. विदर्भ को अनेक बार मुख्यमंत्री पद मिला है. अनेक नेताओं को मंत्री मंडल में शामिल किया गया है, लेकिन विदर्भ का विकास योग्य तरीके से नहीं हो पाया है. कुछ वर्षों पूर्व विदर्भ के प्रश्नों पर चर्चा के लिए विशेष सत्र आयोजित हुआ था. लेकिन वहां भी कोई भी लाभ नहीं मिल पाया. विदर्भ के अनेक जनप्रतिनिधि उस सत्र में उपस्थित ही नहीं थे. विदर्भ का अनुशेष दिनों दिन बढ रहा है. इसलिए जरुरी है कि, इस शीतसत्र में विदर्भ के विषयों पर व विदर्भ के मुद्दों पर व्यापक चर्चा हो, ताकि विदर्भ का पिछडापण दूर करने में योग्य सहायता मिल सकें.