संपादकीय

निषेध का हिंसक स्वरूप

केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे के प्रति दिए गये विवादास्पद बयान को लेकर शिवसैनिको में भारी नाराजी है. इस नाराजी को व्यक्त करने के लिए शिवसेना की ओर से राज्यभर में अनेक स्थानों पर पथराव किया गया. अमरावती के भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में आग लगाने का भी प्रयास किया गया. बेशक किसी नेता द्वारा शिवसेना के सर्वेसर्वा व राज्य के मुख्यमंत्री के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी किया जाना अनुचित है. लेकिन इस अनुचित घटना के प्रति जो रोष व्यक्त किया गया व रोष व्यक्त करने का जो तरीका था वह न केवल आपत्तिजनक बल्कि कानून व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करनेवाला भी था. अमरावती शहर में संतप्त शिवसैनिको ने भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में लगे अनेक पोस्टर पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने की कोशिश की. भारतीय जनता पार्टी का कार्यालय यह शहर के एक घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है. कार्यालय के आसपास बड़े बड़े व्यापारिक संकुल है. यदि आग किसी कारण से फैल जाती है तो जनसंपत्ति का अनावश्यक रूप से नुकसान हो जाता. आग की घटना किसी के लिए जानलेवा साबित हो जाता.
किसी भी नेता व व्यक्ति विशेष के प्रति यदि एक समूह की ओर से नाराजी व्यक्त की जाती है तो उसके अनेक प्रजातांत्रिक मार्ग है. उसके माध्यम से यदि निषेध किया जाता है तो उसमें कोई बुराई नही है. जब हम निषेध के नाम पर हिंसक घटना को अंजाम देते है तो यह किसी भी द़ृष्टि से उचित नहीं. इससे कानून व्यवस्था का प्रश्न निर्माण हो सकता है. साथ ही गुटीय संघर्ष भी बढ सकता है. आपसी गुटीय संघर्ष के कारण हिंसक वारदातों को अंजाम मिलता है.ऐसे में जरूरी है कि निषेध प्रजातांत्रिक मार्ग से किया जाए. इसके लिए हिंसक घटनाओं को अंजाम देना उचित नहीं है. ऐसी स्थितियां भविष्य में निर्माण नहीं होनी चाहिए.
नेताओं को भी चाहिए कि वे अपनी वाणी में संयम रखे. यदि इस घटना में भी पहले से ही भाषा का संयम बरता जाता तो यह नौबत नहीं आती.
कुल मिलाकर केन्द्रीय मंत्री द्वारा दिया गया वक्तव्य किसी भी द़ृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता. लेकिन वक्तव्य की आड में शिवसेना द्वारा जो हिंसक कार्रवाई की जा रही है. उसका भी समर्थन नहीं किया जा सकता.
इस मामले में पुलिस को स्वयंस्फूर्त होकर कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन कहा जा रहा है कि पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई किसी दबाव में की जा रही है. इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. जरूरी है कि नेतागण भी अपनी भाषा को संयमित रखे तथा विरोध के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है वह उचित नहीं है. इसके लिए अन्य कानूनी मार्ग से कार्रवाई की जा सकती है. होना भी यही चाहिए था. राज्य में शिवसेना की सत्ता है. ऐसे में सत्ताधारी दल की ओर से ही कानून व्यवस्था का प्रश्न निर्माण होता है तो आम आदमी को ही भारी खामियाजा भुगतना पडता है. ऐसे में जरूरी है कि किसी भी नेता के वक्तव्य पर निषेध करने के लिए भाषा में संयम रहना चाहिए. साथ ही निषेध के रूप में तोडफोड करना भी गलत है. इसलिए नेता को चाहिए कि अपनी वाणी पर संयम रखे व कार्यकर्ताओं को भी निषेधकृति करते समय हिंसक रूप नहीं लेना चाहिए.

Related Articles

Back to top button