संपादकीय

प्रश्न महिलाओं की सुरक्षा का!

राज्य में इन दिनों महिलाओं की सुरक्षा के प्रश्न को लेकर राजभवन एवं मंत्रालय के बीच पत्र व्यवहार के जंग छिडी हुई है. राज्यपाल कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था कि, राज्य में लगातार बिगडती कानूनी व्यवस्था की मसले पर दो दिन तक विशेष अधिवेशन बुलाया जाए. इस पर मुख्यमंत्री ने महिलाओं की सुरक्षा को राष्ट्रीय मामला बताते हुए केंद्र में 4 दिन का विशेष सत्र बुलाने की सलाह दी थी. महिलाओं की सुरक्षा का मामला केंद्र सरकार का है या राज्य सरकार का, इस पर चिंतन करने की बजाय इस बात पर ध्यान देना अति आवश्यक है कि, प्रश्न महिलाओं की सुरक्षा का है. इस दृष्टि से राज्य सरकार भले ही अधिवेशन न बुलाये पर इस बात को अवश्य स्पष्ट करें कि, राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के लिए उनकी क्या कार्ययोजना है.
राज्य में इन दिनों कहीं पत्र व्यवहार की जंग चल रही है, तो कहीं बयानबाजी की. लेकिन मूल मुद्दे जो जनसामान्य से जुडे है. उसकी ओर राजनीतिक दलों का ध्यान नहीं है. फिर यह मुद्दा चाहे व्यापार के होते पतन का हो या महिला सुरक्षा का अथवा बेरोजगारी एवं आर्थिक संकट का हो. इस पर न तो कोई बयानबाजी हो रही है और ना ही, कोई पत्र की जंग. जाहीर है सत्ता में बैठे या विपक्ष में रहकर जो नेतागण सक्रिय है. उनकी नजर में जनसामान्य की बुनियादी समस्याओं की कोई अहमियत ही नहीं है. केवल खुदका राजनीतिक वर्चस्व दिखाने की होड मची है. यदि अधिवेशन बुलाया भी लिया जाता, तो इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा होती एवं कोई ना कोई हल निकलता. या कार्ययोजना तय करने की दिशा में कदम उठाये जा सकते थे.
राज्य सरकार ने हालांकि पहले स्पष्ट कर दिया है कि, महिलाओं संबंधी अपराधों को गंभीरता से लिया जाएगा. इसमें कोई भी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा. लेकिन केवल अपराधों को गंभीरता से लेना ही पर्याप्त नहीं है. अपराधों के खिलाफ कडे कदम भी उठाए जाना आवश्यक है. राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम ने हाल ही में महाराष्ट्र का दौरा किया. इस समय आयोग की प्रवक्ता ने कहा था कि, राज्य महिला आयोग का अब तक गठन नहीं किया गया है. जिससे महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए कहा शिकायत करनी चाहिए. इस बारे में सरकार की ओर से अब तक कदम नहीं उठाये गये है. महिलाओ ंके साथ उत्पीडन के अनेक मामले कई दिनों से लंबित है. जाहीर है जब तक ऐसे मामलों पर कार्रवाई नहीं होती तब तक महिलाओं की सुरक्षा का प्रश्न कायम ही रहेगा.
महिलाओं की सुरक्षा के मामले को राजनीतिक रुप मिलना उचित नहीं है. क्योंकि यह मुद्दा इतना संवेदनशील है. इसमें केवल एक महिला ही आहत नहीं होती. बल्कि उसका पूरा परिवार आहत होता है. ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर सरकार का कडा रुख जरुरी है. जब तक सरकार की ओर से नारी उत्पीडन के मामलों में ठोस कदम नहीं उठाये जाते यह प्रश्न कायम ही रहेगा. राजनीतिक स्तर पर भले ही सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच आपस में मतभेद हो पर समाज एवं महिलाओं की सुरक्षा से जुडे प्रश्नों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. इस पर विशेष चर्चा कर कार्ययोजना सुनिश्चित की जानी चाहिए. लेकिन पाया जा रहा है कि, इस मामले में कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है. जरुरी है कि, नारी उत्पीडन के मामलों को सरकार अत्यंत गंभीरता से ले. मानवता को कलंकित करने वाली जो घटनाएं हुई है. उन पर योग्य कार्रवाई होनी चाहिए. खासकर ऐसे मामले फास्ट ट्रैक अदालत में चलाया जाना चाहिए, ताकि दोषियों को योग्य दंड मिल सके.
कुल मिलाकर महिलाओं से जुडे मामले अत्यंत गंभीर है. यदि महिलाओं की सुरक्षा नहीं की जा सकती है, तो यह बात राज्य के लिए चिंता का विषय है. इस मुद्दे पर कडी कार्रवाई हर किसी को अपेक्षित है. कोई भी यदि ऐसे मामलों से बचकर निकल जाये, तो यह सरकारी तंत्र की कमजोरी मानी जा सकती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि, महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सजगता पूर्वक कदम उठाए जाए. जो लोग अपराध में लिप्त है. उनके खिलाफ कडी कार्रवाई होनी चाहिए. ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, ऐसे भी कदम उठाए जाने चाहिए.

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